इंदौर। मध्य प्रदेश का चोरल गांव प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है। इंदौर से लगभग 35 किलोमीटर दूर खंडवा रोड पर बसा है। नदी, जंगल और पहाड़ से घिरे गांव में 2500 से ज्यादा लोग रहते हैं। ज्यादातर लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं। ऐसे में गांव में लोगों को सुविधाओं के बदले पैसे न देने पड़ें। इसलिए मौजूदा सरपंच अशोक सैनी ने एक अनूठी पहल की है। 

पानी और कचरा उठान का शुल्क नहीं

गांव के लोगों की खराब माली हालत को देखते हुए सरपंच ने पानी और कूड़ा उठान के बदले लगने वाले शुल्क को माफ कर दिया। मतलब अब गांव में लोगों को नि:शुल्क पीने का पानी उपलब्ध होगा। कचरा उठाने वाली गाड़ी डेली काम करती है। पर उसके एवज में भी लोगों से कोई पैसा नहीं लिया जाएगा। ग्रामीणों का कहना है कि सैनी ने अपने पिछले पांच साल के कार्यकाल में भी लोगों को फ्री में पानी उपलब्ध कराया था। उस समय कचरा गाड़ी गांव में नहीं आती थी। अब वह सुविधा भी मिल रही है। 

ज्यादातर गांव वाले करते हैं खेती और मजदूरी 

गांव में रहने वाले ज्यादातर लोग मजदूरी और खेती-किसानी का काम करते हैं। अधिकांश किसानों के पास खेती योग्य जमीन 4-5 बीघा तक जमीन भी है। युवा डेली नौकरी करने के लिए इंदौर जाते हैं। चोरल गांव विशेषकर कद्दू और कालाकुंड के लिए फेमस है। यहां की काली रेतीली मिट्टी में एक समय कद्दू की फसल होती थी। जिससे पेठा बनता था। जिसे यूपी और राजस्थान तक भेजा जाता था। ग्रामीण गाय पालते थे और कलाकंद भी बनता था। गांव की महिलाएं भी पुरूषों से पीछे नहीं है। आत्मनिर्भर भारत की कहानी लिखी है। 

कोरोना काल के बाद आत्मनिर्भरता का मॉडल

दरअसल, कोरोना काल के दौरान सामने आई कठिन परिस्थितियों में कुछ महिलाओं ने हिम्मत दिखाई। आत्मनिर्भरता का एक सफल मॉडल तैयार किया। दीपावली के समय यूज होने वाली झालरें बनाकर बेची और करीबन एक लाख रुपये कमाए। स्वयं सहायता समूह के माध्यम से यह संभव हो सका। कुछ साल पहले इंदौर के नागरथ चैरिटेबल ट्रस्ट के सुरेश एमजी और उनकी टीम ने महिलाओं को काम से जोड़ा था। आजीविका मिशन से भी महिलाओं को जोड़ा गया है। जिससे उन्हें आत्मनिर्भरता का सही मतलब समझ आया है। उनके काम को देखते हुए आसपास के गांव की महिलाओं में भी जागरूकता बढ़ रही है। 

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