मानूसन सत्र के लिए भाजपा ने अपनी सियासी रणनीति की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। बुधवार को मानसून सत्र के पहले ही दिन लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कांग्रेस, एनडीए की पूर्व सहयोगी टीडीपी और शरद पवार की एनसीपी का 'अविश्वास प्रस्ताव' स्वीकार कर लिया। सरकार इतनी जल्दी प्रस्ताव स्वीकार कर लेगी, इसका अंदाजा विपक्ष को भी नहीं रहा होगा।

लोकसभा में शुक्रवार को इस प्रस्ताव पर बहस होगी। 15 साल में यह पहला मौका है जब सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया और इसे स्वीकार कर लिया गया। भाजपा सदन में मिले इस मौके को 2019 के चुनाव अभियान के लिए व्यापक रूप में इस्तेमाल करना चाहती है। वह इसे देशभर में प्रचारित करने की तैयारी में है। 

इससे पहले, बजट सत्र में भी वाईएसआर कांग्रेस और टीडीपी ने इस तरह का प्रस्ताव लाने की कोशिश की थी, लेकिन सदन में हंगामे और बार-बार सदन की कार्यवाही बाधित होने के कारण, वे नाकाम रहे। अब प्रश्न यह है कि सदन का अंक गणित भाजपा के पक्ष में होने के बावजूद ऐसा क्या है, जो सरकार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने को तैयार है?

दरअसल, भाजपा मानसून सत्र में विपक्ष को बेनकाब करना चाहती है। उसके पास कांग्रेस सांसद शशि थरूर का हिंदू विरोधी बयान, महिलाओं के आरक्षण पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की दोहरी नीति और मुस्लिम विद्वानों के साथ हुई मुलाकात के दौरान कांग्रेस को 'मुस्लिमों की पार्टी' बताने जैसे धारदार मुद्दे हैं। कांग्रेस वर्किंग कमेटी में महज तीन महिलाओं (एक सोनिया गांधी) को सीट देने से राहुल का महिला आरक्षण बिल पर सक्रियता का प्रयास भी कमजोर नजर आ रहा है। हालांकि सबसे ऊपर, तीन तलाक का मुद्दा है। पीएम नरेंद्र मोदी यूपी के आजमगढ़ में हुई रैली में इस मुद्दे को उठाकर भाजपा की रणनीति का संकेत दे चुके हैं। तीन तलाक देने पर तीन साल की जेल की सजा से जुड़े बिल पर अगर कांग्रेस अड़ंगा लाने की कोशिश करती है, तो भाजपा इस पर और मुखर हो सकती है।

ऐसा लगता है कि भाजपा पहले विपक्ष से संसद में दो-दो हाथ करना चाहती है और फिर लोकसभा में बहुमत साबित कर 2019 के चुनाव के लिए  इस मुद्दे को जनता के बीच ले जाना चाहती है। 

अविश्वास प्रस्ताव को आगे बढ़ाकर कांग्रेस की रणनीति लोगों में अनिश्चितता की स्थिति पैदा करने की है, हालांकि यहीं वह भाजपा के 'सियासी चक्रव्यूह' में फंसती नजर आ रही है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष, मुख्य रूप से कांग्रेस को सदन की कार्यवाही में बाधा डालने वाले, महिला विरोधी और हिंदू विरोधी दल के रूप में चित्रित करना चाहते हैं। बुधवार को पीएम ने यह कहकर सत्र का एजेंडा तय कर दिया कि वह सभी दलों से रचनात्मक बहस की उम्मीद करते हैं। साफ है कि पीएम ने विपक्ष पर तीखे हमलों का आधार तैयार कर दिया है। 

अगर भाजपा विधेयकों को पास कराने में हो रही देरी के लिए विपक्ष को जिम्मेदार ठहराने में कामयाब हो जाती है, तो कहां-कहां कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है, एक नजरः

1. तीन तलाक बिलः यह विधेयक पहले ही काफी समय से लंबित है। अब इसमें और देरी से कई मुस्लिम महिलाएं नाराज हो सकती है। भाजपा को यूपी विधानसभा चुनाव में मिली शानदार सफलता में इस मुद्दे पर मुस्लिम महिलाओं के वोट का बड़ा योगदान रहा था। पीएम ने हाल ही में मुस्लिम महिलाओं और पुरुषों के बीच कांग्रेस को उलझा दिया। आजमगढ़ में हुई रैली में उन्होंने राहुल को यह साफ करने को कहा कि अगर 'कांग्रेस मुस्लिमों की पार्टी' हो तो क्या इसमें मुस्लिम महिलाओं के लिए कोई जगह नहीं है। 

2. मेडिकल कमीशन बिलः इलाज के दौरान लापरवाही की हैरान कर देने वाली घटनाओं के बीच मध्यम एवं निचला मध्यम वर्ग इस बिल में अब और कोई देरी नहीं चाहता। 

3. ओबीसी आयोग बिलः यह बिल पिछड़ा आयोग को संवैधानिक दर्जा देने से जुड़ा है। यह भारत के सबसे बड़े जाति वर्ग के लिए महत्वपूर्ण है। 

इन सब मुद्दों के अलावा कांग्रेस 'अपनों' की बयानबाजी और संसदीय बहस के बीच उलझ गई है।