नई दिल्ली। संसद के दोनों से पारित हो चुके नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करना राज्यों के लिए आसान नहीं होगा। भाजपा शासित राज्य इस कानून को तो आसानी से लागू कर देंगे। लेकिन इस कानून का विरोध गैर भाजपा शासित राज्य कर रहे हैं। चाहे कांग्रेस हो या फिर टीएमसी इस कानून के खिलाफ हैं और वह संसद से लेकर सड़क तक विरोध कर रहे हैं। कांग्रेस इस बिल का विरोध कर खो चुकी राजनैतिक जमीन तैयार कर रही है।

नागरिकता संशोधन कानून को लेकर पूर्वोत्तर राज्यों खासतौर से असम में विरोध हो रहा है। हालांकि असम में भाजपा की सरकार है। लेकिन इसके बावजूद सबसे ज्यादा विरोध वहीं पर हो रहा है। इसके साथ ही पश्चिम बंगाल और कांग्रेस शासित राज्य इस कानून का विरोध कर रहे हैं। संसद के दोनों सदनों से पारित होने और राष्ट्रपति की मंजूरी मिल जाने के बाद अब ये कानून बन चुका है। लेकिन कांग्रेस शासित पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश और तृणमूल कांग्रेस शासित राज्य इसका विरोध कर रहे हैं।

कांग्रेस शासित राज्यों का कहना है कि वह इस कानून को लागू करने के लिए आलाकमान के फैसले को मानेंगे। जबकि आलाकमान इस कानून का विरोध कर रहे है। हालांकि राज्य इस कानून का विरोध नहीं कर सकते हैं। नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 संविधान की सातवीं अनुसूची की केंद्रीय सूची के तहत संसद से पारित हुआ है। कांग्रेस शासित राज्य और पश्चिम बंगाल इस कानून को गैर असंवैधानिक बता रहे हैं। उनका कहना है कि राज्य इस कानून को लागू करने के बाध्य नहीं हैं।

क्योंकि संविधान में राज्यों को भी अधिकार दिए गए हैं। गौरतलब है कि इस कानून के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के शरणार्थियों को छह साल में नागरिकता दी जाएगी। जबकि पहले 11 साल में नागरिकता दी जाती थी। कांग्रेस और विपक्ष इस कानून में मुस्लिमों को भी शामिल करने की वकालत कर रहा है। जबकि केन्द्र सरकार का कहना है कि ये छह धर्मों के शरणार्थियों का मुस्लिम बहुसंख्यक देशों में धर्म के आधार पर शोषण और अत्याचार किया जाता है।