पोलियो और दृष्टिहीनता जैसी चुनौतियों को मात देकर, कपिल परमार और शरद कुमार ने पेरिस पैरालंपिक 2024 में मेडल जीतकर हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा किया। ये कहानियां हिम्मत और आत्मविश्वास से लबरेज हैं।
नई दिल्ली: कभी सुना है, पोलियो से पैर खराब फिर भी लगाई हाई जंप और सिल्वर जीता। ठीक से दिखना भी मुश्किल पर जूडो में वर्ल्ड चैंपियन। यह फिल्मी कहानियां नहीं, बल्कि रियल लाइफ स्टोरीज हैं। मां भारती के उन लाडलों की ट्रू लाइफ स्टोरी है, जिनकी हिम्मत के आगे शारीरिक चुनौतियों ने भी घुटने टेक दिए। पेरिस पैरालंपिक 2024 में देश के इन होनहारों ने मेडल जीतकर हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया और पूरी दुनिया को दिखा दिया है कि असली जीत आत्मविश्वास की होती है। यह कहानियां आपके सीने में आग भर देंगी।
कपिल परमार: अंधेरा भी नहीं बुझा पाया सपना
कपिल परमार की कहानी संघर्ष और हौसले की सबसे बड़ी मिसाल है। बचपन में एक हादसे में उनकी आंखों की रोशनी चली गई, लेकिन यह अंधकार भी उनके सपनों को नहीं बुझा सका। जब उन्होंने जूडो को अपनाया, तब शायद ही किसी ने सोचा हो कि वह एक दिन पैरालंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीतेंगे। मध्य प्रदेश के सिहोर में पैदा हुए कपिल जब 9 साल के थे, तो मोटर से पानी निकालने के दौरान उन्हें करंट लगा, जिससे उनकी आंखों की रोशनी लगातार कम होती चली गई।
लखनऊ में ट्रेनिंग, जीते ये मेडल
कपिल ने लखनऊ में कोच मुनव्वर अंजार अली सिद्दीकी के गाइडेंस में जूडो की बारीकियां सीखीं। 2019 में कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में गोल्ड, 2022 में एशियन पैरा गेम्स में सिल्वर और 2023 में वर्ल्ड गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीता।
पैरालंपिक की जीत ऐतिहासिक
कपिल परमार ने पेरिस पैरालंपिक 2024 में जूडो में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर भारत को पैरालंपिक जूडो का पहला मेडल दिलाया। ब्रॉन्ज मेडल मैच में उन्होंने ब्राजील के खिलाड़ी को मात्र 33 सेकंड में हराया, जो एक अविश्वसनीय परफॉर्मेंस था।
शरद कुमार: पोलियो को हराकर ऊंची छलांग
बिहार के मोतीपुर गांव में जन्मे शरद जब सिर्फ दो साल के थे, तब उन्हें पोलियो हो गया था। माता-पिता ने इलाज के लिए बहुत कोशिशें कीं, लेकिन जब कोई फायदा नहीं हुआ तो उन्होंने इसे भगवान की इच्छा मान लिया और शरद को रेगुलर व्यायाम करने के लिए प्रेरित करते रहें। पोलियो के कारण उनके पैर कमजोर हो गए थे, लेकिन शरद ने कभी हार नहीं मानी।
भाई को देखकर हाई जंप में आया इंटरेस्ट
शरद को 4 साल की उम्र में बोर्डिंग स्कूल भेजा गया, लेकिन उन्हें वहां खेलों में भाग लेने की अनुमति नहीं थी। फिर भी शरद ने हार मानने की बजाय हाई जंप में अपनी किस्मत आजमाने का फैसला किया। स्कूल में खेल के समय बेंच पर बैठने वाले शरद की रुचि हाई जंप में इसलिए बढ़ी क्योंकि उनके बड़े भाई स्कूल में रिकॉर्ड धारक थे।
पेरिस पैरालंपिक में सिल्वर मेडल
शरद ने अपनी मेहनत और लगन से 2024 पेरिस पैरालंपिक में ऊंची कूद में सिल्वर मेडल जीता। उन्होंने 1.88 मीटर की छलांग लगाई और यह साबित कर दिया कि कोई भी शारीरिक कमजोरी मनोबल को नहीं तोड़ सकती।
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Last Updated Sep 14, 2024, 4:49 PM IST