नई दिल्ली। कांग्रेस दिल्ली की सत्ता पर कई साल काबिज रह चुकी है। लेकिन पिछले चार से साल से वह सरकार से बाहर है। लेकिन अगले साल होने वाले चुनाव के लिए कांग्रेस की मुश्किलें दिल्ली में कम नहीं है। क्योंकि शीला दीक्षित के निधन के बाद कांग्रेस के पास दिल्ली में ऐसा कोई सर्वमान्य नेता नहीं है। जिसके बलबूते पार्टी चुनाव लड़ सके। लेकिन इतना तय है कि 24 अक्टूबर को हरियाणा में आ रहे चुनावी नतीजे कांग्रेस को दिल्ली विधानसभा में जरूर प्रभावित करेंगे।

असल में दिल्ली हरियाणा से जुड़ा हुआ है। हरियाणा का दिल्ली से रिश्ता भी है। दिल्ली के चारों और हरियाणा मूल के लोग रहते हैं। हालांकि कभी ये कांग्रेस का परंपरागत वोटबैंक हुआ करता था। लेकिन सत्ता से बाहर रहने के बाद ये भाजपा और अन्य दलों में विभाजित हो गया है। हरियाणा में सोमवार को मतदान हुआ है और एक्जिट पोल के नतीजों में भाजपा को पूर्ण बहुमत के साथ ही 70 सीटें मिलती दिखाई दे रही हैं। अगर यही नतीजे आते हैं तो कांग्रेस के लिए मुश्किल होगी। वहीं अगर नतीजे भाजपा के खिलाफ आते हैं तो कांग्रेस के लिए राहत की बात होगी।

अभी तक कांग्रेस दिल्ली में प्रदेश अध्यक्ष भी घोषित नहीं कर पाई है। जबकि शीला दीक्षित को गुजरे तीन महीने से ज्यादा का वक्त हो गया है। कांग्रेस दिल्ली की कमान ऐसे नेता को देना चाहती है जो दिल्ली में कांग्रेस को सत्ता में वापसी कराए। लेकिन कांग्रेस के पास ऐसा जनाधार वाला नेता नहीं है। हालांकि ये कहा जा रहा है कि दिल्ली की कमान दिल्ली के ही नेता को दी जाएगी। क्योंकि पहले ये चर्चा थी कि नवजोत सिंह सिद्धू या फिर शत्रुघ्न सिन्हा को दिल्ली की कमान दी जा सकती है।

लेकिन पार्टी को लगता है कि बाहरी नेता को कमान सौंपने के बाद पार्टी को नुकसान होगा। लिहाजा वह संगठन से ही किसी नेता को दिल्ली की कमान सौंपना चाहती है। अगर देखें तो पिछले पांच साल में कांग्रेस में बहुत कुछ बदल गया है। एक तो दिल्ली में कांग्रेस की दिग्गज नेता शीला दीक्षित का निधन हो गया है वहां जाट नेता सज्जन कुमार जेल में हैं। लिहाजा इन दोनों का विकल्प कांग्रेस के नहीं है।