एक तरफ नक्सली संगठनों की कारगुजारियों के बाद उनपर की गई कार्रवाई को लेकर देश भर में हंगामा मचा हुआ है। कई तथाकथित आजादी समर्थक नक्सलियों के पांच हितैषियों की गिरफ्तारी को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साध रहे हैं। ठीक उसी समय तीन वाम संगठनों ने मिलकर देश भर में 'हथियारबंद संघर्ष' छेड़ने का आह्वान किया है। 

सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू), ऑल इंडिया किसान सभा (एआईकेएस) और ऑल इंडिया एग्रीकल्चर वर्कर यूनियन (एआईएवाईयू) ने एक साथ जारी की एक प्रेस विज्ञप्ति में खुलकर अपने 'फैसले' का ऐलान किया है। यह सुनने में काफी स्तब्ध करने वाला है लेकिन अंदाजा लगाया जा सकता है कि क्या कहा गया है। 

दरअसल, 5 सितंबर को दिल्ली में एक विरोध मार्च की तैयारी की जा रही है। किसानों और कामगारों की विभिन्न मांगों को लेकर होने वाले इस मार्च का आह्वान तीनों वाम संगठनों ने किया है। लेकिन इसके लिए जारी बयान में कहा गया है कि 'हमने साझा मुद्दों पर हथियारबंद संघर्ष शुरू करने का फैसला किया है।' इस ऐलान के बाद खुफिया एजेंसियां साक्ष्य जुटाने के लिए सक्रिय हो गई हैं। 

दिलचस्प है कि इस प्रेस विज्ञप्ति पर पूर्व संसद सदस्य तपन सेन और हन्नान मोल्लाह के हस्ताक्षर हैं। दोनों ने इस पर क्रमशः सीटू के महासचिव और एआईकेएस महासचिव की हैसियत से हस्ताक्षर किए हैं। लेकिन बड़ी बात यह है कि वामदलों के दो पूर्व सांसद विरोध के तौर पर 'संघर्ष' को स्वीकार कर रहे हैं। यह हैरान करने वाला है। इस विज्ञप्ति पर एआईएडब्ल्यूयू के ए विजयराघवन के भी हस्ताक्षर हैं। 

सूत्रों का कहना है कि एक अनुमान के मुताबिक, 5 सितंबर को राजधानी दिल्ली में एक लाख प्रदर्शनकारी एकत्रित होंगे। देशभर से यहां जुटने के बाद ये लोग संसद की ओर कूच करेंगे। ये प्रदर्शनकारी अतिसुरक्षित लुटियंस जोन से होकर गुजरेंगे। यहां सभी मंत्री, सांसद, नौकरशाह और सुप्रीम कोर्ट के जज रहते हैं। ऐसे में 'हथियारबंद संघर्ष' की बात कहकर इन संगठनों ने कानूनी एजेंसियों को सकते में डाल दिया है। 

मुख्यधारा में शामिल वामदल सीपीएम ने 5 सितंबर को प्रस्तावित रैली का स्वागत किया है। वहीं जेएनयू के कुछ बुद्धिजीवियों का समूह भी इसके पीछे खड़ा है। इन लोगों से सवाल है कि क्या वे इन संगठनों के विरोध के नाम पर 'हथियारबंद संघर्ष' की घोषणा का समर्थन नहीं कर रहे हैं?