पाकिस्तान के बालाकोट में हुए एयरस्ट्राइक के बाद जैश ए मोहम्मद से जुड़ा एक भी शख्स सामने नहीं आया और प्रभावित क्षेत्र में पूरी तरह अंधेरा छाया हुआ है। किसी भी और कारण से ज्यादा यह वजह चीख चीखकर एयर स्ट्राइक की सफलता के बारे में बता रही है।
पहला तथ्य: इस हमले को कम करके दिखाने की पाकिस्तान की बेचैनी
हमले के बाद पाकिस्तानी और भारतीय मीडिया के कुछ हिस्से ने एयर स्ट्राइक पर से ध्यान हटाने के लिए अलग तरह का राग अलापना शुरु कर दिया। जिसकी शुरुआत हुई बालाकोट पर भ्रम पैदा करने से। सच तो यह है कि भारतीय हमले का निशाना बना बालाकोट खैबर पख्तूनवा का हिस्सा है, जो कि 2004 में हुए विकीलीक्स के खुलासों को मुताबिक जैश ए मोहम्मद का मुख्य अड्डा था। लेकिन इसकी जगह उस बालाकोट पर ध्यान आकर्षित किया गया जो कि नियंत्रण रेखा के पास का एक अनजान सा गांव है।
यह प्रोपगैंडा लगभग 15 से 20 मिनट तक चला फिर खुद ही खत्म हो गया। पाकिस्तान सेना के डायरेक्टर जनरल ऑफ इंटर सर्विसेज पब्लिक रिलेशन ने दो घंटे में ही अपना बयान बदल लिया। पहले तो नियंत्रण रेखा के पास वाले बालाकोट की बात की गई लेकिन बाद में स्वीकार किया गया कि यह खैबर पख्तूनवां के पास वाला बालाकोट था। जबकि शर्मनाक तरीके से आम पाकिस्तानियों द्वारा ट्विटर पर जारी की गई हमले की तस्वीरों में यह साफ तौर पर लड़ाकू विमान बालाकोट पर मंडराते हुए दिख रहे थे। लेकिन सोशल मीडिया के इस युग में सचाई ज्यादा समय तक नहीं छिप सकती है। अब यह स्पष्ट हो गया है कि यह खैबर पख्तूनवा का ही बालाकोट था, जहां हमला किया गया।
इस बात पर चर्चा इसलिए भी जरुरी है कि ज्यादातर मौकों पर पाकिस्तान सचाई को छिपाने की कोशिश करता है। उदाहरण के तौर पर करगिल युद्ध के समय भी पाकिस्तान की ओर यह जताने की कोशिश की गई थी कि उसे ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था। लेकिन खुद पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ ने स्वीकार किया था कि इस जंग का नुकसान 1965 के युद्ध से बड़ा था। यहां तक कि पाकिस्तानी मृतकों के ताबूत को भी छिपाने की कोशिश की गई थी।
दूसरा तथ्य: प्रतिक्रिया देने में भारत का परिपक्व रवैया
2016 में हुए सर्जिकल स्ट्राइक के ठीक विपरीत सरकार ने इस बार बेहद संयम बरता। जो कि इस सरकार को देखते हुए सचमुच आश्चर्यजनक था।
हमारी बड़ी जीत में एक डोकलाम गतिरोध और अब एयरस्ट्राइक के दौरान सरकार की ओर से बेहद गंभीर और परिपक्व रवैया अपनाया गया, जबकि छोटी उपब्धियों का ज्यादा ढोल पीटा गया।
यह भारतीय नेतृत्व के लिए एक महत्वपूर्ण सबक रहा है क्योंकि यह दर्शाता है कि वायु शक्ति, जब सही ढंग से इस्तेमाल की जाए तो यह हताहतों की संख्या को कम कर सकती है और इसे एक सटीक उपकरण की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे पाकिस्तान के अंदर गहरी क्षति पहुंचाई जा सकती है।
जमीनी हमलों की तुलना में ये लाभ अधिक दीर्घकालिक हैं जो बिना अंदर तक गए पर्याप्त नुकसान पहुंचाते हैं।
इसी तरह, हमलों की पुष्टि करने करने का काम विदेश सचिव पर छोड़ दिया गया। जिन्होंने मामले को तथ्यपूर्ण तरीके से पेश किया। उन्होंने इस मामले को इस तरह सबके सामने रखा जिससे यह महसूस हुआ कि यह तत्काल औऱ आसन्न खतरे को दूर करने के लिए उठाया गया कदम था, जो कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों के मुताबिक बेहद उचित कदम था।
यह पिछले मौकों के बिल्कुल उल्टा था जब उलझे तरीके से स्पष्टीकरण दिए गए, जो कि दंडात्मक या निरोधक कार्रवाई के तौर पर पेश किए गए थे। जिसे अवैध माना जाता है।
स्पष्ट रूप से यह एक अच्छी तरह से सोची-समझी प्रतिक्रिया थी, जो ऊपर से ही निर्देशित की जा रही थी। उम्मीद है कि आगे भी इसी तरह के समझदारी भरे कदम उठाए जाएंगे। हालांकि यह नेतृत्व पर निर्भर करता है।
तीसरा तथ्य: जैश ए मोहम्मद के नेतृत्व की चुप्पी
भारतीय एयर स्ट्राइक को विफल करार देने का सबसे बड़ा सबूत यह होता कि जैश ए मोहम्मद का नेतृत्व जिसमें मसूद अजहर का जीजा मौलाना युसूफ अजहर भी शामिल है, को कैमरे के सामने ले आना।
लेकिन यह करना तो दूर, जैश ए मोहम्मद से जुड़ा एक भी शख्स सामने नहीं आया और प्रभावित क्षेत्र में पूरी तरह अंधेरा छाया हुआ है। किसी भी और कारण से ज्यादा यह वजह चीख चीखकर एयर स्ट्राइक की सफलता के बारे में बता रहा है।
बिल्कुल मार्गरेट थैचर की तरह जिन्होंनेकहा था कि ‘शक्तिशाली होना एक औरत की तरह होने जैसा है। जब आपको बताना है कि आप हैं तब आप नहीं होते।’
स्पष्ट तौर पर यह एक बड़ी सफलता है, इसका ढोल पीटने की जरुरत नहीं है क्योंकि यह अपने बारे में खुद ही सब कुछ बता रहा है।
(लेखक रक्षा और रणनीतिक मामलों के जानकार हैं। यहां दर्शाए गए उनके विचार निजी हैं और जरुरी नहीं है कि माय नेशन उससे पूरी तरह सहमत हो।)
Last Updated Feb 27, 2019, 6:56 PM IST