नई दिल्ली। भारतीय संविधान के निर्माता और देश के पहले कानून मंत्री रहे डा. भीमराव अंबेडकर की आज जयंती है। अंबेडकर जयंती को भीम जयंती के रूप में भी जाना जाता है। दलित अधिकारों और भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर का जन्मोत्सव मनाने के लिए 2015 से पूरे भारत में सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया। बाबा साहब का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में हुआ था। उनके अनुयायी उन्हें प्यार से बाबासाहेब कहकर बुलाते हैं और वर्तमान स्वतंत्र भारत के निर्माण में उनके अनगिनत योगदानों का सम्मान करने के लिए हर साल उनकी जयंती मनाई जाती है। 

 

1956 में 5 लाख समर्थकों संग अपना लिया था बौद्ध धर्म
डॉ. अंबेडकर एक भारतीय न्यायविद्, अर्थशास्त्री, समाज सुधारक और राजनीतिज्ञ थे। वह महार जाति से थे, जिसे हिंदू धर्म में अछूत माना जाता था, लेकिन वर्षों तक धर्म का अध्ययन करने के बाद 14 अक्टूबर, 1956 को नागपुर में 500,000 समर्थकों के साथ उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था। भारत में छुआ छूत के खिलाफ ही नहीं बल्कि देश में दलितों के उत्थान और सशक्तिकरण के लिए भी उन्हें जाना जाता है।बाबासाहेब ने जीवन को निखारने वाले दर्दनाक अनुभवों में से अधिकांश को अपनी आत्मकथात्मक 'वेटिंग फॉर ए वीजा' में लिखा है। संविधान के जरिए उन्होंने हिंदू शूद्रों की मानसिकता को बदला और उन्हें शिक्षित होकर अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए तैयार किया। 

 

133वीं जयंती पर डा. अंबेडकर के 10 Thoughts

  1. मन की खेती मानव अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए।
  2. मैं किसी समुदाय की प्रगति को महिलाओं द्वारा हासिल की गई प्रगति की डिग्री से मापता हूं।
  3. जीवन लम्बा होने के बजाय महान होना चाहिए।
  4. पुरुष नश्वर हैं। विचार भी ऐसे ही हैं। एक विचार को प्रचार-प्रसार की उतनी ही आवश्यकता होती है, जितनी एक पौधे को पानी की। नहीं तो दोनों सूख जाते हैं।
  5. मुझे वह धर्म पसंद है जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता है।
  6. राजनीतिक लोकतंत्र तब तक टिक नहीं सकता जब तक इसके आधार पर सामाजिक लोकतंत्र न हो।
  7. कानून और व्यवस्था राजनीतिक शरीर की दवा है और जब राजनीतिक शरीर बीमार हो जाता है, तो दवा दी जानी चाहिए।
  8. लोकतंत्र केवल सरकार का एक रूप नहीं है। यह मुख्य रूप से संबद्ध जीवन, संयुक्त संप्रेषित अनुभव का एक तरीका है।
  9. खोए हुए अधिकार कभी भी हड़पने वालों की अंतरात्मा की आवाज से नहीं, बल्कि अथक संघर्ष से वापस पाए जाते हैं।
  10. मनुष्य उस समाज में अपना अस्तित्व नहीं खोता, जिसमें वह रहता है। मनुष्य का जीवन स्वतंत्र है। उसका जन्म केवल समाज के विकास के लिए नहीं, बल्कि स्वयं के विकास के लिए भी हुआ है।

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