प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेडियो पर प्रसारित होने वाले मन की बात कार्यक्रम में 46वीं बार देश को संबोधित किया। कार्यक्रम की शुरुआत में उन्होंने कहा कि हमें प्रकृति का संरक्षक बनना चाहिए। पीएम ने कहा अगस्त महीना इतिहास की अनेक घटनाओं, उत्सवों की भरमार से भरा रहता है, लेकिन मौसम के कारण कभी-कभी बीमारी भी घर में प्रवेश कर जाती है। मैं आप सब को उत्तम स्वास्थ्य के लिए, देशभक्ति की प्रेरणा जगाने वाले, इस अगस्त महीने के लिए और सदियों से चले आ रहे अनेक-अनेक उत्सवों के लिए शुभकामनाएं देता हूं। 

प्रकृति के रक्षक बने

पीएम ने कहा, इन दिनों बहुत से स्थान पर अच्छी वर्षा की ख़बरें आ रही हैं। कहीं-कहीं पर अधिक वर्षा के कारण चिंता की भी ख़बर आ रही है और कुछ स्थानों पर अभी भी लोग वर्षा की प्रतीक्षा कर रहे हैं। भारत की विशालता, विविधता, कभी-कभी वर्षा भी पसंद-नापसंद का रूप दिखा देती है, लेकिन हम वर्षा को क्या दोष दें, मनुष्य ही है जिसने प्रकृति से संघर्ष का रास्ता चुन लिया और उसी का नतीज़ा है कि कभी-कभी प्रकृति हम पर रूठ जाती है। और इसीलिये हम सबका दायित्व बनता है – हम प्रकृति प्रेमी बनें, हम प्रकृति के रक्षक बनें, हम प्रकृति के संवर्धक बनें, तो प्रकृतिदत्त जो चीज़े हैं उसमें संतुलन अपने आप बना रहता है।

थाईलैंड में गुफा बचाव अभियान का जिक्र

पीएम ने थाईलैंड में एक गुफा में फंसे बच्चों को सुरक्षित निकालने के लिए चलाए गए अभियान का जिक्र करते हुए कहा, पिछले दिनों वैसे ही एक प्राकृतिक आपदा की घटना ने पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित किया, मानव-मन को झकझोर दिया। आप सब लोगों ने टीवी पर देखा होगा, थाईलैंड में 12 किशोर फुटबॉल खिलाड़ियों की टीम और उनके कोच घूमने के लिए गुफ़ा में गए। वहां आमतौर पर गुफ़ा में जाने और उससे बाहर निकलने, उन सबमें कुछ घंटों का समय लगता है। लेकिन उस दिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। जब वे गुफ़ा के भीतर काफी अन्दर तक चले गए – अचानक भारी बारिश के कारण गुफ़ा के द्वार के पास काफी पानी जम गया। उनके बाहर निकलने का रास्ता बंद हो गया। कोई रास्ता न मिलने के कारण वे गुफ़ा के अन्दर के एक छोटे से टीले पर रुके रहे - और वो भी एक-दो दिन नहीं – 18 दिन तक। आप कल्पना कर सकते हैं किशोर अवस्था में सामने जब मौत दिखती हो और पल-पल गुजारनी पड़ती हो तो वो पल कैसे होंगे ! एक तरफ वो संकट से जूझ रहे थे, तो दूसरी तरफ पूरे विश्व में मानवता एकजुट होकर के ईश्वरदत्त मानवीय गुणों को प्रकट कर रही थी। दुनिया भर में लोग इन बच्चों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए प्रार्थनाएँ कर रहे थे। यह पता लगाने का हर-संभव प्रयास किया गया कि बच्चे हैं कहाँ, किस हालत में हैं। उन्हें कैसे बाहर निकाला जा सकता है। अगर बचाव कार्य समय पर नहीं हुआ तो मानसून के सीजन में उन्हें कुछ महीनों तक निकालना संभव नहीं होता। खैर जब अच्छी ख़बर आई तो दुनिया भर को शांति हुई, संतोष हुआ, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम को एक और नज़रिये से भी देखने का मेरा मन करता है कि पूरा ऑपरेशन कैसा चला। हर स्तर पर ज़िम्मेवारी का जो अहसास हुआ वो अद्भुत था। सभी ने, चाहे सरकार हो, इन बच्चों के माता-पिता हों, उनके परिवारजन हों, मीडिया हो, देश के नागरिक हों - हर किसी ने शान्ति और धैर्य का अदभुत आचरण करके दिखाया। सबके-सब लोग एक टीम बनकर अपने मिशन में जुटे हुए थे। हर किसी का संयमित व्यवहार – मैं समझता हूं एक सीखने जैसा विषय है, समझने जैसा है। ऐसा नहीं कि मां-बाप दुखी नहीं हुए होंगे, ऐसा नहीं कि मां के आंख से आंसूं नहीं निकलते होंगे, लेकिन धैर्य, संयम, पूरे समाज का शान्तचित्त व्यवहार - ये अपने आप में हम सबके लिए सीखने जैसा है। इस पूरे ऑपरेशन में थाईलैंड की नौसेना के एक जवान को अपनी जान भी गंवानी पड़ी। पूरा विश्व इस बात पर आश्चर्यचकित है कि इतनी कठिन परिस्थितियों के बावज़ूद पानी से भरी एक अंधेरी गुफ़ा में इतनी बहादुरी और धैर्य के साथ उन्होंने अपनी उम्मीद नहीं छोड़ी। यह दिखाता है कि जब मानवता एक साथ आती है, अदभुत चीज़ें होती हैं। बस ज़रूरत होती है हम शांत और स्थिर मन से अपने लक्ष्य पर ध्यान दें, उसके लिए काम करते रहें। 

