घर के अंदर प्रदूषण के कुछ दुष्प्रभावों में आंखों, नाक और गले में जलन, सिरदर्द, चक्कर आना और थकान शामिल हैं। यह लंबी अवधि में हृदय रोग और कैंसर का कारण बन सकता है।  भारत जैसे देश में, जहां घर के अंदर खाना पकाने से लेकर हानिकारक रासायनों और अन्य सामग्रियों के कारण मकान के अंदर की हवा की प्रदूषित हो जाती है। यह बाहरी वायु प्रदूषण की तुलना में 10 गुना अधिक नुकसान पहुंचाती है।
भारत के कई इलाकों में घर हवादार नहीं होते है। खराब वेंटिलेशन के कारण फेफड़ों के कामकाज में कठिनाई सहित कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं। स्थिति इस वजह से और खराब हो रही है क्योंकि भारत में घर के अंदर हवा की गुणवत्ता पर कोई पुख्ता नीति नहीं है, जिस कारण इसके वास्तविक प्रभाव को मापना मुश्किल है। डॉक्टरों का कहना है, कि "लोग अपने जीवन का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा मकानों के अंदर बिताते हैं. 50 प्रतिशत से अधिक कामकाजी वयस्क दफ्तरों या गैर-औद्योगिक वातावरण में काम करते हैं. यह बड़े पैमाने पर प्रदूषण के कारण इमारत से संबंधित बीमारियों का कारण बनता है।"
विषैले रसायनों के कारण भी प्रदूषण की समस्या गंभीर हो रही है, जैसे सफाई उत्पाद, अस्थिर कार्बनिक यौगिक, धूल, एलर्जेंस, संक्रामक एजेंट, सुगंध और तंबाकू का धुआं शामिल हैं। भारत में घर के अंदर वायु की गुणवत्ता के लिए कोई औपचारिक मानक नहीं है। ऐसे में घर के अंदर वायु प्रदूषण से होने वाले स्वास्थ्य प्रभावों का अनुभव वर्षों बाद ही किया जा सकता है। 
प्रदूषित हवा में सांस लेने से दमा, खराब फेफड़े, निमोनिया, ब्रोंकाइटिस, दिल की बीमारी, खून का कैंसर, यकृत का कैंसर, फेफड़ों का कैंसर और ऑटिज्म जैसी बीमारियां हो रही हैं। 
घर के अंदर के इस प्रदूषण से बचने के लिए कई उपाय सुझाए गए हैं। इसमें से कुछ प्रमुख नीचे हैं- 
घरेलू सजावट में पौधों को अधिक से अधिक शामिल करें और अपने घर में होने वाले प्रदूषण पर निगाह रखें। 
घर के अंदर धूम्रपान से बचें और सुनिश्चित करें कि जहरीली गैसों और पदार्थों को घर के अंदर सर्द-गर्म मौसम में न छोड़ा जाए.
रेफ्रिजरेटर और अवन जैसे उपकरण नियमित रखरखाव के बिना हानिकारक गैसों को उत्सर्जित कर सकते हैं। इसलिए नियमित अंतराल पर उनकी सर्विस करवाते रहें। 
घर पर कीटनाशकों का उपयोग कम से कम करें।