Success Story: यूपी के प्रयागराज के रहने वाले अरुप वर्मा के परिवार की माली हालत शुरुआती दिनों में ठीक नहीं थी। उनके पिता को कोलकाता के एक निजी स्कूल में टीचर की जॉब मिली तो परिवार कोलकाता शिफ्ट हो गया। इन्हीं हालातों के बीच अरुप  का जन्म हुआ। बचपन में उनको चलने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा। मॉं-पिता इस बात से डरे थे कि शायद उनका बेटा बड़ा होकर ठीक से चल न सके। पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। उनके उसी बेटे ने अपने कॅरियर में लंबी छलांग लगाई। अब शिकागो की एक यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं।

बचपन में मां-बाप को थी सेहत की चिंता

अरुप के जन्म के समय उनके मां-बाप को बच्चे के सेहत की चिंता थी। बचपन में अरुप को चलने में काफी समय लगा। उनके मां-बाप इसको लेकर चिंतित रहते थे कि अरुप चल सकेंगे या नहीं। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। एक कमरे में गुजारा करना पड़ता था। बाथरूम भी कॉमन था। टॉयलेट की सुविधा नहीं थी। मां की इच्छा थी कि उनका बेटा पढ़े। इसलिए बड़े भाई के साथ स्कूल भेजना शुरु किया।

वर्किंग कल्चर में गुजरा बचपन

समय के साथ अरुप के पिताजी ने बिजनेस की तरफ कदम बढ़ाया। उनकी स्कूल बसें चलने लगीं। अरुप बचपन से ही अपने पिता के काम में हाथ बंटाने लगे। सुबह 5 बजे से लेकर रात 9 बजे तक पढ़ाई से लेकर काम की जिम्मेदारियां निभाते थे। उनका बचपन ही वर्किंग कल्चर में गुजरा।

कोलकाता से बीएससी, 1984 में रैनबैक्सी में नौकरी

कोलकाता से बीएससी ऑनर्स करने के बाद अरुप वर्मा आगे की पढ़ाई के लिए जेवियर स्‍कूल ऑफ मैनेजमेंट जमशेदपुर, झारखंड चले गए। 1984 में उनकी डिग्री पूरी हुई। यह उनके लिए बहुत बड़ी बात थी, क्योंकि उसके बाद उन्हें प्रतिष्ठित फॉर्मा रैनबैक्सी कंपनी में नौकरी मिल गई। कम्पनी के प्लांट पर भी काम किया।

विदेश से पीएचडी करने के बाद असिस्टेंट प्रोफेसर

अरुप वर्मा ने साल 1987 से 1990 तक कंप्‍यूटर्स लिमिटेड में भी काम किया। पर उनका मन पढ़ाई में रमता था। वह आगे की पढ़ाई करना चाहते थे। कहते हैं कि जहां चाह, वहां राह। यही अरुप गुप्ता के साथ भी हुआ। उनको अमेरिका की रटगर्स यूनिवर्सिटी में दाखिला मिल गया। वहां से पीएचडी करने लगे। पीएचडी पूरी होने के बाद अरुप वर्मा को 1996 में लोयोला यूनिवर्सिटी शिकागो में असिस्‍टेंट प्रोफेसर की जॉब मिली। अब तक वह 80 देशों में मैनेजमेंट की क्लास ले चुके हैं।  

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