गोपाल दास नीरज को कविता के जरिये दी श्रद्धांजलि

पिछले दिनों हमारे देश के प्रिय कवि नीरज जी हमें छोड़कर के चले गए। नीरज जी की एक विशेषता रही थी - आशा, भरोसा, दृढसंकल्प, स्वयं पर विश्वास। हम हिन्दुस्तानियों को भी नीरज जी की हर बात बहुत ताक़त दे सकती है , प्रेरणा दे सकती है - उन्होंने लिखा था -

‘अंधियार ढलकर ही रहेगा, 
आंधियां चाहे उठाओ,
बिजलियां चाहे गिराओ,
जल गया है दीप तो अंधियार ढलकर ही रहेगा’।

नीरज जी को आदरपूर्वक श्रद्धांजलि देता हूं।

दिल्ली यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेने वाले सत्यम को संदेश

पीएम ने सत्यम के सवाल के जवाब में कहा, वैसे तो जुलाई और अगस्त के महीने किसानों के लिए और सभी नौजवानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। क्योंकि यही वक़्त होता है जब कॉलेज का पीक सीजन होता है। ‘सत्यम’ जैसे लाखों युवा स्कूल से निकल करके कॉलेज में जाते हैं। अगर फरवरी और मार्च एक्जाम, पेपर और आंसर में जाता है तो अप्रैल और मई छुट्टियों में मौज़मस्ती करने के साथ-साथ रिजल्ट, जीवन में आगे की दिशाएं तय करने, करियर और पसंद, इसी में खप जाता है। जुलाई वह महीना है जब युवा अपने जीवन के उस नये चरण में क़दम रखते हैं जब फोकस सवालों से हटकर के कटऑफ पर चला जाता है। छात्रों का ध्यान होम से हॉस्टल पर चला जाता है। छात्र माता-पिता की छाया से प्रोफेसर की छाया में आ जाते हैं। मुझे पूरा यकीन है कि मेरा युवा-मित्र कॉलज जीवन की शुरुआत को लेकर काफी उत्साही और खुश होंगे। पहली बार घर से बाहर जाना, गांव से बाहर जाना, एक प्रोटेक्टिव माहौल से बाहर निकल करके खुद को ही अपना सारथी बनना होता है। इतने सारे युवा पहली बार अपने घरों को छोड़कर, अपने जीवन को एक नई दिशा देने निकल आते हैं। कई छात्रों ने अभी तक अपने-अपने कॉलेज ज्वाइन कर लिए होंगे, कुछ करने वाले होंगे। आप लोगों से मैं यही कहूंगा धैर्य रखें और जीवन में अंतर्मन का भरपूर आनंद लें। किताबों के बिना कोई चारा तो नहीं है, स्टडी तो करनी पड़ती है, लेकिन नई-नई चीजें खोज़ने की प्रवृति बनी रहनी चाहिए। पुराने दोस्तों का अपना महामूल्य है। बचपन के दोस्त मूल्यवान होते हैं, लेकिन नये दोस्त चुनना, बनाना और बनाए रखना, यह अपने आप में एक बहुत बड़ी समझदारी का काम होता है। कुछ नया सीखें, जैसे नई-नई स्किल्स, नई-नई भाषाएं सीखें। नई  पारी प्रारंभ कर रहे हैं सभी नौजवानों को मेरी शुभकामनाएं हैं। 

