दो साल पहले अखिलेश यादव ने अपने वफादारों से मिलकर मुलायम सिंह को पार्टी के अध्यक्ष के पद से हटाकर मुलायम को संरक्षक के पद पर नियुक्त किया था और पार्टी की कमान अपने हाथ में ले ली थी। उस वक्त अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और उन्होंने अपने चाचा शिवपाल सिंह को भी पार्टी से निकाल दिया था। यादव परिवार में इसके कारण दो फाड़ हो गए थे। लेकिन मुलायम पुत्रमोह में कुछ ज्यादा नहीं कर पाए। लेकिन राज्य में 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में सपा को करारी हार का सामना करना पड़ा था और पार्टी 47 सीटों पर सिमट गई।
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के सबसे सियासी परिवार में अब गांधी परिवार की तरह से चर्चा होने लगी है। कांग्रेस ने पिछले दिनों सोनिया गांधी की कमान सौंपी तो अब सपा में भी पार्टी संरक्षक मुलायम सिंह को फिर से पार्टी का मुखिया का पद देने की चर्चा शुरू हो गई हैं। हालांकि अभी किसी ने भी इस बारे में कोई बयान नहीं दिया है। लेकिन पार्टी के भीतर संगठन को मजबूत करने के लिए मुलायम को पार्टी की कमान देने की चर्चा शुरू हो गई है। पार्टी के दिग्गज नेता पार्टी से किनारा कर रहे हैं और पार्टी का प्रदर्शन लगातार खराब होता जा रहा है। ऐसे में अनुभवी मुलायम को अध्यक्ष बनाकर अखिलेश कार्यकारी अध्यक्ष बन सकते हैं।
मुलायम सिंह अभी पार्टी के संरक्षक के पद पर हैं। दो साल पहले अखिलेश यादव ने अपने वफादारों से मिलकर मुलायम सिंह को पार्टी के अध्यक्ष के पद से हटाकर मुलायम को संरक्षक के पद पर नियुक्त किया था और पार्टी की कमान अपने हाथ में ले ली थी। उस वक्त अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और उन्होंने अपने चाचा शिवपाल सिंह को भी पार्टी से निकाल दिया था। यादव परिवार में इसके कारण दो फाड़ हो गए थे। लेकिन मुलायम पुत्रमोह में कुछ ज्यादा नहीं कर पाए।
लेकिन राज्य में 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में सपा को करारी हार का सामना करना पड़ा था और पार्टी 47 सीटों पर सिमट गई। ये चुनाव भी अखिलेश यादव के पार्टी अध्यक्ष के तौर पर लड़े गए थे। इसके बाद दो तीन महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में सपा महज पांच सीटों में सिमट गई। जबकि अखिलेश ने बीएसपी के साथ चुनावी गठबंधन किया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में सिफर मे सिमटने वाली बीएसपी इस लोकसभा चुनाव में दस सीटें जीतने में कामयाब रही।
अखिलेश के नेतृत्व में उठ रहे हैं सवाल
अखिलेश के नेतृत्व में अब पार्टी के भीतर ही सवाल उठने शुरू हो गए हैं। पिछले एक महीने के दौरान तीन राज्यसभा सांसदों ने इस्तीफा दे दिया। इसमें तो सबसे करीबी संजय सेठ ने भी पार्टी से इस्तीफा दिया है जबकि वह पार्टी के कोषाध्यक्ष के पद पर थे। लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव ने मायावती के साथ चुनावी गठजोड़ किया था। हालांकि मुलायम इसके पक्ष में नहीं थे। इसके बावजूद अखिलेश ने चुनाव गठबंधन किया। लेकिन पार्टी को हार मिली। यही नहीं कई और नेता जल्द ही पार्टी से किनारा करने वाले हैं।
राहुल की तरह हो गए हैं अखिलेश फ्लॉप
कांग्रेस में जिस तरह से राहुल गांधी एक तरह से फ्लॉप हो चुके हैं। उसी तरह से अखिलेश यादव भी पार्टी के भीतर फ्लॉप साबित हुए हैं। दोनों नेताओं ने 2017 में भी अपनी अध्यक्ष के तौर पर राजनीति पारी खेली थी। लेकिन दोनों ही असफल रहे हैं। अखिलेश यादव ने 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन किया था जबकि पहले कांग्रेस सपा के खिलाफ आंदोलन कर रही थी। लेकिन दोनों दलों को गठबंधन करने के बाद भी कोई फायदा नहीं हुआ।
Last Updated Aug 19, 2019, 7:07 PM IST