क्या सस्ता होगा लोन या बढ़ेगी EMI? RBI MPC की इस डेट पर होगा फैसला! जानिए आपकी जेब पर क्या होगा असर?
First Published Mar 27, 2025, 10:35 AM IST
RBI ने MPC मीटिंग 2025 का शेड्यूल जारी कर दिया है! पहली बैठक 7 अप्रैल से शुरू होगी। जानें ब्याज दरों, EMI और आपकी जेब पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में।
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RBI MPC meeting 2025: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए मौद्रिक नीति समिति (MPC) मीटिंग का पूरा शेड्यूल जारी कर दिया है। यह मीटिंग भारत की आर्थिक नीति और ब्याज दरों को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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RBI MPC 2025 मीटिंग का पूरा शेड्यूल
पहली बैठक: 7, 8, 9 अप्रैल 2025
दूसरी बैठक: 4, 5, 6 जून 2025
तीसरी बैठक: 5, 6, 7 अगस्त 2025
चौथी बैठक: 29, 30 सितंबर, 1 अक्टूबर 2025
पांचवीं बैठक: 3, 4, 5 दिसंबर 2025
छठी बैठक: 4, 5, 6 फरवरी 2026

RBI MPC मीटिंग का आम जनता पर क्या असर पड़ेगा?
अगर रेपो रेट बढ़ता है:
बैंक लोन महंगे हो जाएंगे
EMI बढ़ जाएगी
मुद्रास्फीति (महंगाई) कम होगी
अगर रेपो रेट घटता है:
लोन सस्ते होंगे
EMI कम होगी
बाजार में पैसे का फ्लो बढ़ेगा
अगर ब्याज दरें स्थिर रहती हैं:
कोई बड़ा बदलाव नहीं होगा
आर्थिक स्थिरता बनी रहेगी
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RBI MPC मीटिंग क्यों महत्वपूर्ण है?
1. यह तय करती है कि ब्याज दरें बढ़ेंगी, घटेंगी या स्थिर रहेंगी
2. इसका सीधा असर लोन, EMI और महंगाई पर पड़ता है
3. RBI गवर्नर और 6 सदस्यीय समिति यह फैसला लेती है
4. हर दो महीने में एक बार यह मीटिंग होती है

MPC की बैठक में कौन-कौन शामिल होता है?
MPC में कुल 6 सदस्य होते हैं। इनमें आरबीआई के 3 अधिकारी और सरकार द्वारा चुने गए 3 विशेषज्ञ शामिल होते हैं। आरबीआई गवर्नर इस समिति के अध्यक्ष होते हैं। एमपीसी की बैठक का आम लोगों पर क्या असर होता है? अगर रेपो रेट बढ़ता है तो बैंक लोन महंगे हो जाते हैं, जिससे ईएमआई बढ़ जाती है। इससे मुद्रास्फीति को कम करने में मदद मिलती है।

कितने दिन में होती है RBI की बैठक?
MPC (मौद्रिक नीति समिति) भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की एक विशेष समिति है, जो देश में ब्याज दरों और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने का काम करती है। इस बैठक में यह तय किया जाता है कि बैंकों को दिए जाने वाले ऋण (रेपो रेट) की दर बढ़ेगी या घटेगी। आरबीआई की यह बैठक हर दो महीने में एक बार होती है। इसमें यह तय किया जाता है कि ब्याज दरों में बदलाव किया जाए या नहीं। इसका असर बैंकों के लोन, EMI, मुद्रास्फीति और देश की आर्थिक स्थिति पर पड़ता है।
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