वैसे तो बेंगलुरु के डॉ. प्रभाकर राव ने प्लांट ब्रीडिंग और जेनेटिक्स में पीएचडी की है। लैंडस्केप आर्किटेक्चर की पढ़ाई कर डॉ. राव दुबई चले गए। पर विदेश में रहने के बाद भी गायब हो रहे पौधों की प्रजातियों को प्रिजर्व करने का उनका जुनून कम नहीं हुआ।
बेंगलुरु। वैसे तो बेंगलुरु के डॉ. प्रभाकर राव ने प्लांट ब्रीडिंग और जेनेटिक्स में पीएचडी की है। पढ़ाई के दौरान उन्होंने थाली से गायब हो रही सब्जियों के बीजों को प्रिजर्व करने की जरुरत को समझा। वह उस समय के कृषि वैज्ञानिक हैं, जब देश में फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए हाइब्रिड बीज, खाद और सिंचाई के तरीकों पर काम चल रहा था। लैंडस्केप आर्किटेक्चर की पढ़ाई कर डॉ. राव दुबई चले गए। पर विदेश में रहने के बाद भी गायब हो रहे पौधों की प्रजातियों को प्रिजर्व करने का उनका जुनून कम नहीं हुआ।
सब्जियों की बहुत सी वैराइटी हो चुकी है खत्म
डॉ. प्रभाकर राव कहते हैं कि एक मैगजीन में एक बार पढ़ा था कि पूरे संसार से देसी बीज खत्म होते आ रहे हैं। भारत में देखा तो खासतौर पर सब्जी के बीच हाइब्रिड ही मिल रहे हैं। देसी बीज कहां से मिलता है? यह जानकारी करने की कोशिश करने लगा तो पता चला कि हमारी सब्जियों की बहुत सी वैराइटी खत्म हो चुकी है। अब सबसे बड़ा चैलेंज यह था कि उन सब्जियों के बीजों को पुनर्जीवित कैसे किया जाए, जिसके बीज ही नहीं मिल रहे हैं।
500 से ज्यादा वैराइटी की सब्जियों के बीज
डॉ. प्रभाकर राव साल 2011 में दुबई से भारत आए और देसी सब्जियों के बीजों को प्रिजर्व करने की शुरुआत की। हरियाली सीड्स (hariyaleeseeds) बनाई और गायब हो रहीं अलग-अलग किस्मों की सब्जियों और पौधों के बीजों को प्रिजर्व करने का काम शुरु कर दिया। बेंगलुरु स्थित हरियाली सीड्स आने वाली पीढ़ियों के लिए सब्जियों की बीजों को सुरक्षित रखने का प्रयास कर रहा है। सीड्स बैंक में 500 से ज्यादा किस्म की सब्जियों के बीज है। डॉ. प्रभाकर राव दिल्ली स्थित सेंट्रल विस्टा समेत अहम प्रोजेक्ट की लैंडस्केप आर्किटेक्चर से भी जुड़े हैं।
आदिवासी बहुल क्षेत्रों में मिले बीज
गायब हो रही सब्जियों के बीज भी उन्हीं इलाकों में मिलने शुरु हुए, जिन इलाकों में रासायनिक खेती पूरी तरह स्थापित नहीं हुई है। डॉ. प्रभाकर राव वैदिक कृषि तकनीकों पर आधारित रसायन मुक्त प्राकृतिक खेती को भी प्रमोट करते हैं। देश भर में 22 लाख किसानों को प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग देते हैं। इस सिलसिले में जब वह रिमोट इलाकों, जैसे—आदिवासी बहुल क्षेत्रों में गए तो वहां उन्हें गायब हो रहीं देसी सब्जियों के बीज मिलने शुरु हुए। डॉ. प्रभाकर राव कहते हैं कि छत्तीसगढ़, नार्थ इस्ट और मध्य प्रदेश के कुछ आदिवासी इलाकों में यह बीज मिलेंगे। आदिवासी बहुल क्षेत्रों में इन बीजों को बचाकर रखा गया है। पर जहां पूरी तरह रासायनिक खेती होती है। उन इलाकों में गायब हो रहीं देसी सब्जियों का बीज नहीं मिलता है। हरियाणा, पंजाब, यूपी आदि राज्यों में ये बीज मिलने मुश्किल हैं।
क्या है प्राकृतिक खेती
प्राकृतिक खेती एक बहुत ही प्राचीन तकनीक है। जहां हम देसी गाय के गोबर और गौमूत्र से जमीन के सत्व को पुनर्जीवित करके सस्टेनेबल एग्रीकल्चर कर सकते है। बेसिकली, यह तकनीक देसी गाय के गोबर और गोमूत्र पर आधारित है।
Last Updated Jul 14, 2023, 12:01 PM IST