अगस्ता-वेस्टलैंड घोटाले के पीछे के खेल की परतें अब उधड़ती जा रही हैं। मामले की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने विशेष सीबीआई कोर्ट को यह बताया है कि कैसे वीवीआईपी हेलीकॉप्टर की डील में एक कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए प्रतिस्पर्धी कंपनियों को होड़ से बाहर किया गया। एजेंसी ने बताया है कि कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए के शासन में सरकार और सत्ताधारी दल के लोगों ने लगातार इस सौदे को प्रभावित करने का काम किया। 

ईडी ने अदालत को बताया कि कैसे कथित बिचौलिये क्रिश्चियन मिशेल ने ‘गलत हस्तक्षेप’ करते हुए रूसी कंपनी को तकनीकी आधार पर होड़ से बाहर करवा दिया। वहीं अमेरिकी कंपनी सिकोरस्की को होड़ में बने रहने दिया ताकि पूरी प्रक्रिया देखने में वैध नजर आए। 
 
ईडी का कहना है कि तकनीकी मूल्यांकन में काफी ‘छेड़छाड़’ की गई थी। इसी के चलते रूस की बोली खारिज हो गई। लेकिन ‘तकनीकी तौर पर योग्य न होने के बावजूद सिकोरस्की को होड़ में बनाए रखा गया।’ 

जांच एजेंसी ने यह भी बताया है कि तकनीकी तौर पर योग्य न होने के बावजूद सिकोरस्की को होड़ में क्यों बनाए रखा गया। दरअसल, होड़ में अकेली विक्रेता होने की स्थिति को टालने और अगस्ता-वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर के एफईटी टेस्ट को अकेले पास करना सुनिश्चित करने के लिए ऐसा किया गया। 

मिशेल की ओर से भेजे गए पत्रों की बरामदगी के आधार पर ईडी ने कोर्ट को बताया कि क्रिश्चियन मिशेल की ओर से गुइदो हेश्के, ओरसी और दूसरे लोगों को दिए गए निर्देशों के आधार पर भेजे गए पत्रों से यह निष्कर्ष निकला है। 

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ईडी ने 10 अगस्त 2008 को भेज गए पत्र का हवाला दिया है। इसके अनुसार, ‘इस प्रोग्राम ने सभी अहम चरणों को पार कर लिया है। हम यह कह सकते हैं हमने यह कर लिया है। 1. रूस की ओर से दिया गया प्रजेंटेशन तकनीकी आधार पर खारिज किया जा चुका है। 2. पेपर्स के मूल्यांकन से लगता है कि हम दो ही अब आगे बढ़ेंगे, इनमें से सबसे कम बोली वाली कंपनी होड़ में बनी रहेगी। 3. प्लाइट ट्राइल्स में मुकाबले से हम खुद को बचाने में सफल रहे हैं।’

ईडी का दावा है कि मिशेल और गुइदो हेश्के ने अपने साथी कार्लो गेरोसा के साथ मिलकर अपने संपर्कों से जरिये वायुसेना के अधिकारियों, ब्यूरोक्रेट्स, मीडियाकर्मियों और सत्ताधारी दल के राजनेताओं को हेलीकॉप्टर की खरीद का सौदा अगस्ता वेस्टलैंड के हक में करने के लिए 70 मिलियन यूरो का भुगतान किया।