असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स को लेकर काफी बहस चल रही है। यह सवाल निश्चित रूप से सबके सामने आता है कि नागरिकों की पहचान किए जाने के बाद क्या होने वाला है। लेकिन, हमें वास्तव में अपने उन राजनेताओं से सवाल करना चाहिए, जो नागरिकों की पहचान किए जाने की इस कानूनी प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं।
यह नया एनआरसी साल 1951 की सूची का पुनरीक्षण है। यदि कोई व्यक्ति 25 मार्च 1971 से पहले असम में रह रहा है, तो उसे एक नागरिक के रुप में स्वीकार किया जाएगा। साल 1951 को इसलिए आधार माना गया है क्योकि इसी दिन पाकिस्तान ने तत्कालीन पूर्वी बंगाल के खिलाफ ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू किया था।
असमिया बोलने वाले लोगों की संख्या में 1991 से 2011 तक 10 प्रतिशत की कमी आई थी। 2001 से 2011 तक, हिंदुओं की आबादी में गिरावट आई है और मुसलमानों की आबादी में 3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इन सबकी वजह है बांग्लादेश से बढ़ती घुसपैठ।
एनआरसी की अंतिम सूची 31 अगस्त 2019 को जारी की गई, जिसमें से 20 लाख लोगों के नाम हटा दिए गए। लेकिन सरकार ने इन सभी लोगों को अपनी नागरिकता स्थापित करने के लिए कानूनी सहायता प्रदान करने का वचन दिया है।