इंदौर। मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले के कालापीपल के छापरी गांव निवासी तथागत बरोड़ ने एनआईटी भोपाल से ग्रेजुएशन और आईआईटी मुंबई से पोस्टग्रेजुएशन किया है। जॉब करने के बजाए  5 साल से जैविक खेती कर रहे हैं। इलाके के किसानों के लिए रोल मॉडल बनकर उभरे हैं। माई नेशन हिंदी से बात करते हुए तथागत बरोड़ कहते हैं ​कि अभी जैविक प्रोडक्ट का ऐसा मार्केट नहीं है, जहां आप जाकर अपनी चीजें बेच पाएं। किसान भी मार्केट की वजह से पीछे हटता है। धीरे-धीरे मार्केट करने लगे हैं। अब ब्रेक-ईवन पर आ गए हैं। उसी को आगे बढ़ा रहे हैं। 

आदिवासी सभ्यता से बच्चों को रू-ब-रू कराया, 2017 में लौटे गांव

जॉब की बजाए खेती को अपना कॅरियर बनाने वाले तथागत बरोड़ ने ग्रेजुएशन के बाद अलग-अलग जगहों की यात्रा की। घर-परिवार के लोग पहले से ही खेती से जुड़े थे। यह देखकर उन्हें भी लगा कि खेती में ही कुछ करना चाहिए। साथ ही IIT में दाखिला ले लिया। उस दौरान उन्हें काफी कुछ सीखने को मिला। यह भी जाना कि गांवों के विकास के लिए एग्रीकल्चर को आत्मनिर्भर बनाना होगा। पोस्टग्रेजुएशन के अंतिम वर्ष में उन्होंने शहरी बच्चों को आदिवासी सभ्यता, रहन-सहन और अन्य तौर-तरीको से रू-ब-रू कराने के लिए एक प्रोजेक्ट भी शुरु किया था। बाद में उन्हें लगा कि खेती के लिए कुछ करना चाहिए और साल 2017 में अपने गांव लौट आए।

 

किसानों के लिए खुद बन गए उदाहरण

किसानों को आर्गेनिक खेती के बारे में जानकारी देनी शुरु कर दी। पर तब कोई भरोसा करने को तैयार नहीं था। उन्हें लगा कि खुद उदाहरण पेश करके ही किसानों को भरोसा दिलाया जा सकता है। इसी सोच के साथ तथागत ने थोड़ी जमीन पर आर्गेनिक खेती शुरु की। अब, करीबन 18 एकड़ में आर्गेनिक तरीके से 17 फसल उगा रहे हैं। उनमें मोरिंगा, आंवला, अदरक, हल्दी, चना और लेमन ग्रास जैसी फसले हैं। इन फसलों की खेती से उनकी आय भी हो रही है। पर अभी वह ब्रेक-ईवन पाइंट पर ही पहुंचे हैं। मतलब जितनी लागत खेती में लग रही है, उतना पैसा फसलों की बिक्री से निकल जा रहा है।

जैविक खेती के देते हैं ये टिप्स

तथागत का मानना है कि आप पहली बार में ही पूरी तरह से जैविक किसान बन जाएं, यह जरूरी नहीं है। जमीन के थोड़े से हिस्से में जैविक खेती करके भी आगे बढ़ सकते हैं। तब कुछ वर्षों में आपकी पूरी खेती जैविक हो सकती है। बहरहाल, तथागत किसानी के क्षेत्र में ही आगे बढ़ने का फैसला कर चुके हैं। वह प्रोडक्ट्स की प्रोसेसिंग और पैकेजिंग पर भी काम कर रहे हैं। जिससे मुनाफा बढ़ जाता है। 

गौशाला से गोबर गैस तक

तथागत बरोड़ ने एक गौशाला भी शुरु की है। दूध और उससे बने उत्पाद भी सीधे कस्टमर को देते हैं। गोबर का यूज करके गोबर गैस भी बना रहे हैं। गोबर ओर गोमूत्र का उपयोग खेतों में करते हैं। वह खेतों में यूज करने के लिए खाद और कीटनाशक दवाएं बाहर से नहीं खरीदते हैं। उनका मानना है कि यदि किसान खेती को ही नौकरी की तरह ले और काम करे तो उसका इन्वेस्टमेंट कम होगा, पैसों की बचत होगी। बहरहाल, इलाके में वह किसानों के लिए एक रोल मॉडल बनकर उभरे हैं। 

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