साल 2016 में जब पटना शहर में राज्य की पहली शू लॉन्ड्री (Revival Shoe Laundry) खुली तो लोग मोची से शू लॉन्ड्री की तुलना करने लगे। शुरुआती वर्षों में कम्पनी 'नो लॉस-नो प्रॉफिट' पर चल रही थी। अब सालाना 50 लाख का टर्नओवर है।
पटना। क्या मैले-कुचैले जूतों को साफ करके कोई बड़ा कारोबार खड़ा कर सकता है? यह सुनकर आप भी हैरान होंगे और सोच रहे होंगे कि क्या ऐसा संभव है? बिहार की शाजिया कैसर ने अपनी मेहनत और लगन से यह सच कर दिखाया है। साल 2016 में जब पटना शहर में राज्य की पहली शू लॉन्ड्री (Revival Shoe Laundry) खुली तो यही सवाल तमाम लोगों के जेहन में था। लोग सड़कों के किनारे या चौराहों पर बैठकर जूते पॉलिश करने वाले मोची से शू लॉन्ड्री के काम की तुलना करते थे। लोगों ने यहां तक कहा कि इसका ज्यादा मार्केट नहीं है, रिस्पांस नहीं मिलेगा। पर शाजिया को भरोसा था कि उनकी शू लॉन्ड्री चलेगी और हुआ भी यही। शुरुआती वर्षों में कम्पनी 'नो लॉस-नो प्रॉफिट' पर चल रही थी। अब सालाना 50 लाख का टर्नओवर है।
3 लाख की पूंजी और 2 लोगों के साथ शुरु किया काम
माई नेशन हिंदी से बात करते हुए शाजिया कहती हैं कि साल 2016 में मात्र 2 लोगों के साथ 3 लाख की पूंजी लगाकर काम शुरु किया था। शुरुआती वर्षों में स्ट्रगल रहा। तीन साल बाद कम्पनी 'नो लॉस-नो प्रॉफिट' पर आ गई। उसके बाद कोरोना महामारी आ गई तो सबके बिजनेस पर असर पड़ा। पर कोरोना के बाद लोगों के अंदर हाइजीन को लेकर समझ बढ़ी है। उसका असर भी दिख रहा है। अब हमारी कम्पनी का टर्नओवर 50 लाख है। आने वाले समय में देश के सभी राज्यों में फ्रेंचाइजी मॉडल पर आउटलेट खोलने का प्लान है।
फिजियोथेरेपी में ग्रेजुएट हैं शाजिया
भागलपुर की रहने वाली शाजिया ने फिजियोथेरेपी में ग्रेजुएशन किया है। साल 2012-13 में यूनिसेफ में जॉब की। उसके पहले WHO में भी काम किया। कम उम्र में शादी हो गई। दो बच्चे थे। एक तरफ परिवार का दायित्व तो दूसरी तरफ नौकरी की जिम्मेदारी निभाना आसान नहीं था। ऐसे में समय को अपने तरीके से कैसे यूज किया जाए? शाजिया यही सोचती थी। बिजनेस के बारे में रिसर्च करना शुरु किया तो उन्हें शू लॉन्ड्री खोलने का विचार आया।
शाजिया ने ये सोचकर शुरु किया काम
शाजिया कहती हैं कि मार्केट में महिलाओं से जुड़े अवसर ज्यादा हैं। पर उनमें बहुत ज्यादा प्रतिस्पर्धा है तो मैंने सोचा कि नई चीज पर काम किया जाए। समाज को बिजनेस के नये अवसर से परिचित कराया जाए। जब बिजनेस बिल्कुल नया होगा तो कोई हमारी सर्विस को कमतर नहीं आंक सकेगा। यही सोचकर काम शुरु किया।
शूज का सर्विस सेंटर खोलने का आया विचार
शाजिया कहती हैं कि अलग तरह का बिजनेस करने का विचार था। रिसर्च के दौरान पता चला कि हर प्रोडक्ट का अपना सर्विस सेंटर है। पर फुटवियर का कोई सर्विस सेंटर नहीं है। सिर्फ शूज बनाने वाली ब्रांडेड कम्पनियां ही नजर आती हैं। मोची लोगों को सर्विस नहीं दे पाते हैं, क्योंकि वह पूरी तरह से स्किल्ड नहीं होते हैं तो मुझे लगा कि इसे एक मॉडल के रूप में ट्राई करके देखा जा सकता है। यदि यह मॉडल सही में लोगों की प्रॉब्लम सॉल्व करता होगा तो इसका रिस्पांस मिलेगा।
बैग और जैकेट की भी क्लीनिंग और पॉलिसिंग
शाजिया ने पहले शू क्लीनिंग से काम शुरु किया, जब लोगों का रिस्पांस मिलने लगा तो उसमें और सर्विसेज जोड़ती चली गईं। अब शू लॉन्ड्री एक ऐसा प्लेटफार्म बन गया है, जहां किसी भी तरह के फुटवियर की क्लीनिंग, पॉलिशिंग, रिपेयरिंग और कस्टमाइज वर्क होता है। बैग और जैकेट की भी क्लीनिंग और पॉलिशिंग होती है। शाजिया कहती हैं कि शुरुआती दिनों में लोग शू लॉन्ड्री को फुटवियर की शॉप समझ लेते थे। उन्हें समझाना पड़ता था कि यहां फुटवियर की क्लीनिंग होती है। कुछ सर्विसेज के बाद माउथ टू माउथ अवेयरनेस हुई और फिर बिजनेस बढ़ता चला गया।
3 लाख करोड़ का हो सकता है बिजनेस
शाजिया का मेडिकल बैकग्राउंड था। लोग शू लॉन्ड्री के काम की मोची के काम से तुलना कर रहे थे। पर उनको इस काम में अवसर दिखा। शाजिया कहती हैं कि जनसंख्या के लिहाज से देखा जाए तो करीबन हर साल करीबन 30 लाख करोड़ के शूज पेयर बर्बाद होते हैं, क्योंकि उनकी रिसाइक्लिंग नहीं हो पाती है। यदि हम उनमें से एक प्रतिशत लोगों को भी सर्विस दे सकें तो ये बिजनेस 3 लाख करोड़ का हो सकता है।
लोगों का बिहैवियर चेंज होने में लगता है समय
शाजिया कहती हैं कि मुझे पता था कि लोगों का बिहैवियर चेंज होने में समय लगता है। उसके लिए खुद को तैयार रखा था कि अभी सर्विस है नहीं, जब सर्विस शुरु हो जाएगी तो लोग इसके बारे में सोचेंगे। फुटवियर के रिटेलर शॉप कीपर से शू क्लीनिंग का काम आ सकता है। यदि कस्टमर को सीधे शूज मेंटेनेंस की सर्विस मिल जाए तो वह अपने फुटवियर को क्लीन कराएंगे। साफ शूज पहनेंगे तो लोगों की हाइजीन ठीक होगी।
Last Updated Aug 10, 2023, 1:54 PM IST