भोपाल। सत्ता में रहने के बावजूद मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी कंगाली के हालत में है। राज्य के विधायक अपने हिस्से का चंदा पार्टी के खाते में जमा नहीं कर रहे हैं जबकि पार्टी का खर्चा लगातार बढ़ा जा रहा है। राज्य में
114 कांग्रेस के विधायकों में से केवल तीन विधायकों ने पीसीसी खाते में एक महीने के वेतन दिया है। जबकि इसके लिए पार्टी द्वारा  कई बार विधायकों को आदेश दिया जा चुका है। पार्टी के नेताओं का मानना है सत्ता में आने के बाद राज्य में पार्टी मुख्यालय का खर्चा बढ़ गया है। क्योंकि पदाधिकारियों  के कई नए पद सृजित हो चुके हैं।

राज्य में पिछले साल कांग्रेस सत्ता में आई। जबकि पिछले 15 वह सत्ता से दूर थी। सत्ता में आने के बाद से ही पार्टी मुख्यालय का खर्चा अचानक बढ़ गया है। क्योंकि सत्ता में आने के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं और पदाधिकारी रोज कार्यालय में आते हैं। जिसके कारण चार पानी का खर्चा भी बढ़ गया है।

वहीं पार्टी के विधायक अपने हिस्सा की सहयोग राशि पार्टी को नहीं दे रहे हैं। इसके लिए अभी तक विधायकों को आदेश भी दिया जा चुका है। पार्टी ने हर विधायक से एक महीने का वेतन सहयोगी राशि के तौर पर देने को कहा है। पार्टी के विधायकों को हर महीने 30 हजार रुपये का वेतन मिलता है। इसके साथ ही अन्य खर्च भी विधायकों को मिलते हैं। 

गौरतलब है कि 2003 से 2018 के बीच कांग्रेस 15 साल तक सत्ता से बाहर रही तब फंड की कमी के कारण भोपाल मुख्यालय को चलाना मुश्किल हो रहा था। तब चाय के लिए दूध खरीदने के लिए पैसे की व्यवस्था करना और भी मुश्किल था। पार्टी कार्यालय में काम करने वाले कर्मचारियों को कई महीनों का वेतन भी नहीं मिला था।

लेकिन अब पार्टी सत्ता में आग गई है। लेकिन स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। क्योंकि पार्टी के विधायक अपनी सहयोगी राशि पार्टी के खाते में जमा नहीं कर रहे हैं। जानकारी के मुताबिक पीसीसी मुख्यालय में लगभग 10 लाख से 25 लाख रुपये प्रति माह का खर्चा है। इसमें कर्मचारियों के वेतन के साथ ही बिजली और ईंधन का बिल है।

वहीं अभी तक पार्टी के महज तीन विधायकों ने अपनी सहयोगी राशि पार्टी के खाते में जमा की है। इसमें हर्ष यादव (कुटीर और ग्रामीण उद्योग और नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री) और मनोज चौधरी (हाटपिपल्या विधायक) के साथ ही एक विधायक है। कांग्रेस मुख्यालय को मिलने वाले 16 लाख रुपये प्रति माह के किराए का एक बड़ा हिस्सा एआईसीसी को जाता है। वहीं पीसीसी को एआईसीसी से लगभग 7 लाख रुपये मिलते हैं। इसके अलावा सदस्यता और दान के जरिए पार्टी का खर्च चल रहा है।