गोपीनाथ मुंडे, अनिल माधव दवे के बाद अनंत कुमार का असामायिक निधन। कर्नाटक में भाजपा को मजबूत करने वाले नेताओं में शामिल थे अनंत कुमार।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल के दौरान तीन कैबिनेट सहयोगियों को खोया है। महाराष्ट्र के कद्दावर नेता गोपीनाथ मुंडे, अनिल माधव दवे और अब दक्षिण भारत में पार्टी का बड़ा चेहरा अनंत कुमार। दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक में भाजपा को मजबूत करने वाले नेताओं में अनंत कुमार की गिनती होती थी। अनंत कुमार और मुंडे को जमीनी पकड़ रखने वाले नेता के तौर पर जाना जाता था। वहीं अनिल माधव दवे की पहचान पर्यावरण कार्यकर्ता के तौर पर थी। इन तीनों का निधन पीएम मोदी के लिए बड़ा झटका है।
अनंत कुमार -
दक्षिण भारत का बड़ा चेहरा और संगठन पर पकड़ रखने वाले नेताओं के तौर पर होता था शुमार। आपातकाल के दौर (1975-77) में हजारों छात्र कार्यकर्ताओं के साथ उन्हें भी गिरफ्तार किया गया। वह 30 दिन जेल में रहे। इसके बाद एबीवीपी के राज्य सचिव चुने गए और उसके बाद 1985 में इसके राष्ट्रीय सचिव बने। इसके बाद भाजपा में शामिल हुए। भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रांतीय अध्यक्ष बने। लिंगायत नेता बीएस येदियुरप्पा के साथ मिलकर कर्नाटक में भाजपा को सत्ता तक पहुंचाने में अनंत कुमार की अहम भूमिका रही। इन नेताओं के प्रयासों से कर्नाटक के रूप में दक्षिण में पहली बार 'कमल' खिला। हालांकि बाद में दोनों में गहरे मतभेद भी उभरे।
गोपीनाथ मुंडे -
महाराष्ट्र के प्रभावशाली नेता गोपीनाथ मुंडे का 3 जून 2014 को एक सड़क हादसे में निधन हो गया था। मोदी सरकार में वह ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री थे। भारतीय राजनीति के इतिहास में वह सबसे कम वक्त तक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री रहे। मुंडे को महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के बीच की कड़ी माना जाता था। साधारण किसान परिवार से उठकर केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री तक का सफर तय करने वाले गोपीनाथ मुंडे ने राज्य में अन्य दलों के साथ पुल का काम किया और अपने साले प्रमोद महाजन के निधन के बाद वह महाराष्ट्र में भाजपा के सबसे कद्दावर नेता बन गए थे। महाराष्ट्र भाजपा में वह तब तक शीर्ष पर बने रहे, जब तक कि उनके पूर्व मंत्रिमंडलीय कनिष्ठ सहयोगी (1994-99) नितिन गडकरी 2009 में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बन गए।
अनिल माधव दवे -
पहले पिछले साल मई में अनिल माधव दवे का असामयिक निधन हो गया था। वह मोदी सरकार में पर्यावरण मंत्री थे। दवे की पहचान पर्यावरण के लिए लड़ने वाले योद्धा की रही। उनका पूरा जीवन नर्मदा नदी की सेवा करने और पर्यावरण को बचाने में समर्पित रहा। अनिल माधव दवे 61 साल के थे। वह मध्यप्रदेश भाजपा का बड़ा चेहरा थे। नदी संरक्षण, पर्यावरण संरक्षक, समाज सेवा, लेखक, व्यवस्थापक, सांसद, आरएसएस स्वयंसेवक और भाजपा कार्यकर्ता के साथ-साथ दवे हवाई जहाज उड़ाने में निपुण थे। दवे मंत्री बनने से पहले पहली बार सुर्खियों में तब आए जब राज्य सभा के लिए चुने जाने के बाद वह साइकिल चलाकर पहुंचने वाले सांसद बने। हालांकि मंत्री पद मिलने के बाद सुरक्षा कारणों और प्रोटोकॉल के चलते उन्हें साइकिल छोड़नी पड़ी थी। 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव और 2004, 2009 और 2014 के लोकसभा चुनावों में मध्यप्रदेश में भाजपा के जीत की स्क्रिप्ट दवे ने लिखी थी। दवे राज्य में पार्टी के लिए चुनाव लड़ने के लिए प्रमुख रणनीतिकार थे।
Last Updated Nov 12, 2018, 11:09 AM IST