"मुझे स्टेट्स के नाम ना सुनाई देते हैं ना दिखाई देते हैं, सिर्फ एक नाम सुनाई देता है इंडिया।"
चक दे इंडिया का कबीर खान, नाम तो याद ही होगा। ये वही हॉकी कोच था जिसने भारतीय महिला हॉकी टीम को वर्ल्ड कप में गोल दिलाया था। कहानी काल्पनिक जरुर थी पर हर तरफ इंडिया ही रचा-बसा था। वो सदमे में था पुरुष हॉकी मुकाबलों में पाकिस्तान से मिली हार और वतन वापसी पर गद्दार का तमगा मिलने से। शिद्दत के नाकामयाब होने के बाद जज़्बाती भीड़ द्वारा उसके घर पर देशद्रोही लिख दिया जाना किस हद तक कचोटा था ना दर्शकों को, पूरे सिनेमा हॉल में सन्नाटा पसरा था। खुद को साबित करने के लिए बस एक मौके की तलाश में बैठे कबीर खान को वो मौका भी मिला। ठीक है मौका तो था लेकिन चुनौती कितनी बड़ी थी, एक बिखरी हुई टीम जिससे किसी को कई उम्मीद भी ना थी, उसे उसने एक माला में पिरोया और उतर पड़ा मैदान में। मैच दर मैच टीम जीतती रही और सिनेमा हॉल में बैठा ऑडिएंस रोमांचक सिहरन के साथ चक दे इंडिया कहता रहा।
ये सिनेमा की ताकत ही तो है जो मस्ती के मिजाज़ में हॉल में पहुंचे दर्शकों को देशभक्ति की चरम तक ले जाता है और वो इंडिया, इंडिया जपता हुआ बाहर आता है।
फिल्में तमाम बनीं या बन रही हैं जो खेलों के रास्ते उस हद तक ले जाती हैं जहां इंडिया जुनून होता है, भारत माता की जय के नारे लगते हैं, हम इमोशनल होते हैं। इस भावना तक ही इन फिल्मों के साथ पहुंच जाना कोई कम है क्या। 
कुछ फिल्मों के ट्रेलर इन दिनों चर्चा में हैं। गोल्ड के ट्रेलर में धोती पहने हाथ में दारू की बोतल लिए एक बंगाली शख्स आता है और कहता है "हम हॉकी से प्यार करता है, हम इंडिया से प्यार करता है।" आह ये लाइनें सुनते ही रोंगटे खड़े हो जा रहे हैं। उसके कहने का मजमून भी कुछ यूं है कि वो पागल नहीं है वो देश की फ़तह को देखने वाले दिन के इंतज़ार में पागल है। वो तिरंगे के बैनर तले भारत को गोल्ड मिलते देखना चाहता है, उसकी इच्छा पूरी होती है, स्वतंत्र भारतीय टीम हॉकी का गोल्ड जीतती है, और कोच बने अक्षय कुमार कहते हैं "अभी तक इंडिया चुप था अब इंडिया बोलेगा और दुनिया सुनेगा" फिल्म का ट्रेलर जानदार दिख रह है, कहानी रियल स्टोरी पर आधारित है। फिल्म की रिलीज़ डेट स्वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्त रखी गई है। ऐसा जान पड़ता है कि ये फिल्म आपको हंसाएगी भी, रुलाएगी भी और आखिर में वही जज़्बा कि हमारा हिंदुस्तान नंबर वन है।

एक और बायोपिक आ रही है, केंद्र में हॉकी और हॉकी खिलाड़ी ही है। वो एक ऐसा खिलाड़ी है जो पाकिस्तानी ड्रैग फ्लिकरों की तगड़ी काट था यानी कि पाकिस्तान जिन ड्रैग फ्लिकरों के दम पर पेनाल्टी कॉर्नर के सहारे गोल कर जाता था अब ठीक वैसे ही गोल वो भारत के खिलाफ खाने लगे, नाम है संदीप सिंह। हां इस कड़ी में जुगराज सिंह का नाम भी जरूर लिया जाना चाहिए उनके शॉट में भी दम होता था। खैर वापस फिल्म पर लौटते हैं ट्रेलर में ऐसा दिख रहा है कि ये संदीप के संघर्ष की कहानी है। वो हरियाणा के कुरुक्षेत्र के छोटे से कस्बे शाहबाद मरकंडा से भारत का झंडा दुनिया भर में कैसे लहराते रहे, ये फिल्म में दिखेगा। रील पर उनकी दिल्लगी की दास्तान भी होगी और वो लम्हा भी जब राजधानी एक्सप्रेस में सफर करते वक्त उनको गोली लगी और उनके शरीर का निचला हिस्सा पैरालाइज्ड हो गया लेकिन संदीप ने हार नहीं मानी।  फिल्म में दिलजीत  दोसांझ जो उनकी भूमिका निभा रहे हैं, का डायलॉग है "बस एक मदद कर दो मेरी, मैं अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता हूं।" कुल मिलाकर फिल्म एक हीरो पर बनी है और उसके कॉम्पोनेंट को आप कुछ यूं समझ सकते हैं कि फिल्म की कहानी सुन प्रख्यात साहित्कार, फिल्मकार गुलज़ार भी भावुक हो गए। निर्देशन साथिया फेम शाद अली का है। फिल्म 13 जुलाई को रिलीज़ होगी और कहानी की तरह वीडियो पैकेजिंग और फिल्म की फिनिशिंग ठीक रही तो एक बार और हॉकी आपके दिल में धड़केगा और धड़कन सिर्फ जीत चाहेगी इंडिया की इंडियंस की।