धारा 377 को खत्म करने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी गई है। सहमति से दो वयस्कों के बीच शारीरिक संबंधों को फिर से अपराध की श्रेणी में शामिल करने के शीर्ष अदालत के फैसले को कई याचिकाएं दाखिल करके चुनौती दी गई।

 

क्या हुआ है इस मामले में अब तक, एक नजरः

वर्ष 2001 -

- समलैंगिकों की आवाज उठाने वाली संस्था नाज फाउंडेशन की ओर से दिल्ली हाई कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई। 

वर्ष 2004 -

- दो सितंबर को हाई कोर्ट ने अर्जी खारिज की। याचिकाकर्ताओं ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की। तीन नवंबर को हाई कोर्ट से रिव्यू पिटिशन भी खारिज। दिसंबर, 2004 में याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 

वर्ष 2006 -

- तीन अप्रैल, 2006 को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट से कहा कि वह इस मामले को दोबारा सुने। दो साल कोई खास प्रगति नहीं हुई।

वर्ष 2008 -

-18 सितंबर, 2008 को केंद्र सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट से इस मामले पर अपना पक्ष रखने के लिए समय मांगा। 

वर्ष 2009 - 

- दो जुलाई, 2009 को दिल्ली हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए आईपीसी की धारा 377 को रद्द कर समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया। हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। 

वर्ष 2012 - 

- 15 फरवरी, 2012 से सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की रोजाना सुनवाई शुरू हुई। मार्च, 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख दिया। 

वर्ष 2013 -

-11 दिसंबर, 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए समलैंगिकता को अपराध करार दे दिया। 

वर्ष 2014 -

- सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को लेकर दायर रिव्यू पिटीशन को खारिज कर दिया। नरेद्र मोदी सरकार ने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही 377 पर कोई निर्णय लेगी। 

वर्ष 2016 -

- साल 2016 में एस जौहर, पत्रकार सुनील मेहरा, शेफ ऋतु डालमिया, होटल व्यवसायी अमन नाथ और आयशा कपूर ने धारा 377 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की। 

वर्ष 2017 -

- अगस्त, 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने 'निजता के अधिकार' पर दिए गए फैसले में सेक्स-संबंधी झुकावों को मौलिक अधिकार माना। शीर्ष अदालत ने कहा किसी भी शख्स का सेक्स संबंधी झुकाव उसके राइट टू प्रिवेसी का मूलभूत अंग है। इसके बाद धारा 377 को लेकर एलजीबीटी समुदाय को नई उम्मीद जग गईं। 

वर्ष 2018

- आठ जनवरी, 2018 को चीफ जस्टिस के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय बेंच ने समलैंगिक सेक्स को अपराध से बाहर रखने के लिए दायर अर्जी संविधान पीठ को सौंप दी। साथ ही केंद्र सरकार से इस मुद्दे पर जवाब देने को कहा। 9 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 377 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 10 जुलाई से सुनवाई होगी। 17 जुलाई को शीर्ष अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।