सृष्टि कैसे उत्पन्न हुई। इस बारे में देवी भागवत में कथा मिलती है, जो बाकी कथाओं से अलग है। जिसके मुताबिक आदिकाल में हर ओर सिर्फ उर्जा का प्रवाह था, उस उर्जा ने स्वयं को आदिशक्ति जगदंबा यानी स्त्रीरुप में  बदला, जिन्होंने ब्रह्मा, विष्णु और महेश को उत्पन्न किया। फिर इन्हीं त्रिदेवों ने अपनी शक्ति से सृष्टि की रचना की। 

कथा बेहद गूढ़ रहस्यों से भरी है, जो अपने आप में सृष्टि उत्पन्न होने का रहस्य समेटे हुए है। शुरु करने से पहले इसका वैज्ञानिक संदर्भ समझाने का प्रयास करूंगा। वर्तमान समय के सबसे महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंस के ताजा शोध के मुताबिक एक परमाणु जिस प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन से बने होते हैं। उन तीनो तत्वों का निर्माण स्ट्रिंग्स यानी उर्जा तरंगों से हुआ है। हॉकिंस की इस स्ट्रिंग थ्योरी के  आधार पर देवी भागवत की इस कथा को अच्छे से समझा जा सकता है।

 स्ट्रिंग, उर्जा और तरंग तीनों ही शब्द स्त्री रुपक लिए हुए हैं। इन स्ट्रिंग्स यानी उर्जा तरंगों ने भी इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रान नाम के तीन तत्वों का निर्माण किया। ये स्ट्रिंग्स आदिशक्ति जगदंबा के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं हो सकती। इन्हीं उर्जा तरंगों यानी स्ट्रिंग्स को देवी भागवत के आदि रचनाकार ने "जगदंबा महामाया भवानी" के रुप में देखा। 

 अब अपनी कथा पर लौटते हैं, तो आदिशक्ति ने सबसे पहले ब्रह्मा को रचा, पंचमुखी ब्रह्मा ने स्वयं को उर्जा तरंगों के बीच पाया जो जगदंबा का स्वरुप धारण करके उन्हें जन्म दे रही थीं। ब्रह्मा ने अपनी रचयिता को नमस्कार किया। उन्हें आदेश मिला कि विवाह करो और सृष्टि का निर्माण करो। ब्रह्मा ने अपनी दृष्टि दूर तक दौड़ाई, हर ओर उन्हें जगदंबा और उनकी उर्जा ही दिखाई देती रही। ब्रह्मा जी ने अपनी दिव्य दृष्टि इस्तेमाल की। उन्हें दूर तक भी जगदंबा से परे कुछ भी नहीं दिखाई दिया।

 तो आदि ब्रह्मा ने बड़े ही विनीत भाव में जगदंबा से कहा, मां यहां तो हर तरफ तू ही तू है मैं किससे विवाह करुं। 

जगदंबा ने निराशा भरे स्वर में 'हूं..' कहा। इस 'हूं..' पर गौर करिएगा। ये वही शब्द है सदियों बाद जिससे देवी ने धूम्रलोचन और उसकी पूरी सेना को भस्म कर दिया था। तो ब्रह्मा जी इस 'हूं..' को सह नहीं सके और वहीं मृत हो गए। 

जगदंबा ने इसके बाद फिर से चतुर्भुज विष्णु को उत्पन्न किया और उन्हें भी आदेश दिया विवाह करो और सृष्टि का निर्माण करो। उन्होंने भी वही किया जो ब्रह्मा ने किया था। और देवी को वही जवाब भी दिया, यानी तेरे अलावा और कोई तो है नहीं किससे विवाह करुं। देवी के मुख से फिर से वही हुंकार निकली और विष्णु भी मृत हो गए।

 इसके बाद "जगदंबा महामाया भवानी"  ने पंचमुख शिव को उत्पन्न किया। उन्हें भी वही आदेश दिया विवाह करो सृष्टि का निर्माण करो।

