नई दिल्ली: भारत ने अपनी लोकतांत्रिक ताकत के बलबूते तीन तलाक जैसे कुरीति को दफन कर दिया है। लेकिन इसके बावजूद कश्मीर की महिलाएं तीन तलाक जैसी गैरबराबरी आधारित मजहबी रिवाजों का आतंक झेलने के लिए मजबूर रहेंगी। क्योंकि वहां धारा 370 लागू है जो कि जम्मू कश्मीर के निवासियों को यह अधिकार देती है कि वह संसद द्वारा लाए गए कानूनों को अपनी विधानसभा द्वारा सहमति मिलने के बाद ही मानें। इस धारा 370 की मूल आत्मा है 35-ए। जो कि राज्य के स्थायी निवासियों को कुछ विशेष अधिकार प्रदान करती है और इसी ने जम्मू कश्मीर के निवासियों में भारत गणराज्य के खिलाफ अलगाव जहर भर दिया है। 

असंवैधानिक है 35-ए
हालांकि 35-ए पूरी तरह असंवैधानिक है। क्योंकि इसे बिना संसद की मंजूरी के लागू किया गया था। जबकि संविधान का 368(i)संविधान में किसी तरह के संशोधन का अधिकार संसद के पास सुरक्षित रखता है। इसी को आधार बनाते हुए साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 35-ए को चुनौती दी गई थी। लेकिन सरकार के पास अध्यादेश लाकर इसे निरस्त करने विकल्प हमेशा खुला हुआ है। 

अब जरुरत है कि जिस तरह से सरकार ने तीन तलाक पर इच्छाशक्ति दिखाते हुए तमाम विरोधों के बावजूद उसके खिलाफ संसद से कानून बनवा दिया। ठीक उसी तर्ज पर 35-ए को भी रद्दी की टोकरी में डाल दिया जाए। 

तीन तलाक की ही तरह हो 35-ए के लिए संसदीय रणनीति
लोकसभा से तीन तलाक बिल पास कराने के बाद  सरकार को पूरा अंदेशा था कि राज्यसभा में एकजुट विपक्ष उसके रास्ते में बाधा डाल सकता है। क्योंकि उच्च सदन में बिल के समर्थक और विरोधी दोनों ही बराबर संख्या में थे।

सरकार को पहले से ये अंदेशा था कि जेडी(यू) और अन्नाद्रमुक उसके सहयोगी होने के बावजूद इस बिल के विरोध में रहेंगे। लेकिन इन दोनों ने वाक आउट करके सरकार की राह आसान कर दी। 
इसके बाद सरकार का फ्लोर मैनेजमेन्ट शुरु हुआ। गृहमंत्री अमित शाह पूरे दिन संसद में रहे. बीच बीच में वो संसद भवन के अपने कमरे और राज्यसभा के भीतर आते जाते रहे। 

बीजेडी ने लोकसभा में ही सरकार के इस बिल पर समर्थन कर दिया था, वो राज्यसभा में भी बरकरार रहा। तेलंगाना राष्ट्र समिति  के 6 सांसदों, तेलगू देशम पार्टी के दो और बहुजन समाज पार्टी के चार सांसदों ने वोटिंग के दौरान बहिष्कार कर सरकार का काम आसान कर दिया। 

कांग्रेस के 48 में से 3 सांसद अलग-अलग कारणों से अनुपस्थित थे,  तो चौथे संजय सिंह ने इस्तीफा देकर कांग्रेस का दामन छोड़ दिया। 
तृणमूल कांग्रेस टीएमसी के भी दो सांसद सदन में नहीं थे। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कुल 4 सांसद हैं, लेकिन शरद पवार और प्रफ्फुल पटेल सदन से अनुपस्थित थे। 

समाजवादी पार्टी के 12 सांसदों में से अमर सिंह अलग हैं, नीरज शेखर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं, बेनी प्रसाद वर्मा अस्वस्थ हैं। राष्ट्रीय जनता दल के राम जेठमलानी भी अस्वस्थता के कारण सदन में नहीं थे। 

भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकारों के पास उच्च सदन के सभी सांसदों के बारे में विस्तार से जानकारी थी। इसलिए उन्होंने ऐसे समय पर तीन तलाक बिल को पटल पर रखा। यह उनकी रणनीति(फ्लोर मैनेजमेन्ट) का ही कमाल था कि तीन तलाक बिल कानून बन गया। 

अब 35-ए के लिए भी ऐसी ही चाणक्य नीति की है जरुरत 
जैसे तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाना मुस्लिम महिलाओं के लिए जिंदगी और मौत का सवाल था। ठीक उसी तरह 35-ए भी देश की एकता औऱ अखंडता पर प्रश्नचिन्ह है।  35-ए एक अस्थायी उपबंध था जिसे राज्य में हालात को उस समय स्थिर करने के लिए जोड़ा गया था।  इस अनुच्छेद 35-ए को संविधान के निर्माताओं ने नहीं बनाया। इसे शेख अब्दुल्ला और नेहरू के बीच 1952 के दिल्ली समझौता के बाद 1954 में को संविधान में जोड़ा गया।35ए के जरिए भारतीय नागरिकता को जम्मू-कश्मीर की राज्य सूची का मामला बना दिया। 

अब जरुरत है कि केन्द्र सरकार जल्दी से जल्दी संसद के जरिए इस भेदभावपूर्ण अनुच्छेद को खत्म कर दे। शायद इसके लिए तैयारियां भी चल रही हैं। क्योंकि पिछले कुछ दिनों से घाटी में जबरदस्त सुरक्षा की व्यवस्था की गई है। वहां 10 हजार अतिरिक्त सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है। 

शायद ऐसा करने की जरुरत इसलिए पड़ रही है क्योंकि कश्मीरी नेताओं ने जम्मू कश्मीर की जनता के दिमाग में यह भर रखा कि धारा 370 और अनुच्छेद 35-ए उनके लिए जरुरी है। जबकि वास्तविकता यह है कि इनकी वजह से कश्मीर का विकास नहीं हो पा रहा है। जिसका खमियाजा कश्मीरी जनता को भुगतना पड़ रहा है। 

यही वजह है कि अनुच्छेद 35-ए को संशोधन प्रस्ताव द्वारा हटाने की कोशिश में राज्य में किसी तरह का उपद्रव ना खड़ा हो जाए। इसीलिए केन्द्र सरकार अपनी तैयारियों में जुटी हुई है। लेकिन मामले की गंभीरता और उपद्रव की आशंका को देखते हुए सरकार अभी किसी तरह के खुलासे से बच रही है।