नई दिल्ली। महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर कांग्रेस गदगद है। कांग्रेस अब महाराष्ट्र का फार्मूला देश के अन्य देशों में लागू करने की योजना बना रही है। फिलहाल कांग्रेस इस सफल प्रयोग को एक बार फिर कर्नाटक और उसके बाद बिहार और झारखंड में लागू कर सकती है। पहले वह बार फिर जेडीएस की शरण में जाने की सोच रही है। हालांकि इन राज्यों में कांग्रेस का दर्जा राष्ट्रीय दल होने के बावजूद छोटे भाई की तरह होगा। लेकिन भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए कांग्रेस इस घाटे को सहने के लिए तैयार है। इससे एक तरफ वह राज्य की सत्ता में भागीदार रहेगी वहीं वह राष्ट्रीय राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा के खिलाफ मजबूत होगी।

असल में कांग्रेस महाराष्ट्र में सरकार बनाने के बाद उत्साहित है। कांग्रेस के रणनीतिकार इसे कांग्रेस के लिए बड़ी सफलता मान रहे हैं। क्योंकि जिस तरह से भाजपा ने देश में कांग्रेस की राजनीति खत्म कर दी थी, महाराष्ट्र से उसे ऑक्सीजन मिली है। भले ही वह राष्ट्रीय पार्टी होने के बावजूद छोटे भाई की स्थिति में हो। कांग्रेस के नेता अच्छी तरह से जानते हैं कि देश में भाजपा के उभरने और क्षेत्रीय दलों के मजबूत होने के बाद उनका जनाधार घटा है। भले ही उसने देश की सत्ता पर लगातार 2004-2014 तक राज किया हो।

भाजपा ने महज पांच साल में कांग्रेस को सबसे ज्यादा शिकस्त दी है। हालांकि कई समस्याओं से जूझ रही कांग्रेल को लग रहा है कि देश में भाजपा के खिलाफ माहौल बनाया ज सकता है। लिहाजा महराष्ट्र उसके लिए एक बड़ा प्रयोग हो सकता है। हालांकि भाजपा के सत्ता में होने के बावजूद कांग्रेस ने पिछले साल देश के तीन राज्यों में सरकार बनाई और भाजपा को इन राज्यों में सत्ता से बाहर किया। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में तो भाजपा 15 साल से राज कर रही थी।

लिहाज अब भाजपा पहले कर्नाटक और उसके बाद बिहार और झारखंड में यही प्रयोग करने की रणनीति बना रही है। झारखंड में चुनाव हो रहे हैं और बिहार में अगले साल चुनाव होने हैं। कमोबेश इन दोनों राज्यों में कांग्रेस राष्ट्रीय दल होने के बावजूद छोटे बाई की स्थिति में है। कांग्रेस को लग रहा है कि इन दोनों राज्यों में भाजपा को सत्ता से बाहर करने में उसका छोटा भाई बना रहना उसके लिए फायदे का सौदा हो सकता है। क्योंकि इसके जरिए एक तो वह भाजपा को सत्ता से बाहर करने में सफल रहेगी वहीं केन्द्र में उसकी स्थिति मजबूत होगी।

फिलहाल कांग्रेस एक बार फिर कर्नाटक में जेडीएस के साथ अपने पुराने रिश्तों को मजबूत करने की पहल कर रही है। क्योंकि उपचुनाव के बाद राज्य की स्थित में बदलाव हो सकता है। अगर राज्य में भाजपा छह से कम सीटों को जीतने में विफल रही तो फिर कांग्रेस और जेडीएस के हाथ में सत्ता की चाबी होगी। राज्य में पांच दिसंबर को उपचुनाव होने हैं। उधर जेडीएस भी कांग्रेस को लेकर नरम है।