सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई में मचे घमासान पर बड़ा निर्देश देते हुए केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को जबरन छुट्टी पर भेजे गए एजेंसी के निदेशक आलोक वर्मा की जांच दो सप्ताह में पूरी करने को कहा है। यह जांच शीर्ष अदालत के रिटायर्ड जज की निगरानी में होगी। कोर्ट ने सीबीआई के वर्तमान प्रभारी एम नागेश्वर राव को इस दौरान कोई नीतिगत फैसला न लेने को कहा है। जांच पूरी होने से तक आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने पर कोर्ट ने कोई निर्देश नहीं दिया।

सीबीआई के निदेशक वर्मा की ओर से दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने शुक्रवार को सुनवाई की। वर्मा ने अपनी याचिका में केंद्र द्वारा उन्हें हटाने और अंतरिम प्रभार 1986 बैच के ओडिशा कैडर के आईपीएस अधिकारी व सीबीआई के संयुक्त निदेशक एम नागेश्वर राव को सौंपे जाने के फैसले पर रोक लगाने की मांग की थी। वहीं सरकार का कहना था कि वर्मा को केंद्रीय सतर्कता आयोग की सिफारिश के बाद छुट्टी पर भेजा गया है। यह सारा मामला सीबीआई प्रमुख द्वारा एजेंसी में स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना व एक अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में एफआईआर दर्ज कराने के बाद खड़े हुए विवाद का है। 

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस के कौल और जस्टिस के एम जोसेफ की पीठ ने कहा कि बतौर अंतरिम सीबीआई डायरेक्टर एम नागेश्वर राव ने अब तक जो भी फैसले लिए या ट्रांसफर किए, उन्हें सीलबंद लिफाफे में पेश किया जाए। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि जब तक सुप्रीम कोर्ट इस मामले में दोबारा सुनवाई नहीं कर लेता तब तक अंतरिम डायरेक्टर राव कोई नीतिगत फैसला नहीं ले सकेंगे। उन्हें सिर्फ नियमित कामकाज देखने को कहा गया है। 

पीठ ने आलोक वर्मा के खिलाफ जांच करने की अवधि 10 दिन से बढ़ाकर 15 दिन कर दी। पीठ ने पहले 10 दिन में जांच पूरी करने को कहा था। सीवीसी की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से तीन हफ्ते की मोहलत मांगी थी। इससे पहले, सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना की तरफ से पेश हुए पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि उनकी याचिका भी सुनी जाए। 
 
आलोक वर्मा की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता फली एस नरीमन ने दलीलें पेश की। नरीमन ने कोर्ट को बताया कि केंद्रीय सतर्कता आयोग ने सीबीआई निदेशक को उनके अधिकारों से वंचित करने का आदेश दिया। केंद्र ने उसी दिन सीबीआई चीफ का चार्ज लेने के लिए दूसरे शख्स को नियुक्त कर दिया। आलोक वर्मा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा, हम इसकी जांच करेंगे। हमें केवल यह देखना है कि किस तरह का अंतरिम आदेश पास किया जा सकता है। नरीमन ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, सीवीसी और केंद्र सरकार द्वारा पास किए गए ऑर्डर कानून के हिसाब से नहीं हैं।

कोर्ट में सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने सीवीसी, अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने केंद्र जबकि राकेश अस्थाना की ओर से मुकुल रोहतगी ने अपना पक्ष रखा।

आलोक वर्मा की दलील थी कि सीबीआई डायरेक्टर का कार्यकाल दो साल का होता है और उन्हें उस पद से हटाने की सरकार की कार्रवाई से सीबीआई की स्वतंत्रता पर आघात हुआ है। एनजीओ कॉमन कॉज ने भी एजेंसी के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना सहित अन्य अधिकारियों के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के मामले की जांच विशेष जांच दल (एसआईटी) से कराने की मांग की थी। हालांकि कोर्ट ने कॉमन कॉज की याचिका को स्वीकार नहीं किया।

इस बीच, सीबीआई ने स्पष्टीकरण जारी करते हुए बताया कि वर्मा और अस्थाना को हटाया नहीं गया है। दोनों पद पर बने रहेंगे। दोनों को जांच जारी रहने तक जिम्मेदारियों से अलग किया गया है। जब तक केंद्रीय सतर्कता आयोग मामले की जांच कर रहा है तब तक एम नागेश्वर राव सीबीआई डायरेक्टर का काम करेंगे।