Special State Status: लोकसभा चुनाव 2024 में बहुमत की चाभी हासिल करने में असफल हुई बीजेपी के लिए अब टीडीपी और जेडीयू जरूरी और मजबूरी दोनों बन गए हैं, क्योकि उन पर विपक्षी गठबंधन इंडी भी लगातार डोरे डाल रहा है। ऐसे में टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू और जेडीयू प्रमुख नितीश कुमार की ओर से पूर्व में अपने-अपने स्टेट के लिए की जाने वाली स्पेशल स्टेटस के दर्ज की मांग की फिर से चर्चा शुरू हो गई है। चौतरफा यह चर्चा है कि दोनों नेता आंध्र प्रदेश और बिहार को स्पेशल राज्य का दर्जा देने की डिमांड पूरी करने की शर्त पर ही एनडीए या इंडी गठबंधन के साथ जा सकते हैं। आखिर क्या होता है ये विशेष राज्य का दर्जा, जिसकों पाने के लिए राज्य सरकार उतावली होती हैं और सेंट्रल गर्वनमेंट इसे देने से कतराती रहती है। आईए जानते हैं। 

स्पेशल स्टेट का स्टेटस मिलने के क्या हैं फायदे?
सेंट्रल गर्वनमेंट देश के राज्याें को डेवलपमेंट के लिए 2 तरह से फाईनेंसियल मदद करती है। पहला तरीका ग्रांट और दूसरा तरीका लोन कहलाता है। आमतौर पर सेंट्रल गर्वनमेंट पहले तरीके से की जाने वाली मदद में 30 परसेंट पैसे ग्रांट और 70 परसेंट पैसे राज्यों को लोन के रूप में देती है। लेकिन जब किसी राज्य को विशेष राज्य (Special State Status) का दर्जा मिल जाता है, तब केंद्र उसे 90 परसेंट पैसे ग्रांट और 10 परसेंट पैसे लोन के रूप में देती है।

स्पेशल स्टेट को मिलती हैं ये भी रियायतें
इसके अलावा विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त राज्यों को एक्साइज, कस्टम, कॉर्पोरेट, इनकम टैक्स आदि में भी कंसेंसन दिया जाता है। सेंट्रल गर्वनमेंट के बजट में प्लान्ड खर्च का 30% हिस्सा विशेष राज्यों को मिलता है। साथ ही कई बार जब विशेष दर्जा प्राप्त राज्य मिले हुए पैसे को खर्च नहीं कर पाते है, तो वह पैसा उसे अगले फाईनेंसियल ईयर के लिए जारी कर दिया है।

ये हैं विशेष राज्य का दर्जा मिलने का क्या है क्राईटेरिया? 

  • 1. राज्य में संसाधनों का अभाव हो।
  • 2. प्रति व्यक्ति आय कम हो।
  • 3. राज्य के वित्त के लिए विषम परिस्थितियां हों।
  • 4. आर्थिक और संरचनाभूत पिछड़ापन।
  • 5. आदिवासियों की बड़ी आबादी।
  • 6. पहाड़ी और मुश्किल टैरेन।
  • 7. अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से सटे होने के कारण राज्य का रणनीतिक महत्व।
  • 8. आबादी का कम घनत्व।

 

बिहार और आंध्र प्रदेश क्यो मांग रहे हैं विशेष राज्य का दर्जा?
आजादी के 75 साल बाद भी बिहार की एक बड़ी आबादी गरीबी से जूझ रही है। बिहार सरकार की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य के 94 लाख परिवारों की आय 6 हजार रुपए से भी कम है। यह कुल आबादी का 34 प्रतिशत है। बिहार के अधिकांश लोग या तो बेरोजगार हैं या दिहाड़ी मजदूरी करके जीवन-यापन कर रहे हैं। कमोबेश यही हाल आंध्र प्रदेश का भी यही हाल है।


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