विश्व में चल रही अर्थव्यवस्था को देखते हुए मुझे अर्थशास्त्र पर चर्चा करने के लिए हाल ही में कई सुझाव मिले हैं। ताकि मैं लोगों ये अच्छी तरह से समझा सकूं कि वाकई ऐसे हालात हैं। जो मीडिया या अन्य माध्यमों के जरिए बताए जा रहे हैं। दावोस में आयोजित विश्व आर्थिक मंच के हाल ही में आयोजित सम्मेलन के बाद ये पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गया कि मैं आपको इस बारे में ईमानदारी से बताऊं। मेरे जेहन में दो सिद्धांत घूम रहे हैं: पहला, यह एक चक्रीय मंदी है, और दूसरा यह है कि दुनिया और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है।

पिछले पांच तिमाही जो खत्म हो गए हैं, इस दौरान मंदी ने धीरे-धीरे हमारी अर्थव्यवस्था को अपनी गिरफ्त में ले रही है। लेकिन हमने ये अनुमान लगाया था कि ऑटोमोबाइल, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, एफएमसीजी, सीमेंट, रियल एस्टेट और फाइनेंशियल सर्विसेज जैसे विभिन्न क्षेत्रों को ये प्रभावित कर रही है। लेकिन देर हो चुकी थी,क्योंकि हमें मंदी का एहसास बाद में हुआ। हालांकि हमारी खपत सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 70 प्रतिशत से अधिक है। लिहाजा हमारी खपत कम होने का असर देश की अर्थव्यवस्था पर दिखाई देने लगा।

असल में हम जो नोटिस करने में विफल रहे हैं वह यह है कि निजी निवेश और निर्यात लंबे समय से गिर रहे हैं। लेकिन खपत के कारण हमारी अर्थव्यवस्था बढ़ रही थी। यानी देश में ही खपत बढ़ रही है। लेकिन किस स्तर तक ये बढ़ेगी। लेकिन जब ये खत्म हो जाएगी तो जीडीपी निचले स्तर पर तो आएगी ही। लिहाजा अर्थव्यवस्था इसे और आगे नहीं ले जा सकी और 2018 के अंत से ये निचे की तरफ आने लगी। हालांकि कुछ जिम्मेदार लोगों ने खपत में गिरावट को पहचानने के बजाय अर्थव्यवस्था को चालू करने के कई सुनहरे अवसरों को याद किया है। विभिन्न असफल नीतियों के माध्यम से निजी निवेश बढ़ाने के लिए नीचे जा रहे हैं। लेकिन अब हमारे पास प्रयोग के लिए भी अब कोई गुंजाइश नहीं बची है।

हालांकि, हमने आनंद महिंद्रा जैसे अनुभवी उद्योगपतियों को देखा है जो अभी भी देश की अर्थव्यवस्था को लेकर सकारात्मक हैं। बेशक, मार्केट में पैसे और ऋण की कमी के मुद्दे हैं। लेकिन, उन्हें लगता है कि भविष्य उज्ज्वल है क्योंकि हमारा देश वास्तव में प्रगति के संकेत दे रहा है। दावोस में कुछ लोगों को भारत की सामाजिक स्थिति के आधार पर भारत की आलोचना करते देखा गया है। यह अत्यधिक विडंबनापूर्ण है क्योंकि वे उन देशों में निवेश करते हैं जहां उनका एकछत्र राज चलता है। यानी वह सरकार से जो चाहते हैं वह कराते हैं।

लेकिन ऐसा अब भारत में संभव नहीं है।  एक व्यापारी के लिए, वे केवल तभी निवेश करेंगे जब उन्हें पता होगा कि उन्हें रिटर्न मिलेगा। हमारी जीडीपी 2.6 ट्रिलियन है इसलिए 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था तक पहुंचना कोई बड़ी बात नहीं है। सरकार की मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए क्योंकि वे भारत को बेरोजगारी कम करने और हमारे निर्यात को बढ़ाने में मदद करेंगे। इसलिए, हमें ऐसे लोगों का एक प्रतिभाशाली समूह चाहिए जो मंत्रालय की सहायता करें और इस सपने को हकीकत में बदलें।

(अभिनव खरे एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ हैं, वह डेली शो 'डीप डाइव विद अभिनव खरे' के होस्ट भी हैं। इस शो में वह अपने दर्शकों से सीधे रूबरू होते हैं। वह किताबें पढ़ने के शौकीन हैं। उनके पास किताबों और गैजेट्स का एक बड़ा कलेक्शन है। बहुत कम उम्र में दुनिया भर के 100 से भी ज्यादा शहरों की यात्रा कर चुके अभिनव टेक्नोलॉजी की गहरी समझ रखते है। वह टेक इंटरप्रेन्योर हैं लेकिन प्राचीन भारत की नीतियों, टेक्नोलॉजी, अर्थव्यवस्था और फिलॉसफी जैसे विषयों में चर्चा और शोध को लेकर उत्साहित रहते हैं।

उन्हें प्राचीन भारत और उसकी नीतियों पर चर्चा करना पसंद है इसलिए वह एशियानेट पर भगवद् गीता के उपदेशों को लेकर एक सफल डेली शो कर चुके हैं। अंग्रेजी, हिंदी, बांग्ला, कन्नड़ और तेलुगू भाषाओं में प्रासारित एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ अभिनव ने अपनी पढ़ाई विदेश में की हैं। उन्होंने स्विटजरलैंड के शहर ज्यूरिख सिटी की यूनिवर्सिटी ईटीएच से मास्टर ऑफ साइंस में इंजीनियरिंग की है। इसके अलावा लंदन बिजनेस स्कूल से फाइनेंस में एमबीए (एमबीए) भी किया है।)