मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले के रहने वाले राजपाल सिंह नरवरिया ने पिता की दिक्कतों को देखते हुए खेती-किसानी में उनकी मदद करनी शुरु कर दी और खेती करने का फैसला लिया। जिसकी वजह से उनकी पढ़ाई बीच में ही छूट गई।
भोपाल। मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले के रहने वाले राजपाल सिंह नरवरिया ने पिता की दिक्कतों को देखते हुए खेती-किसानी में उनकी मदद करनी शुरु कर दी और खेती करने का फैसला लिया। जिसकी वजह से उनकी पढ़ाई बीच में ही छूट गई। माई नेशन हिंदी से बात करते हुए राजपाल कहते हैं कि साल 2001 के समय बोरवेल में मोटर गिरती थी। मेरे चाचा की मोटर बोरवेल में गिर गई थी, तो उसके लिए एक इक्पिवमेंट तैयार करके मशीन निकाली।
राजपाल नरवरिया ने शुरु किया स्टार्टअप
बस, वहीं से राजपाल के इनोवेशन की शुरुआत हो गई। वह, अब तक एग्रीकल्चर से जुड़े 20 इनोवेशन कर चुके हैं और अब नरवरिया इन्नोवेटिव टेक्नोलॉजी के नाम से खुद का स्टार्टअप चला रहे हैं। राजपाल ने साल 2020 में स्टार्टअप शुरु किया तो लॉकडाउन लग गया। दो साल तक काम नहीं कर पाएं। अब काम शुरु किया है।
इस घटना से प्रभावित होकर बनाया कम्बाइन हार्वेस्टर
साल 2011 में राजपाल नरवरिया के गांव जमाखेड़ी के पास के गांव में एक किसान ने अपने खेत में पराली जलाई थी। आग काबू से बाहर हो गई, जिससे पशुओं समेत कई लोगों के घर भी जल गए, गांव वालों का काफी नुकसान हुआ। वह इस समस्या के समाधान की कोशिश में जुट गएं और दो साल की मेहनत के बाद कम्बाइन हार्वेस्टर का एक प्रोटोटाइप बनाया।
एक्सपर्ट्स ने गांव में आकर देखी मशीन
राजपाल कहते हैं कि कम्बाइन हार्वेस्टर का प्रोटोटाइप कुछ हद तक सफल रहा, तो आगे के लिए सफल होने की उम्मीद जग गई, उस पर काम किया। फिर नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन को चिट्ठी लिखी। फाउंडेशन के एक्सपर्ट्स गांव तक आए। मशीन को चलवा कर देखा, आसपास के लोगों की प्रतिक्रयाएं ली और फिर यह प्रोटोटाइप बनाने के लिए तीन लाख की मदद मिली। इसके लिए उन्हें साल 2017 में राष्ट्रपति द्वारा नेशनल इनोवेशन अवॉर्ड मिला था और साल 2019 में जगजीवन राम अभिनव किसान पुरस्कार भी मिला।
काफी कम कीमत में तैयार होती है मशीन
वैसे मार्केट में मिलने वाले कम्बाइन हार्वेस्टर की कीमत 25 से 30 लाख होती है। पर राजपाल नरवरिया का बनाई गई मशीन की कीमत काफी कम है। उससे कटाई, थ्रेसिंग, भूसा निकालने का काम किया जा सकता है। साथ ही अनाज भी साफ किया जा सकता है। पशुओं के लिए हरा चारा भी काटा जा सकता है।
ये इक्विपमेंट भी बनाएं
राजपाल यहीं नहीं रूकें, उसके बाद वह लगातार एग्रीकल्चर इक्विपमेंट के इनोवेशन करते रहें। इको फ्रेंडली प्रो ट्रे मेकिंग मशीन, व्हील स्प्रेयर, डबल इंजन सबमर्सिबल मशीन, मैन्यूअल वॉटर लिफ्टिंग पम्प, हाईटेक रिपर और रोप मेकिंग मशीन बनाई। राजपाल कहते हैं कि हाईटेक रिपर कटाई के साथ फसल को किनारे ढेरी बनाकर रखता जाता है। अभी तक मशीनें कटाई के बाद फसल को जमीन पर फैलाती थी।
किसानों को कितनी बचत?
राजपाल कहते हैं कि आम तौर पर किसानों को एक एकड़ फसल की कटाई में करीबन 2500 से 3000 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। पर उनकी मशीन से यह लागत करीबन 1000 रुपये तक सिमट जाती है। यानी किसानों की लागत में 70 फीसदी तक की कमी आती है। राजपाल कहते हैं कि पंद्रह से बीस साल पहले गांवों में लाइट की दिक्कत होती थी, तो उसके लिए डबल सिस्टम का समर्सिबल इंजन बनाया। लाइट चली जाए तो डीजल इंजन और लाइट आ जाए तो मोटर चलाया जा सकता है।
Last Updated Aug 18, 2023, 9:02 PM IST