असल में भाजपा और उससे जुड़े दल स्कूली पाठ्यक्रमों में टीपू सुल्तान को पढ़ाए जाने का विरोध करते हैं। जबकि कांग्रेस इसके जरिए अल्पसंख्यकों की राजनीति को साधती है। भाजपा और मैसूर के भूतपूर्व राजा को ‘धार्मिक कट्टर’ बताते हैं। क्योंकि सत्ता आने के बाद टीपू सुल्तान ने धर्मांतरण को बढ़ावा दिया था। हालांकि कांग्रेस इस बात को इत्तेफाक नहीं रखती है। राज्य की सत्ता में आते ही भाजपा सरकार ने जुलाई में टीपू सुल्तान की जयंती के कार्यक्रम को रद्द कर दिया।