गोरखपुर के रत्नेश तिवारी पेशे से इंजीनियर हैं। गरीबों के जीवन को सुधरने के लिए इंजीनियरिंग छोड़ दिया और अपने गांव कुशीनगर में आकर बस गए। यहां बच्चो की पाठशाला शुरू किया जहा स्लम और सड़क किनारे घूमने वाले बच्चों को पढ़ना शुरू किया। धीरे धीरे छोटी सी इस पाठशाला में हज़ारों बच्चे शामिल हो गए। रत्नेश ने जो सपना देखा था वो सच हो चुका था।