चीन के दबदबे को खत्म करते हुए भारत पूरे एशिया में सबसे प्रभावशाली देश बन कर उभर रहा है। पहले तो भारत ने सुधारवादी कदम उठाते हुए चीन को विकास दर में पीछे छोड़ा और अब सैन्य मामलों में भी भारत चीन से आगे निकलता हुआ दिख रहा है। मोदी सरकार में हमारे देश की नीतियां ऐसी ही जारी रहीं तो आने वाले समय में चीन पर चारो तरफ से भारतीय हथियारों तने हुए नजर आएंगे।
नई दिल्ली: मोदी सरकार आक्रामक विदेश नीति पर काम कर रही है। इसके लिए कूटनीतिक और सामरिक हर तरह के नुस्खे आजमाए जा रहे हैं। दक्षिण एशिया क्षेत्र में चीन की ताकत कम करने के लिए भारत तेजी के कदम बढ़ा रहा है। इसके लिए उसे अमेरिका और जापान का भी समर्थन हासिल है। क्योंकि यह दोनों ही देश काफी समय से चीन की दबदबे और उसकी नाजायज हरकतों से परेशान हैं।
1.चीन की चारो तरफ से घेराबंदी
भारत ने अपनी कूटनीति से चीन को चारो तरफ से घेरना शुरु कर दिया है। चीन की विस्तारवादी नीतियों की वजह से उसके कई पड़ोसी देशों से उसका सीमा विवाद चलता रहता है। भारत ने चीन के पड़ोसियों की बेचैनी को भांपते हुए उसके पड़ोसी देशों से संबंध सुधारने शुरु कर दिए हैं।
इसमें वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया, ताइवान, ब्रूनेई, म्यांमार, बांग्लादेश जैसे कई देश शामिल हैं। इन सभी देशों से चीन का सीमा विवाद चल रहा है। लेकिन इस सभी से भारत ने मजबूत कूटनीतिक रिश्ते तैयार किए हैं। इन देशों के साथ भारत के संबंध हमेशा से अच्छे रहे हैं। वहीं इन देशों के साथ चीन के पिछले कई सालों से सीमा संबंधी विवाद जारी हैं। यही वजह है कि इन देशों का झुकाव भारत की ओर दिखाई दे रहा है।
2. चीन के खौफजदा पड़ोसी देशों को भारत से मदद की आशा
जल्दी ही चीन के चारो तरफ भारतीय हथियारों की तैनाती होने वाली है। क्योंकि दक्षिण पूर्व एशिया के कई देशों ने भारतीय हथियार और सैन्य साजो सामान में दिलचस्पी दिखाई है। हाल ही में चीन के पड़ोसी वियतनाम ने भारत से 500 मिलियन डॉलर हथियार खरीदने का समझौता किया है। बांग्लादेश ने भी भारत से हथियार खरीदने का ऑर्डर दिया है। इसी तरह चीन के कई पड़ोसी देशों ने भारतीय हथियारों में दिलचस्पी दिखाई है।
हाल ही में 14 मई यानी मंगलवार को सिंगापुर में तीन दिनों की डिफेन्स एक्जिविशन लगी हुई थी। जिसमें भारत की तरफ से ब्रह्मोस और तेजस की प्रदर्शनी लगाई गई थी। जिसमें दक्षिण पूर्व एशिया और खाड़ी के देशों ने काफी दिलचस्पी दिखाई थी।
इस प्रदर्शनी के दौरान ब्रह्मोस एयरोस्पेस के चीफ जनरल मैनेजर (एचआर) कमोडोर एसके अय्यर ने जानकारी दी थी कि ‘भारत की मिसाइलों और विमानों की खरीद में सबसे ज्यादा दिलचस्पी दक्षिण पूर्वी और खाड़ी देशों की है। मिसाइल के बेचे जाने के लिए पहला बैच तैयार है और इस बारे में सरकार की तरफ से अंतिम मंजूरी का इंतजार है’।
3. सस्ते और सक्षम भारतीय हथियार खरीदने के लिए बेचैन हैं चीन के पड़ोसी देश
चीन के कई पड़ोसी देशों ने भारत की ब्रह्मोस और आकाश मिसाइलें, तेजस लड़ाकू विमान और ध्रुव हेलीकॉप्टर्स में दिलचस्पी दिखाई है। भारत ने पिछले दो तीन सालों में ऐसे कई हथियार तैयार किए हैं जिनका निर्यात किया जा सकता है। कई अंतरराष्ट्रीय रक्षा प्रदर्शनियों में भारतीय उत्पादों की तारीफ की जा चुकी है।
पिछले कुछ सालों से भारत जिस तरह लगातार उन्नत मिसाइलें विकसित कर रहा है, उससे छोटे देशों का भारतीय तकनीक पर भरोसा बढ़ा है। क्योंकि इन देशों का रक्षा बजट कम होता है। जिसकी वजह से भारतीय सैन्य उत्पाद उनकी पहुंच में होते हैं। कई पड़ोसी देशों ने भारत में बनी छोटी रायफलों, टोही समुद्री नौकाएं, बख्तरबंद गाड़ियां, सेल्फ लोडिंग रायफल, ग्रेनेड और छोटे हथियारों का गोला बारुद मंगाना शुरु कर दिया है।
इसके अलावा यह सभी देश भारत की भौगोलिक सीमा के नजदीक भी आते हैं, जिसकी वजह से इन सैन्य साजो सामानों के कल पुर्जे और अतिरिक्त गोला बारुद भेजे जाने में भी किसी तरह की समस्या नहीं आ सकती है।
4. दक्षिण चीन सागर का तनाव है भारतीय हथियारों की खरीद की प्रमुख वजह
