केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के कश्मीर दौरे के बाद अलगाववादी हुर्रियत को अब अपनी हैसियत समझ में आ गयी है। लिहाजा घाटी में पत्थरबाजों और चरमपंथी हुर्रियत नेताओं के जरिए अपनी राजनीति साधने वाले महमूबा मुफ्ती अब हुर्रियत नेताओं से बातचीत करने की बात कह रही हैं। मुफ्ती का कहना है कि अब हुर्रियत बातचीत के लिए तैयार है। लिहाजा केन्द्र सरकार को उनसे बातचीत करनी चाहिए।

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी यानी पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने केन्द्र सरकार ने कश्मीर मुद्दे पर हुर्रियत नेताओं से बातचीत करने की वकालत की है। असल में अपने कश्मीर दौरे पर अमित शाह ने किसी भी हुर्रियत नेता से बातचीत नहीं की और न ही वहां के राजनैतिक दलों से। जिसके बाद इन दलों को समझ में आ गया है कि केन्द्र सरकार हुर्रियत और अलगावादियों के खिलाफ कड़ा रूख अपना रही है।

वहीं दूसरी तरफ से केन्द्र सरकार ने राज्य में आतंकियों का सफाया करने के लिए सुरक्षा बलों को खुली छूट दी है। जिसके कारण राज्य में हुर्रियत की जमीन खिसक रही है। यहां तक कि राज्य की जनता भी समझ रही है कि उन्हें हुर्रियत के नेता बेवकूफ बना रहे हैं। घाटी में आतंकवाद को बढ़ावा देने में हुर्रियत के नेताओं की बड़ी भूमिका मानी जाती है।

हुर्रियत के नेताओं का पिछली सरकारों के दौरान बड़ा बोलबाला था,जो भी मंत्री कश्मीर के दौरे पर जाता था वह इन नेताओं से मिलने जरूर जाता था। लेकिन इस बार अमित शाह ने इन नेताओं से बातचीत भी नहीं की। अमित शाह के दौरे के दौरान पहली ऐसा हुआ जब राज्य में अलगाववादियों ने घाटी बंद का ऐलान नहीं किया। जबकि पहले घाटी बंद कर दिया जाता था और जगह जगह लोग केन्द्रीय मंत्री का विरोध प्रदर्शन करते थे।

फिलहाल अलगाववादी गुटों को लेकर केन्द्र सरकार के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है। लिहाजा मुफ्ती इन गुटों से बातचीत करने की वकालत कर रही हैं। इसके जरिए मुफ्ती आगामी विधानसभा चुनाव में इन अलगाववादियों का समर्थन हासिल करना चाहती हैं।

राज्य में मुख्यमंत्री रहते हुए मुफ्ती ने सेना पर पत्थरबाजी करने वाले करीब पांच हजार लोगों से मुकदमे वापस ले लिए थे।  फिलहाल मोदी सरकार ने साफ कर दिया है कि अगर हुर्रियत और अलगाववादियों को बातचीत करनी है तो वो बिना शर्त बातचीत करे। पिछले दिनों आतंकवादियों को फंडिंग मामले में कई अलगाववादी नेता गिरफ्तार किए गए हैं।