 ये पूरा घटनाक्रम सदियों तक चलता रहा या कुछ पलों में सब कुछ होता गया, ये कहना मुश्किल है। लेकिन जब तक पंचमुख सदाशिव को पराम्बा ने उत्पन्न किया तब तक उस उर्जामंडल में चार आकृतियां हो चुकी थीं। यानी ब्रह्मा, विष्णु, जगदंबा और सदाशिव। तो महामाया का आदेश सुनकर सदाशिव ने भी अपने अग्रजों की तरह हर ओर देखा। उन्हें अपने अलावा तीन और तत्व दिखाई दे रहे थे। 

त्रिनेत्रधारी सदाशिव के पास दिव्यदृष्टि के अतिरिक्त ध्यान की भी शक्ति थी। उन्होंने ध्यान लगाकर शुरु से अभी तक का सारा घटनाक्रम जान लिया। उन्होंने जगदंबा के आदेश के जवाब में कहा "ठीक है मां, मैं तेरे आदेश को धारण करता हूं, मैं विवाह करुंगा और सृष्टि का निर्माण करुंगा"। 

जगदंबा हंसी और कहा, तेरे अग्रजों ने क्या कहा था तू जानता है न? 

सदाशिव ने कहा, जानता हूं माँ।

जगदंबा ने पूछा तो फिर तू विवाह के लिए कैसे तैयार हो गया?

सदाशिव ने कहा, "मां मैने ध्यान की शक्ति से जाना, कि इस सृष्टि में तेरे सिवा कुछ और मूल तत्व है ही नहीं न मैं और न मेरे ये दोनो अग्रज यानी इस सृष्टि में जो कुछ है वो या तो तू है या फिर तेरे कारण है"    

"जगदंबा महामाया भवानी" विहंस उठी। आखिर तीसरे प्रयास में उन्हें सफलता मिल ही गई थी। अत्यधिक प्रसन्नता से पूरा उर्जामंडल भर उठा। क्योंकि सृष्टि निर्माण का सबसे अहम कार्य हो चुका था, देवी अत्यधिक प्रसन्न थीं। 

जगदंबा ने प्रसन्न होकर कहा, सदाशिव वर मांगो 

सदाशिव ने बदले में दोनो अग्रजों का जीवन मांगा। 

जगदंबा और प्रसन्न हो उठीं और तत्काल पंचमुख ब्रह्मा और चतुर्भुज विष्णु को जीवित कर दिया। 

तीनों ने उस महाऊर्जा महामाया को नमस्कार किया। 

तब जगदंबा ने अमृत वचन कहे, "सदाशिव, तुमने सृष्टि के आदि सत्य को सबसे पहले जाना है, इसलिए विवाह के बाद तुम्हें जो पत्नी प्राप्त होगी, वो मेरा पूर्ण स्वरुप होगी और इसी वजह से तुम महादेव कहे जाओगे और सभी तुम्हारी पूजा करेंगे"।

इसके बाद त्रिदेवों ने परमज्ञान को अपने हृदय में धारण करके लंबे समय तक तपस्या की। और सृष्टि का निर्माण किया। 

दुर्गा सप्तशती पढ़ने वाले जगदंबा महामाया भवानी के भक्त जानते हैं जब जब असुरों को समाप्त करने के लिए महामाया ने प्रचंड स्वरुप धारण किया है तो वो शिवपत्नी के ही शरीर में धारण किया है। चाहे वो शुंभ निशुंभ विदारिणीं अंबिका हों या भ्रामरी या फिर शाकंभरी। दक्षयज्ञ ध्वंस के समय धारण किया गया सती का चंडी रुप और और पार्वती का समय समय पर धारण किए गए स्वरुप इस बात के गवाह हैं कि जगदंबा सती और पार्वती के रुप में महामाया की पूर्ण शक्ति सदैव सदाशिव के साथ रही। इसी वजह से वो त्रिदेवों में श्रेष्ठ महादेव कहे गए।