पिछले कुछ दिनों में दक्षिण चीन सागर में चीन ने दादागिरी दिखाई है। उससे जापान सहित चीन के कई पड़ोसी देश नाराज हैं। उन्हें लगता है कि चीन इस मुद्दे पर कभी भी युद्ध की शुरुआत कर सकता है। इसलिए उन्होंने भारत से हथियार खरीदने शुरु कर दिए हैं।
दक्षिण चीन सागर में चीन की विस्तारवादी नीतियों से सबसे ज्यादा मुश्किल में वियतनाम है। जिसने चीन से निपटने के लिए भारत को 500 मिलियन डॉलर के हथियारों का ऑर्डर दिया है।
अमेरिका और जापान भी दक्षिण चीन सागर में चीन की दादागिरी से नाखुश हैं। हाल ही में अमरीका के रक्षा मंत्री जिम मैटिस ने कहा था कि अमरीका दक्षिण चीन सागर में चीन की ओर से किए जा रहे टापुओं के सैन्यीकरण को रोकने के लिए प्रतिबद्ध है। कुछ ही दिनों पहले अमेरिकी नौसेना के कई जहाज दक्षिण चीन सागर के कई टापुओं के पास से गुजरे थे। जिनका मकसद इस इलाके में दुनिया भर के पोतों की आवाजाही तय करना था। लेकिन चीन ने अमेरिका की इस कार्रवाई की कड़ी निंदा की थी।
ऐसी खबरें आ रही हैं कि चीन ने इस इलाके के स्प्रैटली ट्वीप समूहों पर एंटी शिप क्रूजस मिसाइल, जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली और इलेक्ट्रॉनिक जैमर लगा दिए हैं। चीन ने कुछ इसी तरह की तैनाती फेयरी क्रॉस रीफ, सुबी रीफ और मिसचीफ रीफ पर भी की है।
चीन की इन्हीं हरकतों की वजह से वियतनाम, जापान सहित चीन के सभी पड़ोसी देश नाराज हैं। इसलिए वह सभी भारतीय हथियारों की खरीद के लिए तेजी से कदम उठा रहे हैं।
इन सभी देशों के कारण खत्म हो रहे इस वित्तीय वर्ष में भारत का रक्षा निर्यात दोगुना होकर 10 हजार करोड़ के आस पास पहुंच गया है।
5. भारतीय कंपनियों की बढ़ती विश्वसनीयता
पिछले कुछ दिनों में भारतीय कंपनियों ने विश्वस्तरीय उत्पाद बनाए हैं। जिसकी वजह से दुनिया भर में भारतीय कंपनियों की प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता दोनों बढ़ी है। साल 2017 में स्टाकहोम के थिंकटैंक सिपरी ने दुनिया की 100 बड़ी रक्षा उत्पादक कंपनियों की सूची तैयार की थी। खास बात यह है कि कि इस बार की सूची में भारत की चार बड़ी कंपनियां इंडियन आर्डिनेंस फैक्ट्री, हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स और भारत डायनामिक्स भी शामिल थीं।
इसके अलावा भारत में कई प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों ने रक्षा उत्पादन के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं।
टाटा कंपनी समूह पिछले कई सालों से बारतीय सेना के लिए गाड़ियां बनाता रहा है। और अब टाटा ने एयरबस और लॉकहीड मार्टिन जैसी कई बड़ी कंपनियों के साथ मिलकर लड़ाकू और मालवाहक विमान बना रहा है।
भारत का महिंद्रा ग्रुप कई दशकों से सेना के लिए ट्रक और बख्तरबंद गाड़ियां बना रहा है। लेकिन अब महिंद्रा ग्रुप पानी के अंदर के रक्षा उत्पाद और रडार बनाने में भी हाथ आजमा रहा है।
भारत का हीरो ग्रुप नौसेना के सैन्य सिस्टम और साजो सामान तैयार करने के लिए कदम उठा रहा है।
रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप ने भी डिफेंस और एयरोस्पेस के रक्षा उत्पादों के निर्माण के लिए कई विदेशी कंपनियों के साथ डील साइन की है।
इसके अलावा भारत फोर्ज और हिंदुजा ग्रुप भी डिफेंस सेक्टर के लिए उत्पाद बनाने की तैयारी में हैं। देश के प्राइवेट सेक्टर में रक्षा उत्पादों के निर्माण के लिए मची इस हलचल को देखते हुए लगता है कि भारत जल्दी ही रक्षा उत्पादों का बड़ा निर्यातक बन जाएगा।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ दक्षिण एशिया के देश ही भारतीय हथियारों में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। स्वाजीलैण्ड और तंजानिया जैसे कई अफ्रीकी देशों ने भी भारतीय रक्षा उत्पादों में रुचि दिखाई है। अफ्रीका में भारत के मजबूत होते कदम चीन के लिए बड़ी चिंता का कारण बन सकते हैं क्योंकि वहां उसके बड़े व्यापारिक हित छिपे हुए हैं।
Last Updated May 28, 2019, 2:48 PM IST