पूर्व राष्ट्रपति APJ Abdul Kalam से इंस्पायर कुशीनगर के रहने वाले जैनुल आब्दीन रियूजेबल रॉकेट बना रहे हैं। इस टेक्नोलॉजी को क्रैक करने वाला देश का पहला और दुनिया का 7वां स्टार्टअप शुरू किया, वह भी सिर्फ 19 साल की उम्र में।
हैदराबाद। कुशीनगर के रहने वाले जैनुल आब्दीन का नाम देश के 11वें राष्ट्रपति रहे मिसाइल मैन अवुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम (APJ Abdul Kalam) से मैच करता है। इस समानता से जैनुल इतने प्रभावित हुए कि तारों-सितारों की दुनिया में उनकी गहरी रूचि हो गई। शुरुआती दिनों में ही उन्होंने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में काम करने की ठान ली। गोरखपुर के सेंट्रएंड्रयूज डिग्री कॉलेज से भौतिकी में ग्रेजुएशन करने के दौरान ही मात्र 19 साल की उम्र में 'एब्योम स्पेसटेक और डिफेंस' कम्पनी बनाई।
प्रक्षेपण की लागत में आएगी कमी
आपको जानकर हैरानी होगी जैनुल देश का पहला रियूजेबल रॉकेट बना रहे हैं। जिसको प्रक्षेपण के लिए कई बार यूज किया जा सकता है। अब तक देश में प्रक्षेपण के लिए रॉकेट का सिर्फ एक बार ही इस्तेमाल होता है। एक रॉकेट बनाने में करीबन 100 करोड़ रुपये खर्च आता है। पर इस तकनीक से यह खर्चा 20 करोड़ तक सिमट जाएगा। जैनुल का इनोवेशन प्रक्षेपण की लागत को काफी कम कर देगा। उनकी कम्पनी कम लागत वाले रियूजेबल लांच व्हीकल्स पर भी काम कर रही है।
कुशीनगर से 12वीं की पढ़ाई
कुशीनगर में जन्मे जैनुल आब्दीन के पिता साबिर अली कोलकाता में काम करते थे। वहीं उनकी शुरुआती पढ़ाई हुई। जब वह हाईस्कूल में थे। तभी पिता का काम छूट गया तो वह कुशीनगर वापस लौट आएं। जैनुल ने कोलकाता से 10वीं की पढ़ाई पूरी की और फिर वह भी कुशीनगर आ गए और वहीं एक स्कूल से 12वीं तक पढ़ाई की। चूंकि बचपन से ही उनका इंटरेस्ट अंतरिक्ष विज्ञान में था। इसलिए उन्होंने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में काम करने पर फोकस किया और रिसर्च करते रहें कि इस क्षेत्र में क्या नया कर सकते हैं?
