सुनंदा पुष्कर मौत मामले में भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी की ओर से दायर नई याचिका पर राउज एवेन्यू कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट 13 मई को फैसला सुनायेगा।
मामले की सुनवाई के दौरान स्वामी ने अपना जवाब दाखिल किया। स्वामी ने जयललिता, और चौटाला केस का उदाहरण देते हुए अदालत को बताया कि सीआरपीसी की धारा 302 यानि हत्या के तहत वो इस मामले में कोर्ट और अभियोजन पक्ष की सहायता का अधिकार रखते हैं।

सुब्रमण्यम स्वामी ने थरूर पर आरोप भी लगाया। स्वामी ने कहा मंत्री होने की वजह से उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने में देर की गई। मेरे हस्तक्षेप के बाद ही मुकदमा दर्ज हुआ। स्वामी ने यह भी कहा कि सुनंदा पुष्कर के फोन आरोपी के परिवार को सौंपे गए। जहां उसका डेटा डिलीट किया गया। 

शशि थरूर के वकील विकास पाहवा ने स्वामी की याचिका का विरोध किया है और स्वामी की याचिका को खारिज करने की मांग की। विकास पाहवा ने कहा कि इसी मामले में स्वामी की जनहित याचिका को दिल्ली हाईकोर्ट खारिज कर चुका है। 

थरूर के वकील विकास पाहवा ने स्वामी पर आरोप भी लगाया। पाहवा ने कहा कि स्वामी इसी तरह निर्भया केस में दखल देने की कोशिश कर चुके हैं। लेकिन हाईकोर्ट ने इनकी मांग को ठुकरा दिया था। सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका का दिल्ली पुलिस ने विरोध किया है और याचिका खारिज करने की मांग की है। 

बता दें कि स्वामी ने नए सिरे से अर्जी दाखिल कर इस मामले में अभियोजन पक्ष की सहायता करने की अनुमति मांगी है। हालांकि स्वामी के इस आवेदन का शशि थरूर के वकील विकास पाहवा ने विरोध किया है। 

पिछली सुनवाई के दौरान स्वामी ने दिल्ली पुलिस पर साक्ष्यों से छेड़छाड़ का आरोप लगाया था। स्वामी ने दिल्ली पुलिस पर आरोप लगाया है कि करीब चार साल तक चली जांच के बाद 14 मई 2018 को शशि थरूर के खिलाफ तीन हजार पन्नों का आरोप पत्र दाखिल किया था। 

स्वामी की इस अर्जी पर स्पेशल जज अरुण भारद्वाज सुनवाई कर रहे हैं। स्वामी ने दिल्ली पुलिस के विजिलेंस विभाग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए एक बार फिर कहा था कि वह इस मामले में कोर्ट व अभियोजन की सहायता करना चाहते है, उन्हें इसकी अनुमति दी जाए। 

जिसका विरोध करते हुए कहा था कि इस मामले में स्वामी को आवेदन दायर करने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वह न शिकायतकर्ता है और ना ही पीड़ित है। उनका आवेदन पहले भी एक बार खारिज हो चुका है। जिसपर कोर्ट के समक्ष स्वामी ने कहा था कि उन्हें इस मामले में दखल देने का पूरा अधिकार है क्योंकि उन्होंने इस मुद्दे को सबसे पहले उठाया था और उनकी याचिका पर सुनवाई के बाद ही इस मामले में जांच हो पाई थी।

गौरतलब है कि सुनंदा पुष्कर की मौत 17 जनवरी 2014 को होटल लीला के कमरे में हुई थी लेकिन पुलिस ने इसके एक साल बाद 2015 में हत्या व अन्य धाराओं में एफआईआर दर्ज की थी। जांच के बाद खुदकुशी के लिए उकसाने व क्रूरता की धाराओं में आरोप पत्र दाखिल की गई थी।