नई दिल्ली। आजकल बाजार में कई प्रोडक्ट्स ऐसे हैं, जिन पर 'कम्पोस्टेबल', 'डिग्रेडेबल', या 'इको-फ्रेंडली' जैसे लेबल लगे होते हैं। ये शब्द सुनने में अच्छे लगते हैं, लेकिन क्या ये वास्तव में पर्यावरण के लिए फायदेमंद हैं? इसके अलावा, कंपनियों द्वारा किए गए दावों में कितनी सच्चाई है? हाल ही में, सरकार ने इन प्रोडक्ट्स के पर्यावरणीय दावों की ट्रांसपेरेंसी तय करने के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इन नियमों का मकसद कस्टमर्स को भ्रामक पर्यावरणीय दावों से बचाना और कंपनियों की 'ग्रीनवाशिंग' गतिविधियों पर अंकुश लगाना है।

क्‍या है ग्रीनवॉशिंग?

ग्रीनवाशिंग’ एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें कंपनियाँ अपने उत्पादों को पर्यावरण के लिए सुरक्षित बताने के झूठे या भ्रामक दावे करती हैं। यह उपभोक्ताओं को भ्रमित करता है और उन्हें लगता है कि वे पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद खरीद रहे हैं, जबकि वास्तविकता कुछ और होती है। इस प्रकार के दावे अक्सर '100% इको-फ्रेंडली', 'बायोडिग्रेडेबल', और 'शून्य उत्सर्जन' जैसे शब्दों का उपयोग करके किए जाते हैं, जिनकी जांच किए बिना उपभोक्ता इन पर विश्वास कर लेते हैं।

क्या हैं नए नियम?

सरकार ने कंपनियों को ऐसे पर्यावरणीय दावे करने के लिए निर्देश दिए हैं, जो स्पष्ट और सत्यापन योग्य हो। ये नियम कस्टमर्स को सही जानकारी देने और पर्यावरणीय अनुकूलता के झूठे दावों से बचाने के लिए बनाए गए हैं। 

ऐसे दावे जिनका सत्यापन किया जा सके

कंपनियों को यह तय करना होगा कि उनके दावे इंडिपेंडेंट स्टडी और साइंटिफिक एविडेंस द्वारा प्रूव हों। उदाहरण के लिए, '100% पर्यावरण-अनुकूल' या 'शून्य उत्सर्जन' जैसे शब्दों का उपयोग तभी किया जा सकेगा जब उनके पीछे ठोस प्रमाण हों।

कस्टमर्स को समझ में आने वाली लैंग्वेज का यूज

कंपनियों को जटिल तकनीकी शब्दों के बजाय आसान और समझने योग्य भाषा में अपने दावे पेश करने होंगे। इससे कस्टमर्स को प्रोडक्ट की रियल पर्यावरणीय इफेक्टिवनेस समझने में आसानी होगी।

महत्वपूर्ण जानकारी दी जाए

ऐड या अन्य कम्यूनिकेशन मीडियम के जरिए कंपनियों को यह बताना होगा कि उनके दावे प्रोडक्ट की मैन्यूफैक्चरिंग प्रॉसेस, पैकेजिंग, यूज या डिस्पोजल से संबंधित हैं या नहीं।

थर्ड पार्टी से सत्यापन

'कम्पोस्टेबल', 'डिग्रेडेबल', 'Recyclable' और 'शुद्ध-शून्य' जैसे दावे तभी माने जाएंगे, जब उन्हें विश्वसनीय साइंटिफिक एविडेंस या किसी थर्ड पार्टी द्वारा सत्यापित किया जाएगा। सरकार के यह दिशा निर्देश मौजूदा नियमों के साथ ही लागू होंगे। पर यदि किसी कानून से टकराव की स्थिति बनती है तो नया कानून ही माना जाएगा। कोई विवाद होने पर केंद्रीय प्राधिकरण का निर्णय ही अंतिम होगा।

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