इस बार डूसू में जमकर नोटा का उपयोग हुआ। अध्यक्ष के चुनाव में 6211 वोट नोटा को मिले, जबकि उपाध्यक्ष पद के लिए 6435 वोट नोटा के खाते में गए। सचिव पद के लिए 6810 और संयुक्त सचिव पद के लिए 8273 वोट नोटा को मिले।

दिन भर चले हंगामे के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) के नतीजे देर रात घोषित कर दिए गए। डूसू के चार पदों में से तीन पद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के खाते में गए हैं। वहीं एक पद कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई को मिला है। एबीवीपी के अंकिव बसोया अध्यक्ष, शक्ति सिंह उपाध्यक्ष, ज्योति चौधरी संयुक्त सचिव चुनी गई हैं। डीयू में सचिव का पद एनएसयूआई के आकाश चौधरी को मिला है।
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एबीवीपी के अंकित बसोया को अध्यक्ष पद पर 20,467 वोट मिले, वहीं उनके प्रतिद्वंद्वी एनएसयूआई के सन्नी छिल्लर 18,723 वोट ही जुटा  पाए। उपाध्यक्ष पद पर शक्ति सिंह ने एनयूएसआई की लीना (15,000) के मुकाबले 23,046 वोट हासिल किए। सचिव पद पर बाजी एनएसयूआई के आकाश चौधरी के हाथ लगी। उन्हें 20,198 जबकि  एबीवीपी के सुधीर को 14,109 वोट मिले। संयुक्त सचिव के पद पर एबीवीपी की ज्योति चौधरी विजयी रहीं। उन्हें 19,353 जबकि एनएसयूआई के सौरभ को 14,321 वोटों से संतोष करना पड़ा।
 
इससे पहले, ईवीएम खराब होने की शिकायतों के बाद कई बार मतगणना रोकी गई। एनएसयूआई की ओर से इसे लेकर खूब हंगामा किया गया। वहीं, एबीवीपी ने कहा कि हार से बचने के लिए एनएसयूआई ने हंगामे का नाटक किया। कांग्रेस से जुड़े संगठन एनएसयूआई ने नए सिरे से चुनाव कराने की मांग की जबकि एबीवीपी ने मतगणना फिर से शुरू कराने को कहा। बाद में, सभी उम्मीदवारों ने मतगणना फिर से शुरू करने पर सहमति जताई। इससे पहले दोनों छात्र संगठनों के समर्थकों ने दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की और मतगणना केंद्र के अंदर हंगामा किया।
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डूसू के लिए 12 सितंबर को डीयू के कॉलेजों में 52 केंद्रों पर 44.66 प्रतिशत मतदान हुआ था। पिछले साल यह 43 फीसदी था। इस बार डूसू में जमकर नोटा का उपयोग हुआ। अध्यक्ष के चुनाव में 6211 वोट नोटा को मिले, जबकि उपाध्यक्ष पद के लिए 6435 वोट नोटा के खाते में गए। सचिव पद के लिए 6810 और संयुक्त सचिव पद के लिए 8273 वोट नोटा को मिले।
 
पिछले साल दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनावों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को बड़ा झटका देते हुए एनएसयूआई ने अध्यक्ष, उपाध्यक्ष के पद पर कब्जा कर लिया था। एबीवीपी सचिव और संयुक्त सचिव की सीट बचाने में कामयाब रही थी। इससे पहले एबीवीपी चार साल से अध्यक्ष पद पर काबिज थी।