लखनऊ. कुछ लोगों के जीवन में सब कुछ होते हुए भी वो खुद को संपूर्ण नहीं मानते, बेचैन रूह की तरह कुछ तलाश करते रहते हैं, ऐसी ही एक महिला हैं ओम सिंह चैतन्य जिनके पास सब कुछ था, लेकिन गरीबों और ज़रूरतमंदों के लिए वो हमेशा संवेदनशील रहीं और अपनी पॉकेट मनी और पति की आधी तनख्वाह असहाय  लोगों पर खर्च करती हैं।  

गोल्ड मेडलिस्ट रही हैं ओम
ओम का होम टाउन प्रयागराज में है, उनके पिता रेलवे में इंस्पेक्टर थे, माँ हॉउस वाइफ थीं और २ बहन एक भाई हैं। ओम ने इलाहबाद यूनिवर्सिटी से बॉटनी से एमएससी किया, फिर एमएड में गोल्ड मेडल हासिल किया, साइक्लोजी में डिग्री लिया, चूँकि घर में एकेडमिक्स का माहौल था तो शादी के बाद भी ओम ने पढाई जारी रखी और लखनऊ यूनिवर्सिटी से योगा और नेचुरोपैथी की डिग्री हासिल किया।  

किचन में काम करना नहीं था अलाउ
ओम कहती हैं उनके पिता पढाई को लकर बहुत सख्त थे, पढाई के दौरान या एग्जाम टाइम में उन्हें किचन में काम करने की इजाज़त नहीं थी, बल्कि घर का कोई भी काम नहीं करने दिया जाता था ,पढाई के लिए रात एक बजे भी घर से जाने की इजाज़त थी लेकिन घूमने के लिए नहीं, यही वजह है की वो और उनके भाई बहनो ने  प्रोफेशनल एजुकेशन हासिल कर खुद को एस्टाब्लिशड किया।

पहली नौकरी के लिए घर से नहीं मिली इजाज़त
माय नेशन से बात करते हुए ओम ने बताया की साल 2001 में उनकी सबसे पहली जॉब शिलौंग में केंद्रीय विद्यालय में लगी थी, लेकिन शिलोंग का माहौल ठीक न होने के कारन पिता ने इजाज़त नहीं दी।

इटली में शिप पर मिला सरप्राइज़
ओम की शादी साल 2002 में हुई थी. उनके पति मर्चेंट नेवी में ऑफ़िसर हैं, शादी के बाद वो पति के साथ इटली में शिप पर थी तो उनको पता चला की नवोदय विद्यालय बुलंदशहर में उनकी बायोलॉजी की लेक्चरर की नौकरी लग गयी, जब वो लौट कर आईं और बुलंदशहर गयीं तो वहां उनसे रिश्वत की डिमांड की गयी जिसके कारण ओम ने नौकरी छोड़ दिया। इस तरह उन्होंने 5 बार सरकारी नौकरी ठुकरा दिया।  

नौकरी छोड़ने का कोई रिग्रेट नहीं 
सरकारी नौकरी त्यागने के बारे में ओम कहती हैं,शुरू में सरकारी नौकरी करना चाहती थी, हर जगह सिलेक्शन भी होता चला गया , लेकिन फिर लगा भगवान मुझसे कुछ और करवाना चाहता है, नौकरी करती तो गरीबों के साथ वक़्त बिताने का मौका नहीं मिलता। ज़रूरतमंदों के साथ आज जितना समय दे पा रही हूँ शायद नौकरी के साथ नहीं कर पाती, और सबसे बड़ी बात है सेल्फ सटिस्फैक्शन, वो मुझे दिन भर झुग्गी झोपडी के गरीब बच्चों के साथ ही मिलता है।  

और खोला अपना एनजीओ
साल 2016 में ओम ने अपना एनजीओ खोला चैतन्य वेलफेयर फाउंडेशन, इन 7 सालों में अब तक वो 20 हज़ार लोगों की मदद कर चुकी हैं, पूरे यूपी में उनके एनजीओ की पब्लिसिटी  माउथ टू माउथ और सोशल मीडिया के ज़रिये इतनी ज़्यादा हुई की उन्हें दिन भर लोगों की मदद के लिए कॉल आते रहते हैं।  

पूरी पॉकेट मनी खर्च करती हैं गरीबों पर
ओम  अपने एनजीओ के ज़रिये चार मुख्य क्षेत्र में काम करती हैं, पर्यायवरण,गरीबों  को भोजन, ब्लड डोनेशन कैम्प और गरीब बच्चों की पढाई, इन सब के लिए वो अपने पति की आधी तनख्वाह और अपनी पूरी पॉकेटमनी का इस्तेमाल करती हैं, किसी ने पब्लिक फंड कर  दिया तो ठीक लेकिन वो खुद किसी से नहीं मांगती।  कोविड में उन्होंने कम से कम ५ हज़ार घरों में राशन पहुँचाया।

मन संतुष्ट रहता है
ओम  कहती हैं गरीबो की सेवा से मेरा मन बहुत संतुष्ट रहता है, आज तमाम लोगों के पास मेरा कांटेक्ट नंबर है जो बीमारी, भुखमरी, परेशानी के समय मुझे बेझिझक कॉल करते हैं, ये भगवन की कृपा है मुझ पर, आज मेरा समय अपने बच्चों को पढ़ाने लिखाने के साथ साथ समाज में ज़रूरतमंदों के साथ गुज़र रहा है और उसके लिए मैं ऊपर वाले शुक्र गुज़ार हूँ।

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