गुदड़ी के लालों की मेहनत को सराहा

कड़ी मेहनत से सफलता की कहानियां लिखने वाले युवाओं का जिक्र करते हुए पीएम ने कहा, अभी जब कॉलेज सीजन की बात हो रही है तो मैं समाचार में देख रहा था कि कैसे मध्यप्रदेश के एक अत्यंत ग़रीब परिवार से जुड़े एक छात्र आशाराम चौधरी ने जीवन की मुश्किल चुनौतियों को पार करते हुए सफ़लता हासिल की है। उन्होंने जोधपुर एम्स की एमबीबीएस की परीक्षा में अपने पहले ही प्रयास में सफ़लता पाई है। उनके पिता कूड़ा बीनकर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं। मैं उनकी इस सफ़लता के लिए उन्हें बधाई देता हूँ। ऐसे कितने ही छात्र हैं जो ग़रीब परिवार से हैं और विपरीत परिस्थियों के बावज़ूद अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने कुछ ऐसा कर दिखाया है, जो हम सबको प्रेरणा देता है। चाहे वो दिल्ली के प्रिंस कुमार हों, जिनके पिता डीटीसी में बस चालक हैं या फिर कोलकाता के अभय गुप्ता जिन्होंने फुटपाथ पर स्ट्रीट लाइट के नीचे अपनी पढ़ाई की। अहमदाबाद की बिटिया आफरीन शेख़ हो, जिनके पिता ऑटो रिक्शा चलाते हैं। नागपुर की बेटी खुशी हो, जिनके पिता भी स्कूल बस में ड्राइवर हैं या हरियाणा के कार्तिक, जिनके पिता चौकीदार हैं या झारखंड के रमेश साहू जिनके पिता ईंट-भट्टा में मजदूरी करते हैं। ख़ुद रमेश भी मेले में खिलौना बेचा करते थे या फिर गुडगांव की दिव्यांग बेटी अनुष्का पांडा, जो जन्म से ही एक आनुवांशिक बीमारी से पीड़ित है, इन सबने अपने दृढसंकल्प और हौसले से हर बाधा को पार कर – दुनिया देखे ऐसी कामयाबी हासिल की।  हम अपने आस-पास देखें तो हमको ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे।

देश के किसी भी कोने में कोई भी अच्छी घटना मेरे मन को ऊर्जा देती है, प्रेरणा देती है और जब इन नौजवानों की कथा आपको कह रहा हूं तो इसके साथ मुझे नीरज जी की भी वो बात याद आती है और ज़िंदगी का वही तो मक़सद होता है। नीरज जी ने कहा है –

‘गीत आकाश को धरती का सुनाना है मुझे,

हर अंधेरे को उजाले में बुलाना है मुझे,

फूल की गंध से तलवार को सर करना है,

और गा-गा के पहाड़ों को जगाना है मुझे’

लोकमान्य तिलक और चंद्रशेखर आजाद को नमन

सामाजिक बुराइयों से लड़ने के लिए संतों की भूमिका का जिक्र

नए भारत के सपने का जिक्र 

हिमा दास, एकता भयान, योगेश कठुनिया, सुंदर सिंह गुर्जर को दी बधाई

पीएम ने विश्व स्पर्धाओं में शानदार प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों की बधाई देते हुए कहा, अभी कुछ ही दिन पहले फिनलैं में चल रही जूनियर अंडर-20 विश्व एथेलेटिक्स चैम्पियनशिप में 400 मीटर की दौड़, उस स्पर्धा में भारत की बहादुर बेटी और किसान पुत्री हिमा दास ने गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया है। देश की एक और बेटी एकता भयान ने मेरे पत्र के जवाब में इंडोनेशिया से मुझे ई-मेल किया अभी वो वहां एशियन की तैयारी कर रही हैं। ई-मेल में एकता लिखती हैं – ‘किसी भी एथलीट के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण क्षण वो होता है जब वो तिरंगा पकड़ता है और मुझे गर्व है कि मैंने वो कर दिखाया।’ एकता हम सब को भी आप पर गर्व है। आपने देश का नाम रोशन किया है। ट्यूनीशिया में विश्व पैरा एथलेटिक्स ग्रां प्री 2018 में एकता ने गोल्ड और ब्रांज मेडल जीते हैं। उनकी यह उपलब्धि विशेष इसलिए है कि उन्होंने अपनी चुनौती को ही अपनी कामयाबी का माध्यम बना दिया। बेटी एकता भयान 2003 में सड़क हादसे के कारण उसके शरीर का आधा हिस्सा नीचे का हिस्सा नाकाम हो गया, लेकिन इस बेटी ने हिम्मत नही हारी और खुद को मजबूत बनाते हुए ये मुकाम हासिल किया। एक और दिव्यांग योगेश कठुनिया जी ने, उन्होंने बर्लिन में पैरा एथलेटिक्स ग्रां प्री में चक्का फेंक में गोल्ड मेडल जीतकर रिकॉर्ड बनाया है उनके साथ सुंदर सिंह गुर्जर ने भी भाला फेंक में गोल्ड मेडल जीता है। मैं एकता भयान, योगेश कठुनिया और सुंदर सिंह  के हौसले और ज़ज्बे को सलाम करता हूं, बधाई देता हूं। आप और आगे बढ़ें, खेलते रहें, खिलते रहें।