नई दिल्ली। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बसपा के छह विधायकों को कांग्रेस में शामिल करा तो लिया है। लेकिन कहीं अशोक गहलोत की ये भूल सोनिया गांधी को महंगी न भारी पड़ जाए। कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद सोनिया गांधी क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन बनाने की कवायद कर रही हैं और ऐसे में बसपा उसके लिए अहम साथी हो सकती है। लेकिन गहलोत की इस तेजी से कांग्रेस के नेता भी डरे हुए हैं क्योंकि तीन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में बसपा की नाराजगी का खामियाजा कांग्रेस को ही उठाना होगा।

दो दिन पहले ही मायावती ने जमकर हमला बोला था। माया ने कांग्रेस को धोखेबाज पार्टी कहा था। मायावती ने कांग्रेस को दलित विरोधी बताते हुए कहा था कि कांग्रेस अपने ही समर्थकों को नुकसान पहुंचाती है। बसपा प्रमुख मायावती राजस्थान में बसपा के छह विधायकों को कांग्रेस में शामिल कराने के लिए नाराज हैं। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। इससे पहले भी 2009 में कांग्रेस बसपा के ही छह विधायकों को तोड़ चुकी है।

हालांकि बसपा ने कांग्रेस को राजस्थान में बगैर शर्त समर्थन दिया था। उसके बावजूद अशोक गहलोत ने बसपा विधायकों को पार्टी में शामिल कराकर आलाकमान और खासतौर से सोनिया गांधी के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं। पिछले दिनों हरियाणा में चुनावी गठबंधन के लिए कांग्रेस के नेताओं की दिल्ली में मायावती के साथ बैठक भी हुई थी। हालांकि बाद में मायावती ने इसे अफवाह बताया था। अब जल्द ही तीन राज्य झारखंड, हरियाणा और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने हैं और बसपा कांग्रेस से काफी नाराज है।

हालांकि अभी भी बसपा मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार को समर्थन दे रही है। अब कांग्रेस को डर सता रहा है कि बसपा इन तीन राज्यों में आक्रामक होकर उसके खिलाफ चुनाव लड़ेगी और राजस्थान को मुद्दा बनाकर कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करेगी और इससे सीधे तौर पर कांग्रेस को ही नुकसान होगा। इससे कांग्रेस और बसपा का वोट बैंक बंट जाएगा और इसका सीधा फायदा भाजपा को होगा। महाराष्ट्र में बसपा सीधे तौर पर कांग्रेस के वोट बैंक को काटेगी और वहीं हरियाणा में भी बसपा कांग्रेस के दलित वोट बैंक में सेंध लगाएगी। वहीं झारखंड में दस फीसदी वोट बैंक में बसपा कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाएगी।