-ममता बनर्जी कर रही है 19 जनवरी को कोलकाता में महारैली, सभी विपक्ष दल हो सकते हैं शामिल
 
नई दिल्ली। ‘शपथ’ ग्रहण राजनीति के जरिए सभी विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की कांग्रेस की मुहिम फिलहाल परवान नहीं चढ़ पायी है। लिहाजा अब कांग्रेस की नजर अगले महीने कोलकाता में होने वाली ममता बनर्जी की रैली पर है। ऐसा माना जा रहा है कि ममता ने इस रैली के लिए सभी विपक्षी दलों को आमंत्रित किया है। लिहाजा ममता की रैली के जरिए कांग्रेस फिर से विपक्षी दलों को एक मंच पर लाकर भाजपा को लोकसभा चुनाव में परास्त करने की रणनीति बना रही  है। 

तीन राज्यों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की जीत के बाद मुख्यमंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह में कांग्रेस ने सभी विपक्षी दलों के नेताओं को न्योता भेजा था। इस समारोह में टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी, सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती को भी आमंत्रित किया था। इसके लिए कांग्रेस आलाकमान ने राज्य के बड़े नेताओं को व्यक्तिगत तौर पर न्योता देने का आदेश दिया था। लेकिन इन तीनों नेताओं ने कांग्रेस के ‘शपथ’ राजनीति से दूरी बनाकर कर रखी। मायावती और अखिलेश यादव ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस को समर्थन देने का ऐलान पहले ही कर दिया है।

लेकिन शपथ ग्रहण समारोह में शामिल न होकर सपा और बसपा ने कांग्रेस को एक संदेश भी दे दिया है। असल में यूपी की सियासत में सपा और बसपा कांग्रेस से बराबर की दूरी बनाकर चल रहे हैं। क्योंकि इन दोनों दलों ने तीन राज्यों में हुए चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के लिए कहा था, लेकिन कांग्रेस ने एकला चलो की राणनीति अपनाई। लिहाजा ये दोनों दल कांग्रेस से नाराज चल रहे हैं। हालांकि सोमवार को शपथ ग्रहण समारोहों में तकरीबन डेढ़ दर्जन विपक्षी दल के नेता एक मंच पर आए थे। अब कांग्रेस की नजर कोलकाता में होने वाली ममता बनर्जी की रैली पर है।

इस रैली में सभी विपक्षी दलों के शामिल होने की उम्मीद की जा रही है। एनसीपी,बीएसपी, एसपी के साथ ही टीएमसी भी कांग्रेस को महागठबंधन में बड़े का दर्जा देने के लिए तैयार नहीं हैं। सभी विपक्षी दल चाहते हैं कि लोकसभा चुनाव सभी दल अपने अपने राज्यों में अलग अलग लड़े और उसके बाद आने वाले परिणाम के बाद सरकार बनाने के लिए महागठबंधन किया जाए। जबकि कांग्रेस आलाकमान चुनाव से पहले महागठबंधन बनाकर मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ना चाहता है। ताकि मोदी सरकार को टक्कर दी जा सके। कांग्रेस महागठबंधन के जरिए राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के तौर पेश करना चाहती है। असल में कांग्रेस की ये मुहिम सफल नहीं हो पायी है। यहां तक कि राफेल डील में सुप्रीम से मोदी सरकार को क्लीन चिट मिलने के बाद भी कांग्रेस की जेपीसी की मांग का समर्थन नहीं किया है। संसद के मानसून सत्र के दौरान भी कई मुद्दों पर पूरा विपक्ष एक साथ खड़ा नजर नहीं आया।