मुंबई। अब तक आपने बॉलीवुड मूवीज में देखा होगा कि बिछड़े बच्चे के शरीर पर बना निशान उन्हें परिवार से मिलाने में मदद करता है। मुंबई के डेटा इंजीनियर अक्षय रिडलान हकीकत में कुछ ऐसा ही काम करके मेंटली डिसएबल बच्चों-बुजुर्गों को उनके परिवार से मिला रहे हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि इस काम में शरीर पर बना कोई निशान नहीं, बल्कि उनका बनाया गया QR Locket मदद कर रहा है। गुरूवार को मुंबई में एक मेंटली डिसएबल बच्चा अपने परिवार से बिछड़ गया था, जो चंद घंटों में ही QR Locket की मदद से अपने परिवार से मिल सका। माय नेशन हिंदी से उन्होंने यह वाकया शेयर किया है। 

12 वर्षीय गुम स्पेशल चाइल्ड कैसे परिवार से मिला?

दरअसल, 11 अप्रैल को मुंबई के वर्ली के रहने वाले 12 वर्षीय विनायक (मानसिक रूप से अस्वस्थ) खेलते हुए बस में चढ़ गए और दोपहर 3 बजे तक कोलाबा पहुंच गए। बस कंडक्टर  बच्चे की हालत देखकर चिंतित हुआ और इमरजेंसी नंबर पर संपर्क साधा। रात 10 बजे मामला कोलाबा पुलिस स्टेशन पहुंच चुका था। विनायक ने अक्षय रिडलान की संस्था (प्रोजेक्ट चेतना) का क्यूआर पेंडेंट पहना हुआ था। पुलिस अधिकारियों ने जब पेंडेंट को स्कैन किया तो बच्चे के घर के एड्रेस समेत अहम जानकारी मिली। फिर परिवार को विनायक की जानकारी दी गई। बच्चे को ढूंढ़ रहा परिवार पुलिस स्टेशन पहुंचा।

देश भर में 5,530 क्यूआर पेंडेंट बांटे

अक्षय रिडलान कहते हैं कि देश भर में ऐसे 5,530 क्यूआर पेंडेंट फ्री वितरित किए गए हैं। ताकि मेंटली डिसएबल बच्चों या बुजुर्गों को ढूंढ़ने में परेशानी का सामना न करना पड़े। क्यूआर पेंडेंट के जरिए विनायक दोबारा अपने परिवार से मिल सका। इससे हम रोमांचित हैं। क्यूआर कोड को स्कैन करके कोई भी गुम हुए शख्स के परिवार के बारे में जान सकता है और उन्हें जानकारी दे सकता है। देश में हर साल हजारों की संख्या में मेंटली चैलैंज्ड लोगों के गायब होने की खबरें आती हैं। ऐसे बुजुर्ग जो अल्जाइमर या डिमेंशिया से पीड़ित हैं, उनके लिए भी अपने घर का एड्रेस बताना मुश्किल होता है। परिवार से न मिल पाने के कारण उन्हें सड़कों पर अपना जीवर गुजारना पड़ता है। ऐसे लोगों के लिए यह क्यूआर पेंडेंट वरदान से कम नहीं है। कोई भी शख्स प्रोजेक्ट चेतना की वेबसाइट पर (projectchetna.in) पर रजिस्ट्रेशन कर यह प्राप्त कर सकता है।

कैसे आया क्यूआर पेंडेंट बनाने का आइडिया?

मई 2020 में अक्षय रिडलान का डॉग खो गया था। उन्होंने उसे खोजने की बहुत कोशिश की। पर सफलता नहीं मिली तो ऐसा डिवाइस बनाने का विचार आया, जो गुम हुए पेट्स की सुरक्षित वापसी करा सके। उन्होंने पहले पेट्स के लिए क्यूआर कोड वाला एक कॉलर बनाया। जिसे स्कैन पर करने पेट्स का नाम और केयर कॉन्टेक्ट की डिटेल मिलती है। बीएमसी के साथ मिलकर आवार कुत्तों के लिए यह प्रोजेक्ट लॉन्च किया। एक तरह से यह डॉग्स के लिए आधार की तरह काम करता है। फिर मेंटली डिसएबल लोगों के लिए क्यूआर लॉकेट लेकर आए। इस लॉकेट के क्यूआर कोड को स्कैन करने के बाद मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों के परिवार के कॉन्टेक्ट डिटेल समेत अहम जानकारियां मिलती है। 


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