लोक सभा चुनाव 2019 के परिणाम के बाद से ही कांग्रेस में आत्म मंथन के नाम पर ऊहापोह का दौर जारी है। चुनावों के दौरान उनके शीर्ष नेत्रत्व के साथ कई बड़े नेता सॉफ्ट हिन्दुत्व की राह पर चलते हुए मंदिर दर्शन करते नजर आए थे लेकिन उनके इस  ‘टैम्पल रन’ का भी लाभ भी उन्हें नहीं मिल सका था।

कांग्रेस पर वर्ग विशेष और तुष्टीकरण की राजनीति का आरोप लगता रहा है। लेकिन अब लगता है कि शायद कांग्रेस अपनी प्रतिद्वंदी भाजपा से सबक लेते हुए, अपने पुराने वोट बैंक को दोबारा अपने साथ जोड़ने के मकसद से बहुसंख्यकों को लुभाना चाह रही है। कांग्रेस प्रवक्ताओं द्वारा पिछले कुछ दिनों में दिये गए बयानों पर नजर डाले तो इससे यही प्रतीत होता है कि कांग्रेस अब बहुसंख्यकों वाली समग्र राजनीति की तरफ आगे बढ़ना चाहती है।

बता दे कि दिल्ली में दो दिन पहले अल्पसंख्यकों यानि मुसलमानों की एक उग्र भीड़ ने मामूली पार्किंग विवाद के चलते दिल्ली के चाँदनी चौक स्थित 100 वर्ष पुराने देवी के मंदिर की मूर्तियो को तोड़ने के साथ मंदिर को भी क्षतिग्रस्त कर दिया था। इसी पर बयान देते हुए कांग्रेस नेता अनिल मनु सिंघवी ने केंद्र और बीजेपी पे निशाना साधते हुए कहा था की भाजपा को ‘बहुसंख्यकों की कोई चिंता नहीं है’ उसे तो बस चुनाव जीतने से मतलब है।

वही इससे पहले उन्होने कश्मीर की अभिनेत्री जायरा वसीम के ईमान का हवाला देते हुए बॉलीवुड से ऐक्टिंग छोड़ने के फैसले पर भी मुस्लिम समाज और कट्टरपंथियों को घेरते हुए ट्विटर पर लिखा था , 'हलाला जायज और ऐक्टिंग हराम, क्या ऐसे तरक्की करेगा हिंदुस्तान का मुसलमान।'

कांग्रेस को शायद इस बात का एहसास हो गया है की अगर उसे राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत रहनी है तो उसे बीजेपी को हराने के लिए केवल एक वर्ष विशेष नहीं बल्कि सभी लोगो का समर्थन चाहिए। क्योंकि कांग्रेस द्वारा लोक सभा चुनाव 2019 से ठीक पहले अपनाए गए सॉफ्ट हिन्दुत्व और न्याय योजना उसके काम नहीं आ सकी।

इस चुनाव में कांग्रेस को 52 सीटें मिली और उसके 9 राज्यों के पूर्व मुख्यमंत्री भी चुनाव हार गए। हालांकि कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में महागठबंधन बनने के बावजूद दलित-मुस्लिम और वर्ग विशेष के समीकरण के सफल न होने से भी सबक लिया है। यही कारण है की कांग्रेस अब हर जगह अकेले चुनाव लड़ने पर ज़ोर दे रही है।

यूपी कांग्रेस के एक बड़े नेता ने नाम न छपने की शर्त पे बताया कि ‘यूपी मे कमजोर संगठन और अकेले चुनाव लड़ने के बाद भी उसके वोट प्रतिशत में केवल 1.19% फीसदी गिरा है जबकि महागठबंधन के बैनर तले चुनाव लड़ने और (मुस्लिम-यादव) समीकरण पर भरोसा करने वाली सपा का वोट प्रतिशत करीब 4.24% फीसदी कम हुआ है’।

कांग्रेस शायद अब भाजपा के हिन्दू राष्ट्रवाद की काट के लिए बहुसंख्यकों और सभी वर्गो को अपने साथ मिलना चाहती है। जिससे वो राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन कर सके। वहीं 2022 यूपी विधान सभा चुनावों से पहले कांग्रेस प्रदेश में प्रियंका गांधी के नेत्रत्व में अपने संगठन को एक बार फिर से खड़ा करना चाह रही है। इसीलिए उनको सभी वर्गो खासकर बहुसंख्यकों का साथ चाहिए।