देश में लोकसभा चुनाव 2019 का बिगुल बज चुका है। कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दे इन चुनावों में अपनी भूमिका के लिए अस्तित्व में आना शुरू हो चुके हैं। इन मुद्दों में आम आदमी की जेब में कितने रुपया है और कितना और डाला जा सकता है पर भी राजनीतिक सरगर्मी तेज हो चुकी है।

केन्द्र सरकार ने फरवरी 2019 में पेश अपने अंतरिम बजट में 2 एकड़ तक भूमि वाले किसानों के लिए प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत 6,000 रुपये प्रति किसान देने का प्रावधान किया। इस प्रावधान के लिए केन्द्र सरकार ने केन्द्रीय बजट से 75,000 करोड़ रुपये आवंटित किए और अगले कुछ महीनों के दौरान इस रकम का कुछ हिस्सा किसानों तक पहुंचने लगेगा। अब विपक्ष में बैठी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी ने चुनावी वादा करते हुए ऐलान किया है कि कांग्रेस पार्टी यदि सत्ता में आती है तो वह मई 2019 से न्यूनतम आय योजना की शुरुआत करेगी।

वादे के मुताबिक कांग्रेस पार्टी देश में 12,000 रुपये से कम आय वाले परिवारों को डायरेक्ट कैश बैनेफिट के तहत केन्द्र सरकार के खजाने से आर्थिक मदद देने का काम करेगी। कांग्रेस अध्यक्ष के दावे के मुताबिक इस योजना के लिए होने वाले खर्च से सरकारी खजाने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि वह इस योजना को बजट न्यूट्रल रखना चाहते हैं। हालांकि इस दावे के बावजूद देशभर से कई अर्थशास्त्री ऐसी किसी कारगर योजना की संभावनाओं पर सवाल उठा रहे हैं। ज्यादातर आर्थिक जानकारों का मानना है कि यदि न्यूनतम आय के नाम पर देश में पैसा वितरण करने की कोशिश की गई तो अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान होगा ही वहीं ऐसी योजना से आम आदमी के जीवन पर कोई असर नहीं पड़ेगा।


वहीं कुछ अर्थिक जानकारों का तर्क है कि जिस तरह केन्द्र सरकार प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधी योजना के तहत छोटे और कमजोर किसानों को वार्षिक 6000 रुपये की आर्थिक मदद देकर कमजोर किसान परिवारों को खेती के खर्च को उठाने में सक्षम बना रही है, देश में गरीबी उन्मूलन के प्रस्ताविक कार्यक्रम में मुफ्त कैश मुहैया कराने की जगह रोजगार सृजन के नाम पर खर्च कर गरीब परिवार को आर्थिक मदद दी जाए।

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ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कृषिशास्त्री विजय सरदाना ने माय नेशन से बातचीत में कहा कि मुफ्त में किसी को पैसे देने से देश में गंभीर संकट की स्थिति खड़ा हो सकती है। इसकी जगह केन्द्र सरकार को आर्थिक मदद देने के लिए देश की लघु और मध्यम क्षेत्र की इकाइयों को माध्यम के तौर पर चुनना चाहिए। सरदाना ने कहा कि यदि चुनावों के बाद कोई भी केन्द्र सरकार गरीबी उन्मूलन के लिए बड़ी रकम खर्च करने की योजना तैयार करती है तो उसे खासतौर पर लघु इकाइयों के माध्यम से यह मदद पहुंचाने का काम करने की जरूरत है।

विजय सरदाना ने कहा कि सरकार सीधे आम आदनी के बैंक अकाउंट में पैसे डालने की जगह उसकी न्यूनतम आय सुनिश्चित करने के लिए लघु इकाइयों को उनके रोजगार का प्रावधान करे और आर्थिक मदद की राशि इन लघु इकाइयों को दी जाए जिससे वह अधिक से अधिक रोजगार पैदा करें। सरदाना ने कहा इस कदम से जहां आर्थिक मदद के तौर पर रोजगार पाने वाला आम आदमी अपनी आमदनी को लंबे समय तक सुनिश्चित कर सकेगा वहीं लघु इकाइयों की गतिविधियों में पड़ने वाले व्यापक असर से देश में आर्थिक गतिविधियां तेज होंगी और जेश की जीडीपी में बड़ा इजाफा देखने को मिलेगा।