झारखंड की सुधा अंकिता टिर्की ने अपने सपनों को उड़ान देने के लिए अक्सर भूखे पेट रातें गुज़ारी। बचपन से अपनी मां को पिता से पिटते  हुए देखा। इन्हीं  लड़ाई झगड़ों के दरमियान सुधा की आंखों में फुटबॉलर बनने का सपना चमक रहा था। पैसे की तंगी घर का माहौल कुछ भी सुधा के फेवर में नहीं था लेकिन सुधा ने हर मुश्किल को पटखनी दिया और फीफा वर्ल्ड कप तक पहुंच गई। माय नेशन हिंदी से बात करते हुए सुधा अंकिता ने अपनी जर्नी शेयर किया।

कौन है सुधा अंकिता टिर्की

सुधा का जन्म 8 अक्टूबर 2005 को झारखंड में हुआ था। उनके पिता चैनपुर प्रखंड के कार्तिक पंचायत के छतरपुर  गांव में रहते हैं। जब सुधा सिर्फ 5 साल की थी तब पिता ने उनकी मां ललिता को सुधा और उनकी छोटी बहन के साथ घर से बाहर निकाल दिया।  गुमला के सेंट पैट्रिक इंटर कॉलेज से सुधा ने इंटर पास किया । सुधा की मां ने दानपुर में एक किराए का कमरा लिया और एक अंग्रेजी मीडियम स्कूल में झाड़ू पोछा लगाकर अपनी दो बेटियों की परवरिश की।

 

कैसे बनी सुधा फुटबॉलर

सुधा को बचपन से फुटबॉल खेलने का शौक था स्कूल में पढ़ाई के दौरान सुधा ने कई फुटबॉल प्रतियोगिताओं में भाग लिया और इनाम जीता। इसी जज्बे के साथ साल 2019 में महाराष्ट्र के कोल्हापुर में जूनियर नेशनल फुटबॉल चैंपियनशिप के दौरान सुधा का चयन इंडिया कप के लिए हुआ। इसी साल फीफा अंडर 17 वर्ल्ड कप प्रतियोगिता के लिए इंडियन टीम ट्रेनिंग के लिए कैंप पहुंच चुकी थी लेकिन कोविड के चलते उसे स्थगित कर दिया। सुधा प्रैक्टिस करती रही लेकिन फुटबॉल के सभी कैंप का टूर्नामेंट कोरोना के दौरान बंद चल रहे थे। यह इंतजार लंबा था लेकिन सुधा को भरोसा था की किस्मत आज नहीं तो कल उनका साथ देगी

वर्ल्ड कप में नाम देख आंखों से छलका आंसू 

साल 2022 में इंडियन फुटबॉल फेडरेशन ने जमशेदपुर में इंडिया ट्रेनिंग कैंप की शुरुआत की ताकि अंडर 17 फीफा वर्ल्ड कप के खिलाड़ियों का सिलेक्शन हो सके। कैम्प पर कुल 33 खिलाड़ियों का चयन हुआ । उसके बाद 4 अक्टूबर 2022 को इंडियन वूमेन अंडर 17 टीम फीफा अंडर 17 वर्ल्ड कप के लिए 21 सदस्यों की टीम की घोषणा की जिसमें सुधा का भी नाम था। अपना नाम वर्ल्ड कप के लिए देखकर सुधा की आंखों से आंसू छलक गए। किस्मत ने उन्हें मौका दिया था कुछ करने का पुरानी तकलीफों को खुशी में बदलने का। 

 

भूखे पेट सोना पड़ा था कभी 

सुधा कहती हैं मेरी मां ने मेरे सपनों को उड़ान देने में बहुत अहम भूमिका निभाई है। कोविड में वह दौर भी देखा जब भूखे पेट सोना पड़ा। मां की आमदनी सिर्फ इतनी थी कि जैसे तैसे गुजर बसर हो सके। कभी किसी चीज को खाने का यह खरीदने का मन भी करता तो हम अपना मन मार लेते थे। घर की जरूरत को पूरा करने में सुधा की मां कर्जदार हो गई जिससे सुधा ने फुटबॉल खेल कर मिले पैसों से चुकाया।

सुधा कहती है भले ही हम फीफा वर्ल्ड कप नहीं जीत पाए लेकिन मेरा फोकस आज भी मेरे गोल पर है। आज नहीं तो कल हम देश के लिए जरूर ट्रॉफी जीत कर लाएंगे। वह कहती है मेरा लक्ष्य अच्छा खेल खेलना है। इसके पहले भी सुधा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तुर्की में देश के लिए फुटबॉल खेल चुकी हैं। सुधा रहती हैं हम आज भी किराए के घर में रहते हैं।

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