ग्रेजुएशन के पहले साल से लग गए अपने काम में
ग्रेजुएशन के लिए उन्होंने गोरखपुर के सेंटएंड्रयूज डिग्री कॉलेज में दाखिला लिया और पढ़ाई के पहले वर्ष में राकेट बनाने की तकनीक के बारे में जानकारी करनी शुरु की। ब्लू ओरिजिन और स्पेसएक्स दुनिया की इकलौती ऐसी कंपनियां हैं, जो रॉकेटों को दोबारा धरती पर उतारने में सक्षम बनाती हैं। माई नेशन से बात करते हुए जैनुल कहते हैं कि साल 1960 से ही भारत रॉकेट लॉन्च कर रहा है। पर अभी भी हम सिर्फ वही रॉकेट बनाते हैं, जो एक बार प्रक्षेपण में सफल है, पर उसे धरती पर दोबारा सुरक्षित उतार नहीं सकते।
केंद्र सरकार नई पॉलिसी लाई तो खुल गए रास्ते
जैनुल कहते हैं कि यह जानने के बाद विचार आया कि यदि हम भी ऐसी तकनीक लाएं। जिससे रॉकेट का मल्टीपल यूज कर सकें तो उसमें खर्चा काफी कम आएगा। ग्रेजुएशन के पहले साल ही उन्होंने इस पर काम करना शुरु कर दिया। उसी दौरान भारत सरकार एक नई पॉलिसी लेकर आई। भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को प्राइवेट सेक्टर के लिए भी खोलने का निर्णय लिया गया। इस काम के लिए इसरो की एक विशेष इकाई 'भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र' का गठन किया गया। इस इकाई के गठन का मकसद प्राइवेट सेक्टर के लिए बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराना था। यह जानकारी आम हुई तो जैनुल को भी इसके बारे में पता चला और उनका जोश हाई हो गया। फिर उन्होंने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में काम करने की अपनी तैयारी तेज कर दी।
देश की पहली स्पेश ट्यूटर बनी जैनुल की टीम
उनके रिसर्च को इसरो ने भी सराहा। इसरो की तरफ से अगस्त 2020 में 'अनलाकिंग इंडियाज पोटेंशियल इन स्पेस सेक्टर' विषय पर वेबिनार आयोजित किया गया था। उसमें देश भर के एयरोस्पेश साइंटिस्ट्स के अलावा 4 स्टूडेंट्स को भी इनवाइट किया गया था। जैनुल भी उन स्टूडेट्स में शामिल थे। वेबिनार में जैनुल ने वैज्ञानिकों से अपना प्लान साझा किया और फिर चर्चा आगे बढ़ी। उसके बाद ही इसरो के सलाह पर जैनुल ने कम्पनी का गठन किया। उस समय वह अपने ग्रेजुएशन के दूसरे साल में पहुंच गए थे। फिर एक साल रिसर्च के बाद जैनुल की टीम देश की पहली स्पेश ट्यूटर बनी। उसी समय कोविड महामारी का दौर भी चल रहा था। पर जैनुल का रिसर्च वर्क रूका नहीं। वह रियूजेबल रॉकेट बनाने के अपने आइडिया पर रिसर्च करते रहें और ग्रेजुएशन कम्पलीट करने के बाद बिट्स पिलानी (BITS Pilani) में खुद को इन्क्यूबेट किया। रिसोर्सेज मिले और 3 लोगों की टीम के साथ उनकी कम्पनी ने काम शुरु कर दिया। अब उनकी कम्पनी में 30 लोगों की टीम काम कर रही है।
देश से पहला एस्ट्रोनॉट अंतरिक्ष में भेजना है ड्रीम
जैनुल आब्दीन कहते हैं कि बचपन से ही मेरे दिमाग में था कि स्पेश साइंस में रिसर्च कैसे कर सकता हूॅं? मेरा फोकस था कि एस्ट्रोनॉट के रूप में कैसे काम किया जाए। 12वीं पास करने के दौरान रिसर्च किया तो पता चला कि देश के राकेश शर्मा और कल्पना चावला जैसे लोग दूसरे देशों की कम्पनी के जरिए अंतरिक्ष में गए, क्योंकि हमारे पास रियूजेबल टेक्नोलॉजी नहीं थी, तौ मैंने तय किया कि देश का पहला एस्ट्रोनॉट अंतरिक्ष में भेजना है और इसी सपने को पूरा करने के लिए काम शुरु कर दिया। वह पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से इंस्पायर है।
जैनुल आब्दीन ने इंटरप्रेन्योर के लिए क्या कहा?
अपना ड्रीम पूरा करने की राह में आए स्ट्रगल पर जैनुल कहते हैं कि जब आप पहला स्टेप लेते हैं तो समझ में आ जाता है तो दूसरा स्टेप क्या लेना है। स्टार्टअप में नये नये प्राब्लम आएंगे और आपको ही उसका सॉल्यूशन निकालना होगा। उसे ही हम इंटरप्रेन्योर कहते हैं।
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Last Updated Jul 15, 2023, 5:03 PM IST