Independence Day 2024 Special: स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम राष्ट्रीय ध्वज यानी तिरंगा फहराते हैं। क्या आपको पता है कि इसको तेलुगुभाषी स्कूल मास्टर पिंगली वेंकैया ने डिजाइन किया था। इंडिपेंडेंस डे के पावन अवसर पर उन्हें श्रद्धांजलि भी दी जा रही है। अपने जीवन में मेधावी छात्र रहें वेंकैया ने जीवन में कई उतार—चढ़ाव देखें। विदेश में पढ़ाई की। आइए जानते हैं कि वेंकैया के साथ तिरंगे की कहानी कि यह कब और कैसे अस्तित्व में आया।

पिंगली वैंकैया कौन थे?

वर्तमान आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम के निकट भटलापेनुमारु में 2 अगस्त 1876 को पिंगली वैंकैया का जन्म हुआ। पिता का नाम हनुमंतरायुडु और माता वेंकटरत्नम्मा थीं। मद्रास से हाई स्कूल पास किया और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन। भारत लौटें तो रेलवे गार्ड के रूप में काम किया और फिर लखनऊ में एक सरकारी कर्मचारी के रूप में कार्यरत रहें। बाद में एंग्लो वैदिक महाविद्यालय में उर्दू और जापानी भाषा का अध्ययन करने के लिए लाहौर का रूख किया।

भूविज्ञान और एग्रीकल्चर से खास लगाव

पिंगली वैंकैया कई विषयों के जानकार थे। भूविज्ञान और एग्रीकल्चर से खास लगाव था। डायमंड माइंस के स्पेशलिस्ट थे। ब्रिटिश भारतीय सेना के अलावा दक्षिण अफ्रीका के एंग्लो-बोअर युद्ध में भी शामिल हुए थे। वहीं महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित हुए और उनके संपर्क में आए। एजूकेशन में उनकी विशेष दिलचस्पी थी। साल 1906 से 1911 तक कपास की फसल की विभिन्न किस्मों का तुलनात्मक अध्ययन किया। बॉम्वोलार्ट कंबोडिया कपास पर उनकी एक स्टडी भी पब्लिश हुई।

कैसे अस्तित्व में आया तिरंगा?

काकीनाड़ा में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन हुआ था। वहां उनकी महात्मा गांधी से प्रगाढ़ता बढ़ी। उस दरम्यान वेंकैया ने भारत का राष्ट्रीय ध्वज होने की जरूरत बताई। गांधी जी को उनका विचार पंसद आया और उन्होंने वेंकैया को राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप तैयार करने के लिए कहा। पिंगली ने 1916 से 1921 तक यानी पूरे 5 साल तक 30 देशों के राष्ट्रीय ध्वजों पर रिसर्च करने में खुद को समर्पित कर दिया और तब तिरंगा अस्तित्व में आया। 

1931 में कांग्रेस अधिवेशन में तिरंगे को स्वीकृति

साल 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का विजयवाड़ा में अधिवेशन आयोजित हुआ। जिसमें वेंकैया, गांधी जी से मिले और अपने डिजाइन उन्हें दिखाए। तब उन्होंने लाल और हरे रंग में झंडा बनाया था। उसके बाद देश भर में कांग्रेस के सभी अधिवेशनों में दो रंगों वाले झंडे का यूज होने लगा। पर उस समय कांग्रेस की तरफ से झंडे को आधिकारिक तौर पर स्वीकृति नहीं दी गई थी। उसी बीच जालंधर के हंसराज ने झंडे में अशोक चक्र को जगह देने का सुझाव दिया। फिर गांधी जी के सुझाव पर वेंकैया ने झंडे में सफेद रंग को भी शामिल किया। कांग्रेस के 1931 के कराची अधिवेशन में तिरंगे को स्वीकृति दी गई। बाद के समय में झंडे के बीच चरखे की जगह अशोक चक्र ने ले लिया। 4 जुलाई 1963 को पिंगली वेंकैया की मौत हो गई।

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