भारत और रूस की साझेदारी में बनी ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल की मांग दुनिया भर में बढ़ रही है। फिलीपींस के बाद अब वियतनाम, इंडोनेशिया और यूएई इसे खरीदने के लिए उत्सुक हैं। जानें इसकी खासियत।
नई दिल्ली। भारत और रूस की साझेदारी में बनी ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ने ग्लोबल लेवल पर अपनी अलग पहचान बनाई है। अचूक निशाना और तेज गति के साथ दुश्मनों पर कहर बनकर टूट पड़ने वाली यह मिसाइल कई देशों को अट्रैक्ट कर रही है। फिलीपींस के बाद अब वियतनाम, इंडोनेशिया और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) भी ब्रह्मोस को खरीदने में इंटरेस्ट दिखा रहे हैं।
दुनिया में बढ़ रही ब्रह्मोस की मांग
फिलीपीन्स दुनिया का वह पहला देश है, जिसने ब्रह्मोस मिसाइल खरीदी है। 2022 में $37.5 करोड़ की डील के तहत भारत ने फिलीपींस को एंटी-शिप ब्रह्मोस मिसाइलें दीं। अब वियतनाम, इंडोनेशिया और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) भी ब्रह्मोस खरीदने में इंटरेस्ट दिखा रहे हैं। दरअसल, चीन की आक्रामकता से जूझ रहा वियतनाम अपनी सिक्योरिटी के लिए ब्रह्मोस को अहम वेपन मानता है। उधर, समुद्री सीमा विवादों के कारण इंडोनेशिया को इस मिसाइल की जरूरत है, जबकि ईरान और उसके प्रॉक्सी संगठनों से खतरे के चलते यूएई ब्रह्मोस में इंटरेस्ट दिखा रहा है।
ब्रह्मोस: कैसे रखा गया यह नाम?
ब्रह्मोस का नाम भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मोस्कवा नदी के नाम पर रखा गया है। इसे भारत के डीआरडीओ (DRDO) और रूस के एनपीओ मशिनोस्ट्रॉयेनिया ने मिलकर डेवलप किया है। मारक क्षमता 300 से 500 किमी तक है। स्टील्थ तकनीक से लैस है। जिससे इसे दुश्मन के रडार पर पहचानना मुश्किल होता है। इसकी सुपरसोनिक स्पीड इसे दुनिया की सबसे तेज क्रूज मिसाइल बनाती है।
ब्रह्मोस की खूबियां
यह मिसाइल लक्ष्य को सटीकता से भेदने में सक्षम है, चाहे वह जमीन हो या समुद्र। इसके हाइपरसोनिक वर्जन ब्रह्मोस 2 पर काम चल रहा है, जो मैक 6 (ध्वनि की गति से छह गुना तेज) की स्पीड से हमला कर सकेगी। इसमें हाइपरसोनिक स्क्रैमजेट टेक्नोलॉजी का यूज होगा। इस मिसाइल को जमीन, समुद्र और हवा से दागा जा सकता है।
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Last Updated Dec 2, 2024, 1:58 PM IST