सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST आरक्षण में उप-समूह यानी कोटा में कोटा बनाने का अधिकार राज्य सरकारों को दिया है, जिससे सबसे पिछड़े वर्गों को प्राथमिकता मिलेगी। इस फैसले के विरोध में दलित और आदिवासी संगठनों ने भारत बंद का आह्वान किया है। जानिए, आंदोलन की प्रमुख मांगें और कौन कर रहा है समर्थन।
नयी दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य सरकारें अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षण में सब कैटेगरी बना सकती हैं। मतलब कि आरक्षण के भीतर सबसे वंचित तबकों को प्राथमिकता दी जा सकती है। सरल भाषा में समझा जाए तो कोटा के अंदर कोटा तय करने का फैसला। इसका असर सीधे तौर पर अनुसूचित जाति और जनजाति के तहत आने वाली उपजातियों पर पड़ेगा। राज्यों को यह अधिकार मिलेगा कि वे SC/ST श्रेणियों में उप-समूह बनाकर सबसे पिछड़े और जरूरतमंद तबकों को आरक्षण का फायदा दिला सकें। इसी फैसले का विरोध हो रहा है। दलित और आदिवासी संगठनों ने भारत बंद का आह्वान किया। आइए जानते हैं इससे जुड़ी 5 प्रमुख बातें।
भारत बंद: किसने किया आह्वान?
नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ दलित एंड आदिवासी ऑर्गेनाइजेशंस (NACDAOR) ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ 14 घंटे के लिए भारत बंद का आह्वान किया है। उनका मुख्य उद्देश्य इस फैसले को रद्द करने के लिए सरकार पर दबाव डालना है।
भारत बंद क्यों?
विरोध करने वाले संगठनों का मानना है कि यह फैसला आरक्षण के मौलिक सिद्धांतों पर प्रहार करता है। उनका तर्क है कि इससे सामाजिक न्याय की अवधारणा कमजोर हो जाएगी और आरक्षण का असली उद्देश्य धूमिल हो जाएगा। विशेषकर दलित और आदिवासी संगठन इसे उनकी संवैधानिक सुरक्षा के खिलाफ मान रहे हैं।
आंदोलन की प्रमुख मांगें क्या?
एससी, एसटी और ओबीसी कर्मचारियों का जातिगत डेटा जारी करना।
न्यायिक सेवा में SC/ST/OBC का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना।
बैकलॉग रिक्तियों को भरना।
निजी क्षेत्रों में सकारात्मक कार्रवाई की नीतियां लागू करना।
बंद में कौन शामिल, किसका समर्थन?
दलित और आदिवासी संगठनों के साथ-साथ बहुजन समाज पार्टी, भीम आर्मी, आजाद समाज पार्टी और कई अन्य क्षेत्रीय पार्टियां भी इस बंद को समर्थन दे रही हैं। कांग्रेस ने भी इस बंद का समर्थन किया है।
क्रीमीलेयर मुद्दा क्या?
क्रीमीलेयर का मुद्दा लंबे समय से विवाद का विषय रहा है। यह तर्क दिया जाता है कि जो लोग आर्थिक रूप से संपन्न हो चुके हैं, उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। इसके विरोध में कहा जाता है कि यह सामाजिक न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट का कोटा के भीतर कोटा लागू करने का फैसला एक संवेदनशील मुद्दा बन गया है।
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Last Updated Aug 21, 2024, 1:54 PM IST