भारत देश अजीब है। यहां किसी के पास इतने ज्यादा संसाधन हैं, कि वह ज्यादा भोजन करके मोटापे का शिकार हो रहा है। वहीं कुछ लोगों के पास इतना भी नहीं है कि वह पेट भर सकें, जिसकी वजह से वह कुपोषण का निशाना बन रहे हैं।
भारत देश अजीब है। यहां किसी के पास इतने ज्यादा संसाधन हैं, कि वह ज्यादा भोजन करके मोटापे का शिकार हो रहा है। वहीं कुछ लोगों के पास इतना भी नहीं है कि वह पेट भर सकें, जिसकी वजह से वह कुपोषण का निशाना बन रहे हैं।
इस राज पर से पर्दा तब उठा तब ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट जारी हुई। इस रिपोर्ट में भारत में कुपोषण और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की तस्वीर पेश की गई है, जो कि बेहद चिंताजनक है।
इस रिपोर्ट से पता चलता है कि दुनिया भर के 140 देशों में से भारत में कुपोषित बच्चों की संख्या बेहद ज्यादा है। वहां मोटापे के मामले में हमारा देश तीसरे नंबर पर है जबकि डायबिटीज यानी मधुमेह के रोगियों की संख्या भारत में दुनिया भर में सबसे ज्यादा है।
इन तीनों बीमारियों की वजह यह है कि भारतीय संतुलित आहार नहीं लेते हैं। उनके भोजन में पोषण की मात्रा कम होती है। ज्यादा अमीर लोग वसायुक्त भोजन करके मोटापे का शिकार हो रहे हैं, तो गरीब लोग कम भोजन मिलने के कारण कुपोषण का निशाना बन रहे हैं। वहीं कसरत और वर्जिश की आदत न होने की वजह से देश में डायबिटीज भी अपनी जड़ें जमा चुका है।
कुपोषण और मोटापा दोनो एक दूसरे के विरोधी है। लेकिन बुरी बात यह है कि भारतीय लोग दोनों तरफ से इसकी मार झेल रहे हैं। इससे बचने के लिए पौष्टिक और संतुलित आहार लेना बेहद जरुरी है। इसी उद्देश्य से 1 सितंबर से सात सितंबर तक राष्ट्रीय सुपोषण सप्ताह मनाया जा रहा है। इसका आयोजन हर साल होता है, इस बार इस कार्यक्रम की थीम है-‘गो फर्दर विद फूड’।
संतुलित भोजन के प्रति जागरुकता बेहद जरुरी है। क्योंकि देश में पांच साल से कम उम्र के 35.7 फीसदी बच्चों का वजन अपनी उम्र के अनुपात में कम है। 38.4 फीसदी बच्चों का शारीरिक विकास उनकी उम्र के अनुपात में नहीं हो रहा है। जबकि 21 फीसदी बच्चों की वजन उनकी लंबाई के अनुपात में बेहद कम है। दुनिया भर में उम्र के अनुपात में कम लंबाई वाले एक तिहाई बच्चे भारत में रहते हैं।
बच्चे तो कुपोषण के शिकार हैं ही महिलाओं की हालत भी कोई बेहतर नहीं है। देश की 33.6 फीसदी महिलाएं एनीमिया यानी खून की कमी की शिकार हैं। उनके भोजन में आयरन की मात्र कम होती है, जिसके कारण उनके शरीर में खून कम बनता है।
देश के लिए शर्मनाक यह है कि कुपोषण के मामले में पड़ोसी देश हमसे कहीं आगे है। चीन और श्रीलंका के बच्चों की स्थिति हमसे काफी बेहतर है। चीन में मात्र 9 फीसदी और श्रीलंका में 15 फीसदी बच्चे ही कुपोषित हैं।
Last Updated Sep 9, 2018, 12:48 AM IST