जम्मू-कश्मीर में स्थायी नागरिकता से जुड़े अनुच्छेद 35ए को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई की तारीख जल्द ही तय की जाएगी। इस संबंध में याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से सुनवाई की तारीख तय करने की मांग की थी। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने याचिकाकर्ता को आश्वस्त किया कि जल्द ही इन-चेंबर इस मामले की सुनवाई की तारीख तय कर दी जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद  35ए के चलते जम्मू-कश्मीर के बाहर के भारतीयों को राज्य में अचल संपत्ति खरीदने और वोट देने का हक नहीं है। साथ ही, जम्मू-कश्मीर की महिलाएं कश्मीर से बाहर के शख्स से शादी करने पर राज्य में संपत्ति, रोजगार के तमाम हक खो देती है। यहां तक कि उनके बच्चों को भी स्थायी निवासी का सर्टिफिकेट नहीं मिलता।

इससे पहले, तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 3 जजों की पीठ सुनवाई को 19 जनवरी तक के लिए टाल दिया था। वहीं इससे पहले हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट कहा था कि वो विचार करेगा कि क्या अनुच्छेद 35ए संविधान के मूलभूत ढांचे का उल्लंघन तो नहीं करता है, इसमे विस्तृत सुनवाई की जरूरत है। 

क्या है अनुच्छेद 35ए

अनुच्छेद 35ए भारतीय संविधान का वह हिस्सा है जो संविधान की किसी भी किताब में नहीं मिलता। इसी अनुच्छेद को समाप्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं दाखिल की गई हैं। पहली याचिका वी द सिटीजन और वेस्ट पाकिस्तान रिफ्यूजी एक्शन कमेटी नाम की संस्थाओं ने दाखिल की है। दूसरी याचिका चारुवली खन्ना और सीमा राजदान भार्गव नाम की महिलाओं ने दाखिल की है जिसमें गैर-कश्मीरी से शादी करने के चलते होने वाले भेदभाव का मसला उठाया गया है। उन्होंने इसे सीधे-सीधे संविधान के अनुच्छेद 14 यानी समानता के अधिकार का हनन बताया है।

कैसे आया अनुच्छेद 35ए

अनुच्छेद 35ए दरअसल अनुच्छेद 370 से ही जुड़ा है। अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को कुछ विशेषाधिकार देता है जो अन्य राज्यों से भिन्न है। अनुच्छेद 370 के अनुसार संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है लेकिन किसी अन्य विषय से सम्बन्धित क़ानून को लागू करवाने के लिए केन्द्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिए। अनुच्छेद 35ए को संविधान में शामिल करने के लिए इसे संसद से पारित नहीं करवाया गया बल्कि पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सीधे राष्ट्रपति सें इस पर हस्ताक्षर करा लिया और उसके बाद इसे अनुच्छेद 370 के उपबंध के रूप में जोड़ दिया गया। लेकिन सरकार ने सीधे-सीधे इसका ज़िक्र संविधान में नहीं करते हुए परिशिष्ट में किया ताकि इसको लोगों की नज़रों से बचाया जा सके। यह देश की संसद, नागरिकों और संविधान के साथ धोखा है।