बठिंडा। पंजाब के बठिंडा जिले के केवल कृष्ण सड़कों पर भीख मांगने, कचरा उठाने और गुब्बारे बेचने वाले बच्चों को पढ़ा रहे हैं। शहर में ​शाम को 2 घंटे के लिए 6 इवनिंग सेंटर चलाते हैं। उन बच्चों को सिर्फ पढ़ाते ही नही हैं, बल्कि उनका स्कूल में दाखिला भी कराते हैं, स्कूल के खर्च वगैरह का अरेंजमेंट खुद से ही करते हैं। MY NATION HINDI से बात करते हुए केवल कृष्ण कहते हैं कि शहर के लोगों से दान इकट्ठा करते हैं। करीबन 450 बच्चों को पढ़ा रहे हैं।

इस खास वजह से एनजीओ का नाम रखा अप्पू सोसाइटी 

केवल कृष्ण अप्पू सोसाइटी के नाम से यह काम कर रहे हैं। सोसाइटी का नाम अप्पू रखने के पीछे की कहानी भी बहुत रोचक है। केवल कृष्ण कहते हैं कि बचपन से ही समाज के लिए कुछ करने का मन था। कुछ अलग करने की इच्छा थी। साल 1997 में पढ़ाई के सिलसिले में पटियाला गया था। वहां एक अकेली बच्ची स्टेशन पर मिली। मैं उससे बात करने लगा। एक घंटे की दूरी पर ही उसका स्टेशन था, वह मेरे ही साथ बैठ गई। उसके साथ एक घंटा ऐसा बीता कि बच्चों में इंटरेस्ट हो गया। फिर बच्चों के लिए कुछ करनी की ठानी और साल 2001 में उसी बच्चे के नाम पर अप्पू एनजीओ बनाया और अपना जीवन इसी में लगा दिया। 

 

पहले लोग मजाक उड़ाते थे, अब माना लोहा

पहले लोग उनका मजाक उड़ाते थे। सवाल उठाते थे कि इतना बड़ा काम कैसे करोगे? घर के लोग भी कहते थे कि कैसे कर पाओगे? नहीं हो पाएगा। केवल कृष्ण कहते हैं कि अब लोगों ने मान लिया है कि मैंने कर लिया। साल 2011 से ईवनिंग सेंटर चल रहे हैं। काफी बच्चों का स्कूल में दाखिला कराया। खासकर उन बच्चों का जिनके मॉं-बाप अनपढ़ हैं और अपने बच्चों का स्कूल में दाखिला नहीं करा पाए। वह बच्चे स्कूल भी जा रहे हैं और इवनिंग सेंटर भी आ रहे हैं। 15 से 20 फीसदी बच्चे, जो स्कूल में दाखिला नहीं ले सके, वह हमारे साथ ही पढ़ते हैं।

आधा मकान बेचकर एनजीओ में लगाया पैसा

केवल कृष्ण साल 2001 से 2007 तक बच्चों की थोड़ी बहुत मदद करते रहें। मीडिल क्लास से आने वाले केवल कहते हैं कि साल 2011 में पिता का एक मकान था। आधा मकान बेच दिया। उसमें से 5 से 7 लाख रुपये एनजीओ में लगाया। फिर ये स्कूल शुरु किया। केवल की बहन की शादी हो चुकी है। पिता की डेथ हो चुकी है। उन्होंने खुद शादी भी नहीं की है। देखा जाए तो परिवार में वह इकलौते सदस्य हैं। 

 

भिखारियों के एक-दो बच्चे पढ़कर निकलेंगे तो टूटेगा उनका सर्कल

केवल कृष्ण कहते हैं कि बच्चे हमें बहुत प्यार करते हैं। हम उन्हीं जगहों पर सेंटर खोलते हैं, जहां बच्चे भीख मांगते हैं। हॉस्टल कम्पलीट हो जाएगा तो हम पहले उन बच्चों को कवर करेंगे, जो पढ़ना चाहते हैं। जिनके माता-पिता अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं। हमारा मानना है कि यदि एक-दो बच्चे पढ़कर निकल जाएंगे तो उनका सर्कल टूट जाएगा। 

वापस कर दी सरकारी मदद

पंजाब सरकार के एक विभाग ने बच्चों के वास्ते काम करने के लिए केवल कृष्ण से प्रोजेक्ट मांगा था। उन्होंने हॉस्टल निर्माण का 82 लाख का एस्टीमेट दिया था। पर सिर्फ पौने दो लाख रुपये ही हासिल हुए तो वह धनराशि पंजाब सरकार को वापस कर दी, क्‍योंकि उतने में हॉस्‍टल का निर्माण संभव नहीं था। 

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